अपराधियों के अन्दर पुलिस का खौफ क्यों नहीं?

एक माफिया के चलते डीएसपी शैलेन्द्र सिंह पर इतना राजनीतिक दबाव पड़ा कि डीएसपी शैलेन्द्र सिंह को इस्तीफा देना पड़ा,जब माफियाओं को राजनीतिक लबादा ओढ़ा दिया जाएगा तो पुलिसकर्मी इसी प्रकार मारे जाते रहेंगे,बिकरु के विकास दूबे कांड भी इसी प्रकार की विषैली राजनीति का परिणाम था वह तो अच्छा हुआ कि उ०प्र० में योगी आदित्यनाथ की सरकार थी।

आवाज़ ~ ए ~ लखनऊ  प्रधान सम्पादक” “अनिल मेहता, — हरियाणा के तावडू उपमंडल के गांव पचगांवा में अवैध खनन रोकने गए डीएसपी सुरेन्द्र सिंह बिश्नोई की डंपर से कुचल कर हत्या कर दी गई। डीएसपी सुरेन्द्र सिंह की हत्या ने 2मार्च सन् 2013 में प्रतापगढ़ कुंडा के बालीपुर गांव में हुई डीएसपी जियाउल हक के हत्या की याद ताज़ा कर दी। प्रश्न यह है कि अपराधी आखिर पुलिस से डरता क्यों नहीं है। इसका कोई न कोई कारण तो होगा अपराधियों का हौसला बुलंद होने का , मेरे ख्याल से जबसे राजनीति में अपराधियों का पदार्पण हुआ तबसे अपराधियों पर से पुलिस का खौफ समाप्त हो गया,उ०प्र०समाज कल्याण मंत्री पूर्व आईपीएस तथा कानपुर के भूतपूर्व पुलिस कमिश्नर असीम अरुण जी बताते है कि जब वह पुलिस की नौकरी में थे तब तमाम माफियाओं को छोड़ने तथा नर्मी बरतने के फोन रसूखदारों के उनके पास आते थे।

तमाम पुलिस अधिकारी बोलना चाहते हैं पर अनुशासित विभाग होने के कारण कुछ बोल नहीं पाते। मैं आईपीएस की नौकरी छोड़ने के बाद अब बोलने के लिए स्वतंत्र हूं। सन् 2004 वाराणसी के डीएसपी शैलेन्द्र सिंह का किस्सा अधिकतर लोगों को याद होगा, एक माफिया के चलते डीएसपी शैलेन्द्र सिंह पर इतना राजनीतिक दबाव पड़ा कि डीएसपी शैलेन्द्र सिंह को इस्तीफा देना पड़ा,जब माफियाओं को राजनीतिक लबादा ओढ़ा दिया जाएगा तो पुलिसकर्मी इसी प्रकार मारे जाते रहेंगे,बिकरु के विकास दूबे कांड भी इसी प्रकार की विषैली राजनीति का परिणाम था वह तो अच्छा हुआ कि उ०प्र० में योगी आदित्यनाथ की सरकार थी। प्रश्न यह उठता है कि इस विषैली राजनीति का शिकार पुलिसकर्मी कब तक होते रहेंगे। अगर अपराधियों के अन्दर पुलिस का खौफ पैदा करना है तो अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण देना बन्द करना होगा,वरना हमारे पुलिसकर्मी इसी तरह माफियाओं के शिकार होते रहेंगे।

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