इमोशनल कार्ड: वेस्ट यूपी में आंसुओं ने बदली कई बार बाजी, जानिए कब-कब क्या हुआ

आंसुओं में बहुत ताकत होती है। ये बड़े परिवर्तन कर देते हैं। माहौल बदल देते हैं। बाजी पलट देते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग सब कुछ सहन कर सकते हैं लेकिन आंसू नहीं। किसी को रोता देख वे भावनात्मक रूप से उससे जुड़ जाते हैं। वेस्ट यूपी की सियासत के लिए तो आंसू आक्सीजन हैं। शुक्रवार को मुजफ्फरनगर पंचायत में भी आंसू ही राजनीतिक आक्रोश बने। एक तरफ राकेश टिकैत के आंसू थे तो दूसरी ओर मुजफ्फरनगर दंगे के दंश और आंसू। जो हुआ सो हुआ, अब साथ आ जाओ के संदेशके साथ पंचायत समाप्त हुई। पंचायत में अजित सिंह को हराने का गम भी था तो बिरादरी को फिर से जोड़ने का जज्बा भी, यह सब आंसुओं की ताकत थी। आइये बताते हैं, आंसुओं ने कब-कब गाजीपुर की तरह बाजी पलटी।

1985 : चौधरी चरण सिंह ने जिता दिया चुनाव
बागपत जिले का विधानसभा क्षेत्र है-छपरौली। 1985 में चौधरी चरण सिंह ने अपनी बेटी सरोज वर्मा को टिकट दिया। उनके ही लोगों ने यह कहकर विरोध किया कि वंश परंपरा आगे बढ़ाई जा रही है। चुनाव संकट में था। कभी प्रचार के लिए नहीं आने वाले चौधरी साहब बेटी के लिए आए। और थाने के सामने भावुक होकर बैठ गए। सारे चौधरी इकट्ठा हो गए….हमारा चौधरी तो रोन लग रहा…। फिर क्या था, सोमपाल शास्त्री मामूली अंतर से चुनाव हार गए। यह अलग बात है कि सरोज वर्मा को अभी तक के सबसे कम वोट (33932) मिले।

1971 : मुजफ्फरनगर चुनाव-चौधरी चरण सिंह हारे
1971 में चौधरी साहब पहली बार लोकसभा का चुनाव मुजफ्फरनगर से लड़े। लेकिन सीपीआई के विजयपाल से पचास हजार वोटों से हार गए। चौधरी साहब आहत थे। उनके समर्थक भी खूब रोए कि यह क्या हो गया। इसके बाद चौधरी चरण सिंह ने कभी मुजफ्फरनगर से चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन बागपत में चौधरी चरण सिंह के समर्थकों ने उनका एकछत्र राज कायम करा दिया।

998 : अजित सिंह हारे
बागपत में चौधरी चरण सिंह के बाद अजित सिंह मैदान में आए। 1998 में वह भाजपा के सोमपाल शास्त्री से 44 हजार मतों से हार गए। इस अप्रत्याशित हार पर लोग फफक-फफक कर रोए। बागपत में चूल्हे तक नहीं जले। अगले ही साल इन आंसुओं का हक अदा किया गया। सोमपाल शास्त्री दोगुने अंतर से अजित सिंह से हार गए।

तीन बार चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के आखों में भी आए आंसू
भारतीय किसान यूनियन के नेता महेंद्र सिंह टिकैत के सामने तीन मौके आए जब वह भावुक हुए। बोट क्लब दिल्ली (25  अक्तूबर 1988) पर 14 राज्यों के पांच लाख किसानों के बीच वह मुस्तैदी से डटे रहे। लेकिन जब आंसू गैस और लाठीचार्ज हुआ तो टिकैत रोने लगे….मैं अपने किसानों के साथ यह नहीं होने दूंगा। इससे पहले मेरठ कमिश्नरी (27 जनवरी 1988) के घेराव पर भी टिकैत उस वक्त रोये थे जब फोर्स ने कमिश्नरी को घेर लिया था। रजबपुर आंदोलन (मार्च 1988) में जेल भरो आंदोलन के समय भी टिकैत आहत और भावुक हो गए थे।

… और अब राकेश टिकैत
चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के ज्येष्ठ पुत्र हैं राकेश टिकैत। बहुत कुछ चीजें उनको अपने पिता से विरासत में मिली हैं। गाजीपुर सीमा पर राकेश टिकैत ने आक्रोश और आंसुओं से गुरुवार को बाजी ही पलट दी। जहां उनकी गिरफ्तारी की तैयारी हो रही थी, वहां उनके रोते हुए वीडियो ने पुलिस प्रशासन को बैकफुट पर ला दिया। यह वीडियो सोशल मीडिया पर भी छाया रहा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *