अनाज के मामले में ऐसे आत्मनिर्भर हुआ मैक्सिको, भारत और पाकिस्तान में भी हो गई हरित क्रांति

एक ऐसा लम्हा, जो करीब 12 साल की मेहनत के बाद साकार हुआ था। फसल को निहारते हुए संघर्ष के पिछले साल सिलसिलेवार आंखों के सामने से गुजरने लगे थे। एक ऐसा सपना साकार हुआ था, जिस पर खुद को भी कभी शक होता था। लगता था, गलत कोशिश में लगे हैं। बंजर हो चले खेतों और बीमार फसलों के दौर में एक भी अच्छी कामयाब फसल असंभव लगती थी। जैसे-जैसे पौधे झूलते-झुकते जाते, वैसे-वैसे किसानों के चेहरे भी लटकते चले जाते थे। किसानों को देखकर रोना आता था। बहुत जमीन थी उन किसानों के पास, लेकिन अन्न इतना भी हाथ नहीं आता था कि आधा साल भी भरपेट कट जाए। फसलों के पीछे तरह-तरह के कीट-कीड़े लग रहते थे, देखते-देखते खेत-दर-खेत फसल खेत हो जाती थी।

कई-कई बालियों से सजा था एक-एक पौधा

दरअसल गेहूं के उन पौधों को देख सहसा विश्वास नहीं होता था। एक-एक पौधा कई-कई बालियों से सजा था। एक-एक बाली में अनेक-अनेक दाने फले थे और एक-एक दाने का आकार देखते बनता था। गेहूं के पौधे और फसल ऐसी भी हो सकती है, किसने सोचा था? देखने वाले किसान ही नहीं, वैज्ञानिक भी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। मेहनत की फसल सामने शानदार लहलहा रही थी। खासकर उन अमेरिकी वैज्ञानिक के लिए तो वह खास भावुकता और खुशी का लम्हा था।

अब किसी किसान का चेहरा नहीं मुरझाएगा

वह वैज्ञानिक लहलहाती फसलों को देख सोच रहे थे कि यह फसल तो दरअसल भुखमरी का इलाज है। दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोगों को पर्याप्त अन्न नसीब नहीं और लाखों लोग हर साल भुखमरी के शिकार हो जाते हैं। फसल रोपते हुए भी उस वैज्ञानिक के मन से यह प्रार्थना निकली थी, ‘हे भगवान, देख लेना, अब तुम्हारे हवाले है।’ अब शानदार फसल गवाह है कि ईश्वर के यहां भी सुनवाई हो गई है। अब किसी किसान का चेहरा नहीं मुरझाएगा, कोई भूखा नहीं सोएगा।

बाग-बाग हो रहे थे प्लांट पैथोलॉजिस्ट नॉर्मन बोरलॉग

यह सोच-सोचकर प्लांट पैथोलॉजिस्ट अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग बाग-बाग हो रहे थे। अमेरिका सरकार, रॉकफेलर फाउंडेशन और मेक्सिको सरकार के मिले-जुले प्रयास से ही बोरलॉग व उनकी टीम को काम करने का मौका मिला था। जिम्मेदारी दी गई थी कि मेक्सिको की फसलों को रोग से बचाना है। एक पौध-रोग विज्ञानी के रूप में जब बोरलॉग मेक्सिको पहुंचे थे, तब उन्हें कदम-कदम पर बेड़ियों का एहसास हुआ था। मेक्सिको में ऐसे-ऐसे कृषि वैज्ञानिक थे, जो खेतों में उतरने को तौहीन समझते थे। कृषि को गंदा काम समझने वाले सफेदपोश वैज्ञानिक अपने कारिंदों के दम पर ही अपने नौकरी बजाते थे।

बोरलॉग की रातें खेतों-खलिहानों में स्लीपिंग बैग के भरोसे कटती थीं

बोरलॉग ने ऐसे वैज्ञानिकों को साफ फरमान सुना दिया कि खेतों में उतरना होगा। ऐसा कतई नहीं चलेगा कि खेती को कमतर काम मानेंगे और भोजन रोज तीनों वक्त चाहिए? खुद बोरलॉग ज्यादातर रातें खेतों-खलिहानों में स्लीपिंग बैग के भरोसे काटते थे। उन्होंने अपने जुनून के दम पर ही मैक्सिको के दो किनारों पर दो तरह के परिवेश में फसल विकास का काम शुरू किया। बोरलॉग को याद आ रहा था कि कैसे उन्हें दो जगहों पर खेती से रोका गया था और उन्होंने इस्तीफा देने की घोषणा कर दी थी, तब तक मेक्सिको के बडे़ किसानों को पता लग चुका था कि खेती में कुछ नया और अच्छा होने जा रहा है। वे बोरलॉग के साथ खडे़ हो गए थे।

छह हजार किस्मों को जोड़ा-घटाया तब जाकर मिला इलाज

गेहूं की लगभग छह हजार किस्मों को जोड़ा-घटाया गया। सबसे पहले गेहूं को एक-एक कर बीमारियों से बचाया गया। गेहूं की कुछ ऐसी किस्में तैयार हो गईं, जो परंपरागत बीमारियों से महफूज थीं। उत्पादन कुछ बढ़ा, लेकिन नई समस्या खड़ी हो गई। निरोग पौधे इतने लंबे होने लगे कि झुकने-टूटने लगे। तब जापान में विकसित बौने पौधों की किस्मों के साथ मेक्सिको में विकसित पौधों का मेल किया गया। नतीजा आज सामने था और बोरलॉग किसानों को बता रहे थे कि पौधा छोटा होगा, तो बड़ा होकर झुकेगा नहीं, और अपनी ताकत का उपयोग ज्यादा अनाज देने में करेगा।

और आत्मनिर्भर हो गया मैक्सिको

कुछ ही वषों में मैक्सिको अनाज के मामले में न केवल आत्मनिर्भर हुआ, बल्कि निर्यात भी करने लगा। बोरलॉग के सहयोग से भारत और पाकिस्तान में भी हरित क्रांति हो गई। पाकिस्तान में अनाज उत्पादन 1965 में 50 लाख टन था, जो 1970 में 80 लाख टन हो गया और इसी दौरान भारत में उत्पादन 120 लाख टन से 200 लाख टन हो गया। नॉर्मन बोरलॉग (1914-2009) दुनिया में हरित क्रांति के जनक हैं। अरबों इंसानों को भूख से बचाने का श्रेय उन्हें दिया जाता है। वह पहले ऐसे कृषि वैज्ञानिक हैं, जिन्हें शांति के लिए नोबेल से नवाजा गया। वह बार-बार यह सलाह दे गए कि किसी भी कृषि योजना में किसानों को साथ लेकर चलना।

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