एक उप निरीक्षक को जितना वाहन भत्ता मिलता है उतने वाहन भत्ते में वह अपने क्षेत्र का पूरे सप्ताह भ्रमण नहीं कर सकता तथा अन्य खर्चे जो विभाग से ही सम्बन्धित होते हैं। इन बातों को पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों से लेकर उ०प्र०सरकार तक जानती है।
लखनऊ, उत्तर प्रदेश ; [अनिल मेहता] बहुत ही आश्चर्य होता है जब पुलिसकर्मिर्यों के द्वारा अवैध वसूली की खबरें पढ़ता या देखता हूं ! जिस प्रमुखता से पुलिसकर्मियों द्वारा अवैध वसूली की खबरें न्यूज चैनल ,सोशल मीडिया, समाचारपत्र प्रकाशित करते हैं तथा दिखाते हैं। अन्य विभागों की अवैध वसूली क्यों नहीं उसी प्रमुखता से दिखाते? अगर पुलिस द्वारा अवैध वसूली की वास्तविक जांच की जाये तो उनका अधिकतर पैसा विभाग पर ही खर्च होता है। अगर थानाध्यक्ष से लेकर सिपाही तक की बात की जाते तो यह बात स्पष्ट रुप से समझ में आती है। पहले बात थानाध्यक्ष की, अधिकतर थानाध्यक्ष पुलिस विभाग की जीप में अपने पैसों से पेट्रोल, डीजल डलवाते मिलेंगे, अब थानाध्यक्ष भले ही इस बात को न माने पर सत्यता यही है। साथ ही थाने में आने वाले अतिविशिष्ट व्यक्तियों की खातिरदारी वो अलग,होली,दिवाली भी कुछ लोगों को कृतार्थ करना पड़ता है।
ऐसा ही कुछ एक चौकी प्रभारी,उप निरीक्षक के साथ होता है। एक उप निरीक्षक को जितना वाहन भत्ता मिलता है उतने वाहन भत्ते में वह अपने क्षेत्र का पूरे सप्ताह भ्रमण नहीं कर सकता तथा अन्य खर्चे जो विभाग से ही सम्बन्धित होते हैं। इन बातों को पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों से लेकर उ०प्र०सरकार तक जानती है। अब बात आती है पुलिस विभाग के सिपाहियों की। घटनास्थल पर पांच मिनट में पहुंचने के आदेश का पालन करने वाले सिपाहियों को साईकिल भत्ते पर पांच मिनट में घटनास्थल पर पहुंचना होता है ।
वर्तमान में स्थिति में ये है कि अधिकांश सिपाही बाइक से ड्यूटी कर रहे हैं। इसके अलावा सिपाहियों के अन्य खर्चे हैं जो विभागीय हैं। अन्य विभागों में अवैध वसूली करने वाले कमाई को घर ले जाते हैं । इस लेख में मैं पुलिस की अवैध वसूली को क्लीन चिट नहीं दे रहा हूं बल्कि उ०प्र० सरकार को अवैध वसूली के बारे में समझाने प्रयास कर रहा हूं कि अवैध वसूली किस तरह से रूक सकती है । अगर उ०प्र०सरकार पुलिस विभाग में अवैध वसूली को अगर रोकना चाहती है तो उसे पुलिसकर्मियों की आवश्यकताओं को समझना होगा।