शोधकर्ताओं का कहना है यह बहुत ही चिंता का विषय और खतरे की घंटी है। इससे हमारे महत्वपूर्ण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के ढहने का खतरा बढ़ रहा है जिसमें मूंगे की चट्टानें समुद्री घास केल्प वन (पानी के नीचे का क्षेत्र जिसमें केल्प का उच्च घनत्व होता है) आते हैं।
वाशिंगटन, वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ी समस्या है, जिससे पूरा विश्व जूझ रहा है। इसी कड़ी में एक और चिंताजनक बात सामने आई है। विज्ञानियों ने पाया है कि 2014 के बाद से महासागरों की सतह के आधे से अधिक हिस्से ऐतिहासिक गर्मी की चरम सीमा को पार कर चुके हैं। यह अध्ययन पीएलओएस क्लाइमेट जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह बहुत ही चिंता का विषय और खतरे की घंटी है। इससे हमारे महत्वपूर्ण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के ढहने का खतरा बढ़ रहा है, जिसमें मूंगे की चट्टानें, समुद्री घास, केल्प वन (पानी के नीचे का क्षेत्र, जिसमें केल्प का उच्च घनत्व होता है) आते हैं। इनकी संरचनाओं व कार्य में बदलाव आने से और इनको खतरा पहुंचने से इंसानों को भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा, जो इन पर निर्भर हैं।
इस तरह किया अध्ययन : शोधकर्ताओं ने समुद्री गर्मी के चरम का एक निश्चित ऐतिहासिक बेंचमार्क निर्धारित करने के लिए महासागरों की सतह के तापमान के 150 वषों का अध्ययन किया। इसमें विज्ञानियों ने देखा कि महासागरों की सतहों का तामपान कितनी बार और कितना इस बिंदु के पार गया है।
बीते 50 वर्षो में ज्यादा परिवर्तन : ऐतिहासिक रिकार्डस का प्रयोग करते हुए विज्ञानियों ने सबसे पहले महासागरों की सतह पर 1870 से 1919 के बीच की वृद्धि का पता लगाया। इसमें उन्होंने पाया कि इस दौरान केवल दो प्रतिशत की अधिकतम बढ़ोतरी देखी गई। डा. काइल के अनुसार, वर्तमान में ज्यादातर समुद्री सतहों का तापमान गर्म हो गया है, जो बीती सदी में दुर्लभ था। बीते 50 वर्षो में इसमें ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई है।
यह होगा नुकसान : डा. काइल के मुताबिक, जब उष्णकटिबंधीय (ट्रापिक्स) के पास समुद्री पारिस्थितिक तंत्र असहनीय रूप से उच्च तापमान का अनुभव करते हैं तो प्रमुख जीव जैसे कोरल, समुद्री घास के मैदान या केल्प वन ढह सकते हैं। पारिस्थितिक तंत्र की संरचना और कार्य में परिवर्तन से मत्सय पालन पर संकट पैदा होगा, जिस पर इंसान निर्भर करते हैं।
यह आया सामने
पहले साल 2014 में आधे से अधिक महासागरों ने गर्मी के चरम ¨बदु को छुआ। बाद के वर्षो में यह प्रवृत्ति जारी रही। 2019 में यह महासागरांे के 57 प्रतिशत हिस्से में फैल गई। इस बेंचमार्क का प्रयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि 19वीं सदी के अंत में महासागरों की सतह का केवल दो प्रतिशत हिस्सा ही इतना गर्म हुआ था।
इस तरह बढ़ा अध्ययन का दायरा
यह अध्ययन पहले केवल कैलिफोर्निया के केल्प वन में परिवर्तन का पता लगाने के लिए शुरू किया गया था। डा. काइल और उनकी टीम ने देखा कि कैनोपी केल्प्स के लिए संकट की बड़ी वजह समुद्री सतह का बढ़ता तापमान है। इसके बाद शोधकर्ताओं ने निर्णय लिया कि जांच का दायरा सिर्फ कैलिफोर्निया तक सीमित नहीं रखा जा सकता, क्योंकि ऐसा पूरे विश्व में हो रहा है। इसके बाद उन्होंने वैश्विक स्तर पर महासागरों की सतह के तापमान में परिवर्तन का पता लगाना शुरू किया।
हमारे लिए सचेत होने का समय
इस अध्ययन के प्रमुख डा. काइल वान हाउटन के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन भविष्य की घटना नहीं है। वास्तविकता यह है कि यह हमें कुछ समय से प्रभावित कर रही है। हमारा अध्ययन बताता है कि महासागरों की सतह के आधे से अधिक हिस्से ऐतिहासिक गर्मी की चरम सीमा को पार कर गए हैं। महासागरों के तापमान में दर्ज किया गया यह परिवर्तन एक और साक्ष्य है, जो हमें सचेत होने के लिए कह रहा है। चिंता की बात यह है कि आने वाले समय में यह और विकराल रूप लेता जाएगा।