पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ दूसरी बार महाभियोग की कार्यवाही के दौरान अभियोजकों ने भारत के प्रथम गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स के खिलाफ 18वीं सदी में हाउस ऑफ लॉर्ड्स में चले मुकदमे का जिक्र किया। यह मुकदमा हेस्टिंग्स का कार्यकाल खत्म होने के बाद चलाया गया था। बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ बुधवार को महाभियोय चलाने के लिए सीनेटरों ने बहुमत से वोट दिया था।
दरअसल, ट्रंप ने दलील दी थी कि राष्ट्रपति पद से हटने के बाद उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही किया जाना असंवैधानिक है। जवाब में महाभियोग प्रबंधकों ने हेस्टिंग्स की मिसाल दी। मुख्य महाभियोग प्रबंधक जेमी रस्किन ने कहा, ‘हमारा मामला मजबूत तर्कों पर आधारित है। पहला तर्क, भारत में बिटिश शासन से जुड़ा है। इतिहास से अवगत किसी भी व्यक्ति को पता होगा कि पद के दुरुपयोग मामले में पूर्व अधिकारियों को भी जवाबदेह ठहराया जाता था। हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने ब्रिटिश उपनिवेश के गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स के खिलाफ मुकदमा चलाया था।’
अमेरिकी सीनेट ने ट्रंप के खिलाफ महाभियोग कार्यवाही की संवैधानिक वैधता को 44 के मुकाबले 56 वोटों से पुष्टि की, जिससे पहले दोनों पक्षों- सदन की महाभियोग कार्यवाही के प्रबंधकों और ट्रंप का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों- की ओर से दलील पेश की गई। इसके साथ ही, अमेरिका के 45 वें राष्ट्रपति (ट्रंप) के खिलाफ ऐतिहासिक महाभियोग की कार्यवाही का मार्ग प्रशस्त हो गया। बुधवार से दोनों पक्षों के पास अपना-अपना मामला 100 सदस्यीय सीनेट के समक्ष पेश करने के लिए 16 घंटे का वक्त होगा, जिसके बाद आगे चलकर ट्रंप के खिलाफ महाभियोग पर मतदान होगा।
ट्रंप (74) पर छह जनवरी को कैपिटल हिल हिंसा भड़काने और देश में लोकतंत्र को खतरे में डालने का आरोप है। इस घटना में एक पुलिस अधिकारी सहित पांच लोगों की मौत हो गई थी। सीनेट में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट सदस्यों की संख्या 50-50 है। ट्रंप पर महाभियोग के लिए सीनेट को सदन के महाभियोग प्रस्ताव के पक्ष में 67 वोटों की जरूरत होगी।
हेस्टिंग्स 1772 से 1774 के बीच औपनिवेशिक बंगाल के प्रथम गवर्नर जनरल थे। 1774 से 1785 तक उन्होंने भारत के प्रथम गवर्नर जनरल के रूप में सेवाएं दी थीं। ब्रिटेन लौटने पर भारत में कथित कुप्रबंधन, दुर्व्यव्यहार और भ्रष्टाचार के मामलों में संलिप्तता को लेकर उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही चलाई गई थी। विभिन्न रिपोर्ट के मुताबिक हेस्टिंग के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर सुनवाई 1788 में शुरू हुई थी। हालांकि, 1795 में उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था।