जब लोकतंत्र ही नहीं बचेगा तो नेता कहाँ होंगे ! जनता को क्या चाहिये, बेहतर,सड़क, चिकित्सा व्यवस्था, पानी,बिजली, तथा अन्य जन सुविधाएं, परन्तु नेताओं की नजर जन सुविधाओं की ओर न हो कर केवल सत्ता प्राप्ति की ओर है !
लख़नऊ : ( आर सी राठौर ) भारत में प्रथम आम चुनाव सम्भवत: सन् 1951-52 में हुये थे ! तब से 2021 तक नेता जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाये हैं ! कहीं मार्ग की दिक्कत है तो कहीं पुल की, गाँवों में विद्युत व्यवस्था आज भी बदहाल है ! आज हम स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं ! 75 वर्ष कम नहीं होते,आज भी भारत की जनता बेरोजगारी, अशिक्षा,अन्य तमाम अभावों से जूझ रही है ! इसको क्या कहा जायेगा? निश्चित रूप से भारत पर राज करने वाली लोकतान्त्रिक सरकारों की अकर्णमन्यता ही कही जायेगी,
सम्भवतः एक राजनीतिक पार्टी द्वारा सन् 1972 में गरीबी हटाओ का नारा दिया गया ! क्या भारत से गरीबी दूर हो गई ? वर्तमान में स्थिति यह है कि राजनेताओं के झूठे वायदों के चलते ! जनता का विश्वास नेताओं तथा लोकतंत्र पर से कम हो रहा है! वर्तमान में सत्ता प्राप्ति के लिये नेता लोग जो हथकंडे अपना रहे हैं ,वह भी एक कारण है ! चुनाव में झूठे वायदे दूसरा कारण है ! लोकसभा, तथा विधानसभा चुनावों में नेता लोग सड़क,पुल,विद्युत तमाम जन सुविधाओं का झूठा वायदा करते हैं,और वह वायदा पूरा करना तो दूर,तमाम,सांसद,विधायक अपने चुनाव क्षेत्र में झांकते तक नहीं ,परिणाम स्वरूप जनता, सांसद,विधायक को झूठे का तगमा पहना देती है ! सांसद,विधायक अक्सर जन सुविधाओं से अपना पल्ला झाड़ते नज़र आते हैं !
अगर सांसद,विधायक जनता से किये गये वायदों के प्रति गम्भीर हो जायें तो भारत की जनता सांसद,विधायकों को गम्भीरता से लेगी ! वर्तमान में जनता सांसद,विधायकों को गम्भीरता से नहीं ले रही है! अब समय आ गया है कि राजनेताओं को लोकतंत्र के बारे में गम्भीरता से सोचना होगा ! जब लोकतंत्र ही नहीं बचेगा तो नेता कहाँ होंगे ! जनता को क्या चाहिये, बेहतर,सड़क, चिकित्सा व्यवस्था, पानी,बिजली, तथा अन्य जन सुविधाएं, परन्तु नेताओं की नजर जन सुविधाओं की ओर न हो कर केवल सत्ता प्राप्ति की ओर है ! वर्तमान मे नेता मंत्री बनने के बाद सत्ता सुख में रम जाता है ! बहुत हुआ तो टीवी के न्यूज चैनलों पर या दैनिक समाचारपत्रों में विज्ञापन के सहारे सपने जनहित के कार्यों का बखान करते हैं पर वास्तव में वो जनहित के कार्यों से कोसों दूर होते हैं,राज नेताओं का जनता से यह झूठ लोकतंत्र पर भारी पड़ रहा है,