प्रधानमंत्री केपी शर्मी ओली के द्वारा सदन भंग करने की सिफारिश के बाद नेपाल में सियासी संकट गहारात ही जा रही है। इस बीच खबर आ रही है कि उन्होंने बुधवार यानी तीन फरवरी को संवैधानिक परिषद की बैठक बुलाई है। इससे पहले स्पीकर अग्नि सपकोटा द्वारा संवैधानिक परिषद द्वारा की गई सिफारिशों को वापस भेजने के एक दिन बाद, नेशनल असेंबली की चेयरमैन गणेश तिमिल्सीना ने सोमवार को इस कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि स्पीकर के पास उनके परामर्श के बिना ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं था।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, प्रतिनिधि सभा को भंग करके, अब तक देश के सभी प्रमुख संस्थानों को विवादों में घसीट चुके हैं। उनका कहना है कि वह जिस कार्यकारिणी के प्रमुख हैं, विधायिका ने उन्हें पद और न्यायपालिका के लिए चुना है, जिसे एक स्वतंत्र संस्था माना जाता है। ओली के 20 दिसंबर के सदन भंग का उनकी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी पर तत्काल प्रभाव पड़ा, जो कि उनके नेतृत्व में दो गुटों में बंट गई है और दूसरे का नेतृत्व पुष्पा कमल दहल और माधव कुमार नेपाल ने संयुक्त रूप से किया है।
इससे पहले उनके विरोधी गुट ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पार्टी से बाहर किए जाने का ऐलान कर दिया था। पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड की अगुआई वाले गुट की संट्रेल कमिटी की बैठक में उन्हें से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। आपको बता दें कि विरोधी गुट के नेता ओली की ओर से पिछले साल 20 दिसंबर को संसद को भंग किए जाने के फैसले से नाराज हैं। ओली ने संसद को भंग करते हुए इस साल अप्रैल मई में चुनाव कराने की घोषणा की है। उनके इस फैसले पर राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने मुहर लगाई थी।
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के अपने धड़े के समर्थकों को संबोधित करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड ने कहा था कि ओली ने न सिर्फ पार्टी के संविधान और प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया, बल्कि नेपाल के संविधान की मर्यादा का भी उल्लंघन किया है। उन्होंने ओली के फैसले को लोकतांत्रिक प्रणाली के खिलाफ बताया।
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म ओली के सीपीएन-यूएमएल और दहल की पार्टी सीपीएल (माओवादी) के विलय से हुआ था। चूंकि, दोनों पार्टियों की विचारधारा अलग थी, इसलिए शुरुआत से ही यह आशंका थी कि यह एका अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकेगा। दो साल के भीतर ही एक बार फिर कम्युनिस्ट पार्टी का दो टुकड़ों में बंटना अब लगभग तय हो गया है।
अपने अब तक के शासनकाल में केपी शर्मा ओली चीन के इशारे पर काम करते रहे और इस दौरान उन्होंने भारत विरोधी भावनाओं को भड़काया। इसके लिए उन्होंने भारतीय इलाकों को नेपाल के नक्शे में शामिल करते हुए संविधान संशोधन भी किया। इसके अलावा उन्होंने यह भी आरोप लगा दिया था कि उनकी सत्ता अस्थिर करने के पीछे भारत हाथ है। ओली भारत विरोधी बयानबाजी के लिए लगातार चर्चा में बने रहे। हालांकि, अब चीन ने भी उनके सिर से हाथ हटा लिया है।