भारतीय रिजर्व बैंक के निदेशक एवं सहकारी क्षेत्र में काम करनेवाली संस्था सहकार भारती के संस्थापक सदस्य व पूर्व अध्यक्ष सतीश मराठे कहते हैं कि भारत का सहकारिता क्षेत्र विश्व में सबसे पुराना एवं सबसे बड़ा है। यहां अंग्रेजों के शासनकाल में सबसे पहले 1904 में सहकारिता कानून बना।
मुंबई, आर्थिक क्षेत्र में स्वामित्व के अभी दो मॉडल चर्चा में रहते हैं। निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र। केंद्र सरकार में नवगठित सहकारिता मंत्रालय यदि अपेक्षाओं पर खरा उतरा तो देश में सहकारिता क्षेत्र भी स्वामित्व का एक वैकल्पिक मॉडल बनकर उभर सकता है। यह मानना है सहकारिता क्षेत्र की गहरी समझ रखनेवाले अर्थशास्त्री सतीश मराठे का।
भारतीय रिजर्व बैंक के निदेशक एवं सहकारी क्षेत्र में काम करनेवाली संस्था सहकार भारती के संस्थापक सदस्य व पूर्व अध्यक्ष सतीश मराठे कहते हैं कि भारत का सहकारिता क्षेत्र विश्व में सबसे पुराना एवं सबसे बड़ा है। यहां अंग्रेजों के शासनकाल में सबसे पहले 1904 में सहकारिता कानून बना।
देश में 100 साल पुरानी कई सहकारी संस्थाएं आज भी काम कर रही हैं। यहां 8.5 लाख से अधिक सहकारी समितियों के जरिये करीब 28 करोड़ शेयर धारक जुड़े हैं। ये सहकारी समितियां करीब 55 प्रकार के कामों से जुड़ी हैं। तीन व्यक्तियों का भी परिवार माना जाए, तो देश की आधी आबादी किसी न किसी सहकारी संस्था से जुड़ी है। लेकिन इतनी बड़ी आबादी का मार्गदर्शन करनेवाला कोई मंत्रालय अब तक केंद्र सरकार में नहीं था।
उनके अनुसार अंग्रेजों के बनाए कानून का फोकस सिर्फ नियमन एवं नियंत्रण पर रहा। आजादी के बाद यह फोकस बदलना चाहिए था। यदि कानून का फोकस वृद्धि एवं विकास पर होता, तो भारत में सहकारिता के जरिये अब तक क्रांति हो चुकी होती।
मराठे बताते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी की 13 महीने वाली सरकार में पहली बार समेकित सहकारिता नीति बनाई गई एवं मल्टीस्टेट कोआपरेटिव एक्ट नए सिरे से पूरा लिखा गया। यह देश में सबसे उदार सहकारिता कानून माना गया। लेकिन इसे भी बने 20 साल से ज्यादा हो चुके हैं।
अब नवगठित सहकारिता मंत्रालय को 1904 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए पहले कानून, 1919 में अंग्रेजों द्वारा ही संशोधित किए गए कानून एवं अटल सरकार द्वारा बनाए गए कानून का अध्ययन कर एक ऐसा सहकारिता कानून बनाना चाहिए, जो इस क्षेत्र में सरकार का हस्तक्षेप कम करे एवं उसे बाहर से हर संभव मदद पहुंचाए।
बता दें कि यूएनओ भी यह सिफारिश कर चुका है कि भारत के बदलते राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक परिदृश्य में यहां के 100 साल पुराने सहकारिता कानून के पुनर्लेखन की जरूरत है। मराठे बताते हैं कि पिछले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि वह बहुराज्यीय सहकारी संस्थाओं को पूंजी जुटाने की अनुमति भी देंगी। मराठे कहते हैं कि ऐसा होना ही चाहिए। इससे सहकारी संस्थाओं में सरकार का हस्तक्षेप कम होगा और उनकी परेशानियां घटेंगी। वे पूंजी बाजार से पैसा जुटाकर अपना काम आसानी से कर सकेंगी।
लंबे समय से सहकारी संस्थाओं के कामकाज का अध्ययन करते आ रहे मराठे का मानना है कि निजी क्षेत्र की कंपनियों का लाभ बढ़ने से उसका फायदा उसके चंद शेयरधारकों या उसके मालिकों को ही होता है। लेकिन सहकारी संस्थाओं का लाभ बढ़ने से उसके शेयरधारकों को तो फायदा होता ही है, लाभांश बंटने के बाद बचा धन समितियों का नेटवर्थ बढ़ाने के काम आता है। उसके कारण अपने देश में सोशल कैपिटल बढ़ता है।
नाबार्ड ने वर्षों पहले माना था कि सहकारिता के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में सोशल कैपिटल बड़े अच्छे तरीके से बढ़ा है। नवगठित सहकारिता मंत्रालय की जिम्मेदारी गृह मंत्री अमित शाह को ही क्यों दी गई? इस सवाल पर मराठे कहते हैं कि शाह को सहकारिता क्षेत्र के कामकाज का अच्छा अनुभव रहा है। वह डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक के चेयरमैन रहे हैं। गुजरात राज्य सहकारी बैंक के निदेशक रहे हैं। शहरी बैंकों के फेडरेशन के भी डायरेक्टर रहे हैं। आज जम्मू-कश्मीर के किसानों के बीच नैफेड द्वारा किए जा रहे कामों पर भी वह स्वयं नजर रख रहे हैं। उनके जैसा सक्षम एवं वरिष्ठ व्यक्ति ही इस नए मंत्रालय को एक सही दिशा दे सकता है।
सहकारिता क्षेत्र की मांगें
-सहकारी कानून को समयानुकूल आधुनिक एवं उदार बनाया जाए।
-राष्ट्रीय सहकारिता विकास नीति बनाई जाए।
-नेशनल सेंटर फार कोआपरेटिव एक्सीलेंस की स्थापना की जाए, जहां सहकारिता से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण मिल सके।
-सहकारी संस्थाओं को शेयर बाजार से पूंजी जुटाने की अनुमति मिले एवं इससे संबंधित सभी कानूनों में परिवर्तन किया जाए।
देश-दुनिया में सहकारिता
-भारत का सहकारिता आंदोलन विश्व का सबसे बड़ा सहकारिता आंदोलन है।
-विश्व में 100 से अधिक देशों में एक अरब से ज्यादा लोग सहकारिता से जुड़े हैं।
-देश में आठ लाख से अधिक सहकारी संस्थाओं के जरिये 75 फीसद ग्रामीण परिवारों के 28 करोड़ से अधिक लोग सहकारिता से जुड़े हैं।
-चीनी उत्पादन में सहकारिता का भाग करीब 50 फीसद एवं हैंडलूम में 55 फीसद है। कपास उत्पादन में भी लगभग यही अनुपात है।