मानसून की असमान बारिश के चलते कई राज्यों में सूखे जैसे हालात हैं। पश्चिम बंगाल झारखंड बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में खेती बेहाली के कगार पर पहुंच गई है।
नई दिल्ली । चालू मानसून सीजन में देश के पूर्वी राज्य भीषण सूखे की चपेट में आ गए हैं। बारिश न होने से यहां खेतों में धूल उड़ रही है। मानसून सीजन में होने वाली बरसात 70 फीसद तक कम हुई है। पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में खेती बेहाली के कगार पर पहुंच गई है। जिन खेतों में पहली बारिश के साथ खरीफ सीजन वाली फसलों की बोआई हो गई थी उसमें खड़ी फसलें सूख चुकी हैं।
पूर्वी राज्यों में धान की रोपाई ठप
देश के इन पूर्वी राज्यों की प्रमुख फसल धान की रोपाई ठप है। जबकि देश के पश्चिमी क्षेत्रों में मानसून की बारिश सामान्य के मुकाबले 125 फीसद तक अधिक हुई है। राजस्थान, गुजरात के कच्छ व सौराष्ट्र में 104 फीसद अधिक बरसात हुई है, जहां के लोग बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहे हैं।
पूर्वी यूपी में सूखे के हालात
भारतीय मौसम विभाग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक पूर्वी उत्तर प्रदेश में मानसून की बारिश भीषण सूखे की हालत है, जहां होने वाली सामान्य बारिश के मुकाबले 70 फीसद से भी कम बारिश हुई है। यहां 17 जुलाई तक 265 मिलीमीटर बारिश हो जाती थी, जो इस बार केवल 79.6 मिमी बरसात हो पाई है।
पश्चिमी यूपी में भी कम हुई बारिश
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब तक होने वाली बारिश में 55 फीसद तक की कमी दर्ज की गई है। इस क्षेत्र में अब तक होने वाली सामान्य बारिश 202 मिमी के मुकाबले केवल 90 मिमी हुई है।
बिहार और झारखंड में भी चिंता
बिहार में 46 फीसद कम बरसात हुई, जहां अब तक 361 मिमी बरसात हो जाती थी, जो इस बार केवल 196 मिमी हुई है। झारखंड में 49 फीसद कम हुई है। यहां 359.9 मिमी के मुकाबले 183.8 मिमी बरसात हुई है।
बगाल में नहीं हो पा रही बोआई
पश्चिम बंगाल के गंगा के मैदानी क्षेत्रों में 45 फीसद कम बारिश हुई है। यहां भी 426.7 मिमी की सामान्य बारिश के मुकाबले 234 मिमी ही हुई है। लिहाजा इन क्षेत्रों में खरीफ सीजन वाली खेती बिल्कुल नहीं हो पा रही है। जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक इन राज्यों में ज्यादातर फसलों की बोआई हो जाती है। लेकिन इस बार नमी की कमी की वजह से खाली पड़े हुए हैं, जहां धूल उड़ रही है।
धान व दलहनी एवं तिलहनी फसलों पर मार
मानसून की इस बेरुखी ने दूसरी हरितक्रांति के लिए नामित इस पूर्वी क्षेत्र के राज्यों के लिए कठिन चुनौती खड़ी कर दी है। देश की खाद्य सुरक्षा के लिए इन राज्यों से बड़ी अपेक्षाएं हैं। खासतौर से धान व दलहनी-तिलहनी फसलों की खेती के लिए इन राज्यों पर बड़ा दारोमदार है। लेकिन जलवायु इस रुख से यहां के किसानों और सरकार, दोनों की चिंताएं बढ़ा दी हैं।
रोपाई न होने नर्सरी हो रही खराब
मानसून आने के शुरुआती सप्ताह में यहां ज्वार, बाजरा, मक्का के साथ दलहनी फसलों में उड़द व मूंग की बोआई तो हो चुकी है, लेकिन इसके बाद सूखे जैसे हालात होने से खेतों में खड़ी फसलें सूख चुकी हैं। प्रमुख फसल धान की रोपाई के लिए मानसूनी बादलों के बरसने की प्रतीक्षा की जा रही है। रोपाई न होने की वजह से पौध नर्सरी तैयार होकर खराब होने की दशा में पहुंच गई है।
फसलों को बचा पाना चुनौती
कुछ जगहों पर नलकूपों के पानी से रोपाई जरूर की जा रही है। लेकिन उनका रकबा बहुत कम है। नलकूपों के सहारे रोपे गए धान की फसल के खेतों में बारिश के अभाव में खेतों में दरार पड़ने लगी है। किसानों के लिए ऐसी फसलों को बचा पाना एक बड़ी चुनौती है।
खेतों में सूख रही खड़ी फसलें
बिहार में सामान्य से 46 फीसद तक कम बारिश हुई है। यहां धान का रोपाई रकबा पिछले साल के नौ लाख हेक्टेयर के मुकाबले अब तक केवल छह लाख हेक्टेयर रोपाई हो सकी है। खेतों में खड़ी फसल सूखने लगी है। पश्चिम बंगाल में मानसून की बारिश सामान्य के मुकाबले 45 फीसद कम बरसात हुई है। धान की खेती पर इसका असर पड़ा है। रोपाई बुरी तरह प्रभावित हुई है।
जलवायु परिवर्तत की करारी मार
कृषि वैज्ञानिक डाक्टर एके सिंह के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव पूर्वी राज्यों को झेलना पड़ रहा है, जहां मानसून अच्छी बारिश होती रही है। जबकि पश्चिमी राज्यों में जरूरत से बहुत ज्यादा बारिश हो रही है, जो वहां की खेती को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र श्रीगंगानगर जैसी जगहों में अत्यधिक बारिश और बाढ़ का आना एक असामान्य स्थिति है।