मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले कार्यकाल में कल्याणकारी योजनाओं की बड़ी लकीर खींची है। जिसे अब उन्हें ही एक और बड़ी लकीर खींच कर पुरानी लकीर को छोटा करना होगा। अगले पांच वर्ष के कार्यकाल में यह करना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा।
लखनऊ । भाजपा ने प्रदेश की सत्ता में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर दोबारा वापसी की है। कोरोना महामारी की भीषण चुनौती से जूझते अपना सफल कार्यकाल पूरा करने वाले योगी के लिए अगले पांच वर्ष की कम चुनौतीपूर्ण नहीं होंगी। यह चुनौती खुद की खींची लकीर को दूसरे कार्यकाल में छोटी करने की होगी।
आदिवासी कल्याण से लेकर औद्योगिक विकास और मजबूत कानून व्यवस्था से जनता का विश्वास जीतने वाले योगी के कंधाें पर इस बार उम्मीदों का बोझ बढ़ना तय है। भाजपा ने 2017 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद प्रदेश की सत्ता योगी आदित्यनाथ के हाथों में सौंपी। शुरुआती निर्णयों से ही उन्होंने संकेत दे दिया था कि उपेक्षित वर्ग उनके शासन की प्राथमिकता में रहेगा।
गोरखपुर के सांसद रहते आदिवासी जनजाति के जीवन की दुश्वारियों को करीब से देख चुके योगी ने इस वर्ग के जीवन में व्यापक बदलाव के लिए ठोस कदम उठाए। इनमें खास तौर पर थारू, कोल, मुसहर और वनटांगिया समुदाय था। आजादी के बाद भी देश का नागरिक होने के दर्जे से वंचित वनटांगिया समाज को असली आजादी तब मिली, जब सीएम बनते ही योगी ने उनके गावों को राजस्व ग्राम घोषित किया।
मुसहरों को योगी के ही राज में मूस (चूहा) खाने से मुक्ति मिली। उन्हें विकास की मुख्यधारा से जुड़कर बच्चों की शिक्षा के प्रबंध किए। साथ ही थारू जनजाति के 38 गांवों को राजस्व गांव बनाया गया। उन्हें केंद्र और राज्य सरकार की सभी विकासपरक योजनाओं से संतृप्त किया गया। वंचित-उपेक्षित वर्ग के साथ ही सीएम योगी की नजर प्रदेश के समग्र विकास पर भी रही। निवेश, ढांचागत सुविधाओं का विकास, रोजगार, उन्नत कृषि आदि आदि के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं बनाई गईं।
आंकड़ों पर गौर करें तो योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश में 4.68 लाख करोड़ रुपये का निवेश हुआ है, जबकि 2012 से 2017 तक सपा सरकार में 55187 करोड़ रुपये का ही निवेश आया था। बीते पांच वर्ष में 82 लाख औद्योगिक इकाइयां स्थापित हुईं, जबकि इसके पहले के पांच वर्ष में यह संख्या महज 5.30 लाख थी।
औद्योगिक विकास की यह नींव उन्होंने मजबूत कानून व्यवस्था और सिंगल विंडो सिस्टम को लागू करते हुए रखी। अपराध और भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति पर सख्ती से अमल किया गया। इसके परिणाम भी सामने आए। महज पांच वर्ष से भी कम समय में इज आफ डूइंग बिजनेस (कारोबारी सुगमता) की रैंकिंग में उत्तर प्रदेश की रैंकिंग देश में 14वें से दूसरे स्थान पर आ गई।
युवाओं के लिए खोले रोजगार-स्वरोजगार के द्वार : युवाओं की ऊर्जा का प्रदेश और देश हित में योगदान हो, इसके लिए मुख्यमंत्री ने योग्यता के अनुसार नौकरियों और रोजगार पर न केवल ध्यान दिया, बल्कि पूर्व की सरकारों की तुलना में कई गुणा अधिक उपलब्धि भी हासिल की। योगी सरकार में करीब पांच लाख युवाओं को पारदर्शिता के साथ सरकारी नौकरी दी गई। पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में एक लाख से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकी थी। इस सरकार ने 3.5 लाख युवाओं को संविदा पर नौकरी दी तो 20 करोड़ लोगों को एमएसएमई सेक्टर में सेवायोजित किया। इसका परिणाम है कि सपा शासन में 17.5 प्रतिशत रही बेरोजगारी की दर अब 4.1 प्रतिशत पर सिमट गई है।
किसान कल्याण के साथ हुई थी कार्यकाल की शुरुआत : राज्य की कमान संभालते ही योगी ने सबसे पहला निर्णय अन्नदाता के हित में किया। पहली कैबिनेट बैठक में ही 86 लाख लघु-सीमांत किसानों का 36 हजार करोड़ रुपये का ऋण माफ कर दिया गया। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का लाभ भी सर्वाधिक यूपी के ही किसानों को मिला। प्रदेश के किसानों के खाते में करीब 38 हजार करोड़ रुपये की धनराशि भेजी गई। किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान-गेहूं के क्रय और भुगतान का रिकार्ड बना। गन्ना किसानों को लगभग 1.50 करोड़ रुपये गन्ना मूल्य भुगतान करते हुए नई चीनी मिलों को शुरू किया गया।