हरिशयनी एकादशी के दिन भगवान भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन (योगनिद्रा) के लिए चले जाते हैं। चार माह बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को वह योगनिद्रा से बाहर आते हैं। इन चार महीनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य ठप हो जाते हैं।
गोरखपुर, आषाढ़ शुक्ल एकादशी मंगलवार को है। इसे हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं, क्योंकि इसी दिन भगवान भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन (योगनिद्रा) के लिए चले जाते हैं। चार माह बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को वह योगनिद्रा से बाहर आते हैं। इन चार महीनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य ठप हो जाते हैं। साधुगण इन चार महीनों के लिए भ्रमण का त्याग कर देते हैं। एक स्थान पर रुक जाते हैं और पूरा समय भगवत भजन में व्यतीत करते हैं।
यह है पूजा का समय
ज्योतिषाचार्य के अनुसार 20 जुलाई को सूर्योदय 5:19 बजे और एकादशी तिथि सायं 4:29 बजे तक है। इस दिन अनुराधा नक्षत्र सायं 6:52 बजे तक और शुक्र नामक सौम्य योग सायं 6: 45 बजे तक है। ये सभी संयोग हरिशयनी एकादशी को खास बना रहे हैं। इससे व्रत व दान का असंख्य गुना फल मिलेगा।
सावन से लेकर कार्तिक तक वर्षा का समय होता है। सभी नदी-नाले पानी से भर जाते हैं। पहले के समय में आवागमन कठिन हो जाता था। इसलिए इन चार महीनों को धर्म से जोड़कर कहीं न आने-जाने के लिए बना दिया गया। उसी का पालन हम आज भी करते आ रहे हैं। भगवान बुद्ध ने श्रावस्ती में 27 वर्षा काल व्यतीत किया था।
हरिशयनी महत्वपूर्ण एकादशियों में एक है। चार माह तक फलाहार करते हुए भगवान की पूजा कर सकें तो अति उत्तम है। यदि संभव नहीं है तो एक दिन एकादशी को व्रत रहें और द्वादशी को पारण कर पूजा करें। सावन में शाक, भाद्रपद में दही, अश्विन में दूध व कार्तिक में दाल का सेवन नहीं करना चाहिए। चार माह पूजा-अर्चना में बिताएं। ज्योतिषाचार्य।
नहीं होंगे ये मांगलिक कार्य
इन चार महीनों में विवाह, यज्ञोपवीत, मुंडन, वर वरण, कन्या वरण, वधू प्रवेश, द्विरागमन आदि कार्य नहीं जाएंगे। इसके अलावा नूतन गृह प्रवेश व विशेष यज्ञ का आयोजन भी नहीं होता है। यह भगवान के पूजन-अर्चन, मनन-चिंतन का समय है।