कानपुर : चीनी मिल के कचरे से बनाया जैविक पोटाश; घटेगा आयात, एनएसआइ की तकनीक से आत्मनिर्भर हो सकेगा देश

एनएसआइ की तकनीक से देश आत्मनिर्भर हो सकेगा। इससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी। भारत पोटाश के लिए अभी कनाडा बेलारूस और दक्षिण कोरिया के भरोसे रहता है। राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (एनएसआइ) के विज्ञानियों ने यह पोटाश तैयार किया है।

 

कानपुर । इथेनाल तैयार करने के दौरान निकलने वाली जिस राख को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हानिकारक मान उसे जमीन पर खुले में फेंकने पर रोक लगा रखी है। उससे राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (एनएसआइ) के विज्ञानियों ने पोटाश तैयार कर लिया। चीनी मिल से निकलने वाले जिस कचरे को कोई पूछने वाला नहीं था, उससे एनएसआइ की तकनीक ने पोटाश उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनने की राह खोल दी। अभी हर साल 40 लाख मीट्रिक टन पोटाश का आयात होता है।

एनआइसी की तकनीक से देश में हर साल करीब छह लाख मीट्रिक टन पोटाश का उत्पादन संभव होगा और विदेश पर निर्भरता घटेगी। विदेशी मुद्रा भंडार की भी बचत होगी। बड़ी बात यह है कि देश में तैयार होने वाले इस जैविक पोटाश की कीमत भी आयातित पोटाश के मुकाबले करीब 75 प्रतिशत तक कम है। फसलों की वृद्धि और विकास के लिए जरूरी पोटाश खेती के लिए अधिक लाभकारी भी है। एनएसआइ की तकनीक के जरिए पहली बार खदानों के बाहर प्राकृतिक तौर पर पोटाश का निर्माण संभव हुआ है। अभी कनाडा, दक्षिण कोरिया और बेलारूस प्रमुख पोटाश उत्पादक देशों में शामिल हैं।

 

यहां से हर साल भारत में लाखों टन पोटाश का आयात होता है। बढ़ती मांग की वजह से आयातित पोटाश के दाम भी तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले साल जनवरी में एक मीट्रिक टन पोटाश की कीमत 221 अमेरिकी डालर थी, जबकि इस साल यह आंकड़ा 562 अमेरिकी डालर (लगभग 45 हजार रुपये) तक पहुंच चुका है।

स्टार्टअप कंपनी कर रही 400 टन प्रतिमाह का उत्पादनएनएसआइ की तकनीक के जरिए बलरामपुर शुगर मिल और ईआइडी पैरी ग्रुप ने जैविक पोटाश का उत्पादन शुरू कर दिया है। वहीं, स्टार्टअप कंपनी जीआर मूवर्स भी शाहजहांपुर में 400 टन पोटाश का प्रतिमाह उत्पादन कर रही है कंपनी के निदेशक हर्ष गोविंद मोदी बताते हैं कि तीन साल पहले 50 टन से शुरुआत की थी। अब एक साल में उत्पादन क्षमता में 300 टन का विस्तार किया है।

दाम में कम, गुणवत्ता में भी दमखाद की दुकानों पर अभी आयातित पोटाश 18 रुपये प्रति किलो की दर से उपलब्ध है। वहीं, जैविक पोटाश केवल पांच रुपये प्रति किलो में मिल रहा है। इसकी गुणवत्ता भी अधिक है। इसमें पोटाश के साथ ही मैग्नीशियम, आयरन, कैल्शियम, सोडियम, सल्फेट और फास्फेट भी मौजूद है।

ऐसे तैयार होता है जैविक पोटाशचीनी मिलों में चीनी उत्पादन के दौरान निकलने वाले शीरे से एथेनाल बनाया जाता है। एथेनाल तैयार करने के बाद जो राख निकलती है, उसमें चीनी मिल की स्लज मिलाकर जैविक पोटाश तैयार किया जा रहा है।

प्रदूषण समस्या है राखएथेनाल तैयार करने के दौरान निकलने वाली राख को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हानिकारक माना है। इसे जमीन पर खुले में फेंकने पर रोक लगा रखी है। एनएसआइ की तकनीक से अब यह राख भी सोना बन गई है और इससे पोटाश तैयार किया जा रहा है।

 

फसलों के लिए जरूरी है पोटाशपौधों की वृद्धि एवं विकास के लिए

यह फसलों को सूखा, ओला-पाला और कीड़े आदि से बचाता है

जड़ों की समुचित वृद्धि करके फसलों को उखड़ने से बचाता है

अगर कोई चीनी मिल प्रतिदिन 60 हजार लीटर एथेनाल का उत्पादन कर रही है तो वह हर रोज 10 टन पोटाश का उत्पादन कर सकती है। चीनी मिलों से देश में हर साल लगभग छह लाख मीट्रिक टन पोटाश का उत्पादन किया जा सकता है। – डा. नरेन्द्र मोहन, निदेशक एनएसआइ

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