रांची स्थित राजेंद्र इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) के विशेषज्ञ इस बात पर मंथन करेंगे कि कोरोना की चपेट में आने के बाद मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र से संबंधित कौन सी बीमारियां हो रही हैं। इस अंतरराष्ट्रीय शोध के लिए दुनिया के बड़े संस्थानों ने रिम्स पर भरोसा जताया है।
रांची। कोरोना वायरस हमारे तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) को किस तरह प्रभावित करता है, इसपर देश-दुनिया के विशेषज्ञ चिंता कर रहे हैं। कई कोरोना मरीज मस्तिष्क और न्यूरो से संबंधित बीमारियों की चपेट में भी आ रहे हैं। रांची स्थित राजेंद्र इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) के विशेषज्ञ अब इस बात पर मंथन करेंगे कि कोरोना की चपेट में आने के बाद लोगों को मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र से संबंधित कौन सी बीमारियां हो रही हैं। इस अंतरराष्ट्रीय शोध के लिए दुनिया के बड़े संस्थानों ने रिम्स पर भरोसा जताया है। रिम्स के साथ इस शोध में अमेरिका के अलावा यूरोप के चार देश शामिल हैं। भारत से इस शोध में शामिल एकमात्र संस्थान रिम्स है।
एनआइएच और डब्ल्यूएचओ की देखरेख में होगा शोध
यह शोध अमेरिका के शोध संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ (एनआइएच) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की देखरेख में हो रहा है। रिम्स के निदेशक डा. कामेश्वर प्रसाद बताते हैं कि न्यूयार्क विश्वविद्यालय के नेतृत्व और समन्वय में होने वाले इस अंतरराष्ट्रीय शोध के लिए रिम्स को मौका मिलना गौरव की बात है।
इस शोध में अमेरिका के न्यूयार्क विश्वविद्यालय के शोधार्थी और यूनाईटेड किंगडम (यूके), जर्मनी, स्पेन तथा इटली के चिकित्सक भी शामिल हैैं। एनआइएच ने इस शोध के लिए तीन वर्ष का समय तय किया है। एनआइएच विश्व की बड़ी शोध संस्थाओं में से एक है। इस शोध के जो भी निष्कर्ष होंगे, उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी जर्नल में प्रकाशित किए जाने की योजना है।
रिम्स के कई डाक्टर होंगे शामिल
एनआइएच ने न्यूयार्क विश्वविद्यालय को इस शोध का कार्य सौंपा था। न्यूयार्क विश्वविद्यालय ने इस शोध को अंतरराष्ट्रीय शोध में बदलते हुए भारत समेत विश्व के अन्य देशों को भी इसमें शामिल किया। हाल के दिनों में रिम्स द्वारा किए गए शोध कार्य को भी देखा-परखा गया। शोध में हिस्सा ले रहे पद्मश्री डा. कामेश्वर प्रसाद पहले से ही बतौर न्यूरो कोरोना एक्सपर्ट डब्ल्यूएचओ की टीम में हैं। पूर्व में उन्होंने न्यूरो के क्षेत्र में कई विषयों पर अपना शोध प्रस्तुत किया है।
शोध में निदेशक के अलावा रिम्स के डा. अमित कुमार, डा. सुरेंद्र कुमार, डा. गणेश चौहान, डा. देवेश और डा. प्रभात कुमार सहित अन्य सहयोगी शामिल होंगे। डा. कामेश्वर प्रसाद ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध करने से पहले स्वास्थ्य मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी से अनुमति लेने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है।
उत्तर-पूर्वी भारत पर केंद्रित है शोध
यह शोध उत्तर-पूर्वी भारत पर ही केंद्रित होगा। झारखंड में आदिवासी-जनजातीय आबादी की बहुतायत के कारण यह शोध ऐसे मरीजों पर भी हो सकेगा, जो जनजातीय समूह से आते हैं। इसे देखते हुए शोध के लिए रिम्स का चुनाव किया गया। शोध में यह भी पता चल सकेगा कि मजबूत इम्यून सिस्टम वाले जनजातीय समुदाय के लोगों पर कोरोना ने कैसा असर डाला।
ऐसे होगा शोध कार्य
तीन वर्ष की अवधि वाले शोध कार्य में रिम्स में आने वाले व भर्ती हुए पोस्ट कोरोना मरीजों की पूरी जानकारी आनलाइन डाटा बेस में रखी जाएगी। देखा जाएगा कि कोरोना निगेटिव होने के बाद उनकी याद्दाश्त कैसी है, वह किस तरह की चीजों को भूल जाते हैं। उनमें बीपी व चक्कर आने की समस्या कैसी है।
साथ ही, शरीर में कंपन की क्या स्थिति है। जो भी जांच कराई जाएगी। उसका भी डाटा सहेजा जाएगा। पूरा शोध कार्य इस डाटाबेस पर ही आधारित होगा। शोध के लिए रिम्स में पोस्ट कोरोना क्लिनिक बनाया जा चुका है। इसमें आए नतीजों को देखा जाएगा कि जनजातीय और गैर जनजातीय समूहों के विभिन्न आयुवर्ग के मरीजों को किस तरह की स्वास्थ्य समस्याएं पेश आ रही हैं।
रिम्स के लिए यह शोध बड़ी उपलब्धि है। इस शोध कार्य में रिम्स की न्यूरोलाजी की टीम के साथ-साथ अन्य विभागों के डाक्टरों को भी मौका दिया गया है।
डा. कामेश्वर प्रसाद, निदेशक, रिम्स, रांची।
दुनिया के बड़े संस्थानों के साथ समन्वय बनाकर काम करने का अनुभव खास है। इस शोध से निकले निष्कर्ष आने वाले दिनों में कोरोना मरीजों के इलाज में बहुत सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
डा. अमित कुमार, न्यूरो विशेषज्ञ, रिम्स, रांची।