उज्बेकिस्तान में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन के बाद विदेश मंत्री ने भारत-चीन संबंधों पर खुलकर बोला है। पूर्वी लद्दाख में हुए सैन्य संघर्ष के बाद भी दोनों देशों के बीच रिश्तों में तनाव बरकरार है। इस मौके पर गलावन घाटी का भी जिक्र किया है।
नई दिल्ली, उज्बेकिस्तान में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन के बाद विदेश मंत्री ने भारत-चीन संबंधों पर खुलकर बोला है। उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाख में हुए सैन्य संघर्ष के बाद भी दोनों देशों के बीच रिश्तों में तनाव बरकरार है। उन्होंने इस मौके पर एक बार फिर गलावन घाटी का भी जिक्र किया है। विदेश मंत्री का गलावन घाटी पर दिया यह बयान आखिर क्या संकेत देता है। एससीओ शिखर सम्मेलन के बाद विदेश मंत्री के इस बयान के आखिर क्या मायने हैं। इस पर क्या है विशेषज्ञों की राय।
आखिर विदेश मंत्री के इस बयान के क्या है मायने
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि हाल में उज्बेकिस्तान में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दूसरे के निकट रहते हुए काफी दूर रहे। हालांकि, यह उम्मीद की जा रही थी कि इस सम्मेलन में दोनों नेताओं की मुलाकात हो सकती है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा था कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद में कुछ नरमी आ सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब विदेश मंत्री एस जयशंकर के ताजा बयान को इससे जोड़कर देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में भारत का स्टैंड साफ था। लद्दाख सीमा पर भारत-चीन के सैनिकों की झड़प के बाद दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव बरकरार है।
2- प्रो पंत ने कहा कि भारतीय विदेश मंत्री ने गुरुवार को कहा कि चीन के साथ भारत के संबंध तब तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक सीमावर्ती इलाकों में शांति कायम नहीं हो जाती। प्रो पंत ने कहा कि हालांकि, भारत यह संकेत पहले भी दे चुका है। प्रो पंत ने कहा कि एससीओ सम्मेलन के बाद विदेश मंत्री ने भारत-चीन संबंधों पर खुलकर बोला है। विदेश मंत्री ने कहा कि जब तक भारत-चीन सीमा पर शांति का माहौल नहीं होगा, जब तक चीन सीमा समझौते का पालन नहीं करता तब तक भारत-चीन संबंध सामान्य नहीं हो सकते। ऐसा कहकर भारतीय विदेश मंत्री ने उन कारणों से भी पर्दा हटा दिया है, जिसके चलते पीएम मोदी एससीओ शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति से निकट रहने के बावजूद नहीं मिले।
3- विदेश मंत्री का यह कथन यह संकेत देता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उक्त कारणों से चीनी राष्ट्रपति से कन्नी काट गए। गलवान घाटी में चीन के खूनी संघर्ष को भारत की सेना अब भी नहीं भूली है। इस बात का ताजा प्रमाण है कि विदेश मंत्री ने अपने बयान में कहा है कि वर्ष 2020 में गलवान घाटी में जो हुआ वह एक पक्ष का प्रयास था। हम जानते हैं कि वह कौन था, जो समझौते से अलग हटा। ये सब मुद्दे अहम है।
ऐसे में सवाल उठता है कि सीमा विवाद के मामले में क्या हमने तब से अब तक कोई प्रगति की है। हालांकि, उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच टकराव वाले कई बिंदु थे। उन बिंदुओं में सेना द्वारा खतरनाक रूप से करीबी तैनाती थी। उन्होंने कहा कि मूझे लगता है कि उनमें कुछ मुद्दों को समान और आपसी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हल किया गया है।
4- प्रो पंत ने कहा कि विदेश मंत्री ने अपने इस बयान से साफ कर दिया है कि दोनों देशों के रिश्ते सामान्य तभी होंगे जब चीन अपने अडियल रुख में बदलाव लाए। सीमा विवाद को लेकर चीन के रुख में अब भी कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला है। अलबत्ता दोनों पक्षों की सेनाएं शांत हैं। उन्होंने भारत की विदेश नीति को स्पष्ट करते हुए संकेत दिया कि भारत किसी भी समस्या का समाधान वार्ता के जरिए चाहता है। खास बात यह है कि विदेश मंत्री का यह बयान ऐसे समय भी आया है जब ताइवान को लेकर वह अमेरिका और बीजिंग के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है।
पूर्वी लद्दाख में सैन्य संघर्ष के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव
गौरतलब है कि जून 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच भीषण झड़प हुई थी। पैंगोंग झील में हिंसक संघर्ष के बाद पूर्वी लद्दाख में सीमा गतिरोध शुरू हो गया था। इसका हल अभी तक नहीं निकल सका है। इससे दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव पैदा हो गया था। पूर्वी लद्दाख के डेमचोक और देपसांग क्षेत्रों में गतिरोध को हल करने पर अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है, हालांकि दोनों पक्षों ने सैन्य और राजनयिक वार्ता के जरिये टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों को पीछे हटाया है। भारत लगातार इस बात को कहता रहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण है। पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद पांच मई, 2020 को पूर्वी लद्दाख में सीमा गतिरोध शुरू हो गया था। जिसका हल अभी तक नहीं निकल सका है।