आडवाणी समेत 32 आरोपितों को बरी करने के खिलाफ याचिका हाई कोर्ट में खारिज

अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री एलके आडवाणी तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह सहित सभी 32 आरोपितों को बरी कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ दाखिल याचिता को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

 

लखनऊ । इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री एलके आडवाणी सहित सभी 32 आरोपितों को बरी करने के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने इस याचिका को विचार योग्य नहीं पाया है।

यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा एवं जस्टिस सरोज यादव की पीठ ने अयोध्या निवासी अपीलार्थी हाजी मोहम्मद अहमद और सैयद अखलाक अहमद की ओर से दाखिल अपील पर पारित किया। विशेष अदालत ने 30 सितंबर, 2020 को विवादित ढांचा विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री एलके आडवाणी, तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह सहित सभी 32 आरोपितों को बरी कर दिया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील दायर कर कहा गया था कि विचारण अदालत ने पत्रावली पर उपलब्ध सुबूतों की अनदेखी कर आरोपितों को बरी कर दिया।

इलाहाबाद हाई कोर्ट में अयोध्या निवासी हाजी महबूब अहमद व सैयद अखलाक अहमद की ओर से याचिका दाखिल कर ढांचा विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी सहित अन्य सभी अभियुक्तों को बरी करने के सत्र अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने अपना आदेश बाद में सुनाए जाने के लिए सुरक्षित रख लिया था।

अपनी आपत्ति में राज्य सरकार और सीबीआइ ने कहा था कि दो अपीलकर्ता शिकायतकर्ता या मामले के शिकार नहीं थे और इसलिए वे निचली अदालत के 32 आरोपियों को बरी करने के फैसले के खिलाफ अजनबी की तरह अपील नहीं कर सकते। पोषणीयता के बिंदु पर सुनवाई के बाद पीठ ने अपना आदेश सुरक्षित कर लिया था।

बता दें कि कारसेवकों द्वारा 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढाचे को ध्वस्त कर दिया गया था। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 30 सितंबर, 2020 को लखनऊ की विशेष सीबीआइ अदालत ने आपराधिक मुकदमे में फैसला सुनाया और सभी आरोपियों को बरी कर दिया। ट्रायल जज ने न्यूज पेपर कटिंग, वीडियो क्लिपिंग को सुबूत के तौर पर मानने से इनकार कर दिया था।

हाई कोर्ट में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि कोर्ट ने आरोपितों को दोषी नहीं ठहराने में गलती की है, जबकि पर्याप्त सिबूत रिकॉर्ड में थे। अपीलकर्ताओं ने आरोप लगाया कि ट्रायल जज ने सही परिप्रेक्ष्य में साजिश के सुबूतों की अनदेखी की थी।

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