पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगान शरणार्थियों को पूर्ण नागरिकता देने का वादा करने के तीन साल बाद भी प्रतिबद्धता पूरी नहीं की है। अल अरबिया पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार यह वादा 18 सितंबर 2018 को किया गया था। तब वह प्रधानमंत्री चुने गए थे।
इस्लामाबाद, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगान शरणार्थियों को पूर्ण नागरिकता देने का वादा करने के तीन साल बाद भी प्रतिबद्धता पूरी नहीं की है। अल अरबिया पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार यह वादा 18 सितंबर, 2018 को किया गया था। तब वह प्रधानमंत्री चुने गए थे। अब अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे ने इस क्षेत्र में अस्थिरता पैदा कर दी है। इसके परिणामस्वरूप अफगान शरणार्थियों के लिए और अधिक जटिलताएं पैदा हुई हैं।
अल अरबिया पोस्ट के अनुसार पाकिस्तान में पिछले चार दशकों से रहने के बाद भी अफगान शरणार्थी नागरिक अधिकारों, कानूनी सुरक्षा और सामाजिक स्वीकृति जैसी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। उनसे अभी भी ‘बाहरी’ जैसा व्यवहार होता है। इसके कारण युवा अफगानों की शादी भी नहीं हो पाती। उनकी राष्ट्रीयता अविश्वास का कारण बनती है। वे पाकिस्तान में अवांछित हैं।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगान शरणार्थियों को मानवीय नजरिये से देखता है। मार्च 2020 में वाशिंगटन स्थित वैश्विक संगठन सेंटर फार ग्लोबल डेवलपमेंट (GD) ने ‘अफगान शरणार्थियों को पूर्ण पाकिस्तानी नागरिकता देने की बात करते हुए कहा था कि अनुमानित 15 लाख पंजीकृत शरणार्थियों और बगैर पंजीकरण वाले अन्य दस लाख लोगों की मौजूदगी बताता है कि पाकिस्तान की सरकार इन्हें पहचानने से हिचक रही है।
इसने कहा कि अफगानिस्तान की राजनीतिक स्थिति भी पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्वों को लागू कर सकती है। कन्वेंशन का अनुच्छेद 1 (ए) (2) स्पष्ट रूप से एक शरणार्थी को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित करता है, जिसे अपने देश में उत्पीड़न का डर है। अफगान शरणार्थियों को नागरिकता देने पर आपत्तियों के खिलाफ इसने कहा कि नागरिकता देने के खिलाफ दो मुख्य तर्क प्रस्तावित हैं। पहला, कि पाकिस्तान पहले से ही गरीब है और अधिक लोगों का बोझ नहीं उठा सकता है।
यह तर्क सही नहीं है, क्योंकि अफगान शरणार्थी पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में सालाना 350 मिलियन अमेरिकी डालर का योगदान देता है। यह राशि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं से मिलने वाली वार्षिक 150 मिलियन अमेरिकी डालर के अतिरिक्त है। इसके अलावा अफगान शरणार्थी पेशावर, कराची और खैबर-पख्तूनख्वा के कई हिस्से में व्यवसाय भी चलाते हैं। मैन्युफैक्चरर्स की बढ़ती मांग के साथ-साथ रोजगार प्रदान करते हैं। अल अरबिया पोस्ट ने बताया कि निर्माण और वेस्ट ट्रीटमेंट सेक्टर में उनका योगदान भी अमूल्य है। दूसरा तर्क पाकिस्तान की सुरक्षा चिंताओं को लेकर दिया जाता है। कहा जाता है कि अफगान शरणार्थियों के अफगानिस्तान में आतंकवादियों से संबंध हैं। शरणार्थियों की आड़ में उन्हें नागरिकता मिल सकती है ।