चंडी ने लिखा मैं दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच चुकी हूं जहां इस समय बर्फबारी हो रही है। मेरी भावनाएं उमड़ रही हैं। तीन साल पहले तक मैं ध्रुव की दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी और अब यहां पहुंचना किसी सपने के साकार होने जैसा लग रहा।
लंदन, प्रेट्र। कैप्टन हरप्रीत चंडी ने अकेले दक्षिणी ध्रुव पहुंचकर इतिहास रच दिया। ऐसा करने वाली वह पहली भारतवंशी व अश्वेत महिला हैं। ब्रिटेन निवासी 32 वर्षीय सिख सैन्य अधिकारी ‘पोलर प्रीत’ के नाम से भी जानी जाती हैं। चंडी ने अपनी इस ऐतिहासिक उपलब्धि की घोषणा सोमवार को लाइव ब्लाक पर की। अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में 1,127 किलोमीटर लंबी दुर्गम यात्रा पूरी करने में उन्हें 40 दिन लगे। इस दौरान उन्हें आवश्यक सामग्री से लदे पल्क (सामानवाहक) को खुद खींचना पड़ा। माइनस 50 डिग्री सेल्सियस तापमान व 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली बर्फीली हवा चुनौतियों को और कठिन बनाती रही।
चंडी ने लिखा, ‘मैं दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच चुकी हूं, जहां इस समय बर्फबारी हो रही है। मेरी भावनाएं उमड़ रही हैं। तीन साल पहले तक मैं ध्रुव की दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी और अब यहां पहुंचना किसी सपने के साकार होने जैसा लग रहा है। यहां पहुंचना काफी कठिन था। यह अभियान मेरे लिए काफी अहम था।’ उन्होंने अपनी यात्रा के लिए लाइव ट्रैकिंग मैप अपलोड किया था और बर्फ से घिरे उस क्षेत्र के बारे में नियमित ब्लाग लिखती रहीं।
चंडी का आखिरी ब्लाग था, ’40वां दिन, प्रीत ने अंटार्कटिका की यात्रा पूरी करते हुए इतिहास रच दिया। वह ऐसा करने वाली पहली अश्वेत महिला बन गई है। आप सबकुछ करने में सक्षम हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहां से हैं और कहां से शुरुआत की है, हर कोई कहीं न कहीं से शुरुआत करता है।’
सैन्य चिकित्सकों को प्रशिक्षण देती हैं चंडी
चंडी ब्रिटिश सेना में क्लीनिकल ट्रेनिंग आफिसर हैं और उत्तर-पश्चिम इंग्लैंड के मेडिकल रेजिमेंट में तैनात हैं। उनका प्रारंभिक काम सैन्य चिकित्सकों के लिए शिविर का आयोजन कर उन्हें प्रशिक्षित करना है। फिलहाल वह लंदन में रहते हुए क्वीन मैरीज यूनिवर्सिटी से स्पोर्ट्स एंड एक्सरसाइज मेडिसिन में स्नातकोत्तर (पार्ट टाइम) कर रही हैं। एक एथलीट के रूप में उन्होंने मैराथन व अल्ट्रा मैराथन में हिस्सा लिया है और सैन्य अधिकारी के रूप में कई प्रशिक्षण प्राप्त किए हैं। वह नेपाल व केन्या के साथ-साथ दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में भी तैनात रही हैं।