अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को पराजित करने का दावा तो कई राजनीतिक दलों और नेताओं की ओर से शुरू हो गया है। लेकिन जिस तरह कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा को सफल बनाने की कसरत में है और क्षेत्रीय विपक्षी दलों के बीच छिपी हुई छटपटाहट दिख रही है!
नई दिल्ली। अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को पराजित करने का दावा तो कई राजनीतिक दलों और नेताओं की ओर से शुरू हो गया है। लेकिन जिस तरह कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा को सफल बनाने की कसरत में है और क्षेत्रीय विपक्षी दलों के बीच छिपी हुई छटपटाहट दिख रही है उससे यह तय हो गया है कि भाजपा से दो दो हाथ करने के पहले विपक्ष के बीच घमासान होगा। तभी तय होगा कि नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) और यूनीइटेड प्रोग्रैसिव अलायंस (यूपीए) की लड़ाई में कोई फ्रंट भी तैयार होगा या नहीं।
नीतीश बुलंद कर चुके हैं मेन फ्रंट का नारा फिलहाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ‘मेन फ्रंट’ का नारा बुलंद कर चुके हैं। कुछ ऐसा ही नामकरण ममता बनर्जी पहले कर चुकी हैं। लेकिन बाकी दलों की ओर से चुप्पी है। पिछले सात आठ वर्षों में कांग्रेस यह महसूस कर चुकी है कि उसे क्षेत्रीय दलों से अपनी सियासी जमीन वापस लेनी ही होगी। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान इसकी खुलेआम घोषणा भी कर दी गई कि दोस्ती का अर्थ कमजोर कांग्रेस नहीं है।
कांग्रेस से वामदल नाराज हालांकि बार बार यह दोहराया जा रहा है कि यात्रा से सहयोगी दलों को घबराने की जरूरत नहीं लेकिन यह किसी से छिपा भी नहीं है कि कांग्रेस जो कुछ भी अर्जित करेगी वह क्षेत्रीय दलों से छीनकर ही। केरल में वामदलों की ओर से परोक्ष रूप से नाराजगी जताई जा चुकी है।
कांग्रेस की यह होगी रणनीति उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की यात्रा का पड़ाव बहुत सीमित है लेकिन यह देखना रोचक होगा कि यात्रा के दौरान सपा और बसपा की ओर से किस तरह की प्रतिक्रिया आती है। जो भी हो यह तो तय है कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ कोई मुख्य गठबंधन बनता है तो कांग्रेस उसे यूपीए की छतरी के तले रखना चाहेगी।
सभी क्षेत्रीय दल मान चुके हैं कांग्रेस का नेतृत्वयूपीए एक और यूपीए दो का नेतृत्व कांग्रेस कर चुकी है और यूपीए 3 बनता है तो स्पष्ट है कि सभी क्षेत्रीय दल कांग्रेस का नेतृत्व मान चुके हैं। दूसरी तरफ गठबंधन में कांग्रेस को रखने की वकालत कर रहे नीतिश कुमार मेन फ्रंट की बात कर रहे हैं इसका कोई खाका अभी घोषित नहीं किया गया है।
शरद पवार पहले ही कर चुके हैं किनारावहीं खुद नीतीश, वाम नेता येचुरी, राकांपा नेता शरद पवार जैसे लोगों ने बार बार कहा है कि अभी प्रधानमंत्री उम्मीदवार के नाम पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। यह भी ध्यान रहे कि इनमें से कोई भी अपने अपने राज्य में कांग्रेस को बराबरी का हिस्सा देने के लिए तैयार नहीं होंगे। केरल की स्थिति और विकट है जहां कांग्रेस वामदल को तीसरा हिस्सा देने के लिए भी तैयार नहीं होगी।
इन नेताओं ने कांग्रेस से बना रखी है दूरी इसी बीत नीतीश की सक्रियता बढ़ी है। अगले सप्ताह वह हरियाणा के फतेहाबाद में इनेलो के मंच भी दिखेंगे। मजे की बात यह है कि क्षेत्रीय दलों में तीन अहम नेता – ममता, के चंद्रशेखर राव और अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस से दूरी बनाकर रखी हुई है। बल्कि समय समय पर विरोध भी जताया जाता रहा है।
सफल नहीं रहा है विपक्षी फ्रंट का इतिहासआंध्र प्रदेश का सत्ताधारी दल वाइएसआरसीपी, ओडिशा का सत्ताधारी दल बीजद समेत कुछ छोटे दलों ने दोनों ओर से दूरी बनाकर रखी है और पारंपरिक रूप से वह किसी भी फ्रंट से दूर ही रहते हैं। जाहिर है कि कोई फ्रंट बने या अलायंस, उससे पहले कई स्तरों पर शक्तिप्रदर्शन हो सकता है। कुछ जनता को साथ जोड़कर शक्तिप्रदर्शन करेंगे और कुछ नेताओं को जोड़कर। आखिर नेता तो नेता ही तय करेंगे। वैसे फ्रंट का राजनीतिक इतिहास बहुत सफल नहीं रहा है।
वीपी सिंह और चंद्रशेखर बने थे प्रधानमंत्री1989-91 के बीच नेशनल फ्रंट की सरकार में वीपी सिंह और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। कोई सरकार टिक नहीं पाई। फिर 1996-98 के बीच यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी और एचडी देवेगौडा तथा वाई के गुजराल के हाथ देश की बागडोर गई लेकिन यह काल भी अस्थायी रहा। 1999 के बाद से या तो एनडीए ने शासन किया है या फिर यूपीए ने और दोनों काल स्थायी रहा।
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