यूएस फेड के चेयरमैन जेरोम पॉवेल का कहना है कि फेड कुछ समय के लिए दरों में तेजी से बढ़ोतरी करना जारी रखेगा। पॉवेल ने स्वीकार किया कि फेड के लगातार सख्त होने से कई व्यवसायों के लिए आने वाले दिन मुश्किल भरे रहेंगे।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व (US FED) के चेयरमैन जेरोम पावेल ने मौद्रिक नीति को लेकर आगे भी रूख सख्त रहने का संकेत दिया है। उन्होंने आगे भी ब्याज दरों में वृद्धि जारी रहने की बात कही है। पावेल ने जैक्सन होल में आयोजित फेडरल रिजर्व की सालाना आर्थिक बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि फेडरल का कर्ज को लेकर सख्त रुख जारी रहने से परिवारों एवं कारोबारों को काफी तकलीफ होगी। कर्ज की दरें महंगी होने से अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होगी और नौकरियों के जाने का भी खतरा होगा।
निवेशकों ने पिछले कुछ दिनों से फेडरल रिजर्व के रुख में नरमी आने की उम्मीद लगाई हुई थी, लेकिन पावेल के इस संबोधन ने उनकी उम्मीदें तोड़ दी हैं। फेडरल रिजर्व ने पिछले दो बार 0.75-0.75 प्रतिशत की बढ़ोतरी नीतिगत दर में की है। यह 1980 के दशक के बाद फेडरल रिजर्व की सर्वाधिक तीव्र वृद्धि रही है।
जैक्सन होल में फेड के वार्षिक आर्थिक संगोष्ठी में दिए गए भाषण में पॉवेल ने कहा, “मुद्रास्फीति को कम करने करने की कोशिशों के दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम ऐसे ही होते हैं। लेकिन अगर ऐसा नहीं किया गया तो लोगों की तकलीफें और अधिक बढ़ सकती हैं। फेड के फैसले से उन निवेशकों को निराशा हो सकती है, जो उम्मीद कर रहे थे कि फेड इस साल के अंत में अपनी दर में वृद्धि को कम कर सकता है। अपनी पिछली दो बैठकों में दरों में तीन-चौथाई की वृद्धि करने के बाद फेड के इस फैसले को मुद्रास्फीति को काबू में करने के दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। फेड अध्यक्ष ने स्पष्ट किया कि उन्हें उम्मीद है कि दरें उस स्तर पर बनी रहेंगी जो अर्थव्यवस्था को कुछ समय के लिए ‘धीमा’ कर दें।
भारत पर क्या होगा असरअमेरिकी फेडरल बैंक के ब्याज दरों में इजाफा करने का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी दिखाई देगा। इसकी सबसे अधिक मार रुपये पर पड़ती है। डॉलर के मुकाबले रुपया पहले ही 80 के सबसे निचले स्तर को छू चुका है। ऐसे में अमेरिकी बैंक का दरें बढ़ाते रहने का फैसला भारत की मुश्किलें बढ़ा सकता है। आरबीआई (RBI) को ब्याज दरें फिर से बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। अगर यूएस फेड लगातार दरें बढ़ता रहा तो आरबीआई द्वारा दरों में बढ़ोतरी करने की आशंका और गहरी हो जाएगी। अगर आरबीआई ने रेपो रेट समेत अन्य नीतिगत दरें बढ़ाईं तो लोन महंगे हो जाएंगे और उसका असर आपकी ईएमआई (EMI) पर भी देखने को मिलेगा।
फेडरल बैंक द्वारा ब्याज दर बढ़ाने से डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत घटेगी, जिसका असर भारत के आयात खर्च पर पड़ेगा। डॉलर महंगा होने से भारत का इंपोर्ट बिल बढ़ेगा। इससे व्यापार घाटा और ज्यादा बढ़ सकता है। व्यापार घाटा बढ़ने से सरकार आयात-निर्यात नीतियों में सख्ती ला सकती है, जिसका असर कमोडिटी और अन्य वस्तुओं पर पड़ सकता है