हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हर वर्ष नरसिंह जयंती मनाई जाती है। इस दिन वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की विधिपूर्वक पूजा करते हैं।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हर वर्ष नरसिंह जयंती मनाई जाती है। इस दिन वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। इस वर्ष नरसिंह जयंती 25 मई दिन मंगलवार को है। नरसिंह जयंती के दिन भगवान नरसिंक की पूजा करने से व्यक्ति को निर्भयता और सुरक्षा प्राप्त होता है। जागरण अध्यात्म में आज हम जानते हैं कि नरसिंह जयंती की तिथि, मुहूर्त एवं इसका धार्मिक महत्व क्या है।
नरसिंह जयंती तिथि
इस वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 24 मई की देर रात 12 बजकर 11 मिनट पर हो रहा है। इसका समापन अगले दिन 25 मई को रात 08 बजकर 29 मिनट पर हो रहा है। उदया तिथि 25 मई को प्राप्त हो रही है, ऐसे में नरसिंह जयंती 25 मई को मनाई जाएगी।
पारण समय
जो लोग नरसिंह जयंती का व्रत रखेंगे, उनको 26 मई को प्रात: 06 बजकर 01 मिनट के बाद पारण कर व्रत को पूर्ण करना है।
नरसिंह जयंती पूजा मुहूर्त
नरसिंह जयंती के दिन शाम को पूजा के लिए 02 घंटे 38 मिनट का समय प्राप्त हो रहा है। आप 25 मई को शाम 04 बजकर 32 मिनट से शाम 07 बजकर 38 मिनट के मध्य तक भगवान नरसिंह की पूजा कर सकते है। शाम की पूजा का समय इसलिए है क्योंकि भगवान विष्णु ने असुर राज हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए दिन के ढलने और शाम के प्रारंभ के मध्य का समय चुना था। इस समय काल में ही उन्होंने नरसिंह अवतार लिया था।
नरसिंह जयंती का महत्व
असुर राज हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानता था और अपनी प्रजा को स्वयं की पूजा करने के लिए प्रताड़ित करता था। उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था। उसने कई यातनाएं झेलने के बाद भी भगवान विष्णु की आराधना नहीं छोड़ी। हिरण्यकश्यप को वरदान प्राप्त था कि उसे न तो मनुष्य और न ही पशु मार सकता है, न ही घर के अंदर और न ही घर के बाहर उसका मारा जा सकता है। न ही दिन में और न ही रात में उसका वध हो सकता है। न ही अस्त्र से मरेगा और न ही शस्त्र से। न ही आकाश में और न ही धरती पर उसको मारा जा सकता है।
भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने दिन और रात के मध्य के समय में आधे मनुष्य और आधे सिंह का शरीर धारण कर नरसिंह अवतार लिया। वे खंभा फाड़कर नरसिंह अवतार में प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप को घसीटकर मुख्य दरवाजे के बीच अपने पैर पर लिटा दिया। अपने शेर जैसे तेज नाखुनों से उसका पेट फाड़कर वध कर दिया। इस प्रकार से उन्होंने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। उस दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। उस दिन से हर वर्ष इस तिथि को नरसिंह जयंती मनाई जाती है।