यूपी में बिजली व्यवस्थ ध्वस्त होने का एक कारण कर्मचारियों की कमी भी है। इस संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व ऊर्जा मंत्री को विवरण भेज दिया गया है।
लखनऊ ; उत्तर प्रदेश की बिजली व्यवस्था ध्वस्त होने की बड़ी वजह कर्मचारियों की कमी भी है। फीडरों की निगरानी में पर्याप्त संख्या में कर्मी न होने की वजह से समस्याओं के निस्तारण में लंबा वक्त लग रहा है। ऐसे में लोगों को घंटों कटौती का सामना करना पड़ता है। प्रदेश में मार्च 2012 में स्वीकृत 61,043 नियमित पदों में से 42,683 पद भरे थे। मार्च 2021 में यह संख्या घटकर 37,174 हो गई है। प्रदेश में 6,200 शहरी व 13,622 ग्रामीण फीडर है। मानक के अनुसार फीडरों की निगरानी के लिए कुल 2,37,864 कर्मचारी (शहरी फीडर पर 74,400 और ग्रामीण फीडरों पर 1,63,464 कर्मचारी) होने चाहिए। इसी तरह प्रदेश में 33/11 केवी के 4,600 विद्युत उपकेंद्र के संचालन के लिए 27,600 संविदा कर्मी होने चाहिए। इस तरह कुल 2,65,464 संविदा कर्मी की जरूरत है। जबकि सिर्फ 68 हजार कर्मचारी ही कार्यरत हैं।
राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव जितेंद्र सिंह गुर्जर ने बताया कि संविदा कर्मियों की कमी को लेकर सोमवार को मुख्यमंत्री और ऊर्जा मंत्री को विवरण भेजा गया है। इसमें सुधार करके लोकल फॉल्ट होने पर तत्काल आपूर्ति सुचारु की जा सकेगी। इसी तरह संसाधनों की कमी के बारे में भी जानकारी दी गई है।
बिजली उपभोक्ता बढ़े, भार बढ़ा, पर नहीं बढ़े संसाधन
प्रदेश में 50 फीसदी से ज्यादा ट्रांसफर्मर ओवरलोड चल रहे हैं। यही वजह है कि बिजली की पर्याप्त व्यवस्था होने के बाद भी उपभोक्ताओं को नहीं मिल पा रही है। वर्ष 2012 में उपभोक्ताओं की संख्या करीब 1.27 लाख और भार 33,448 मेगावाट था। अप्रैल 2023 में बिल जमा करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या 3.29 लाख और भार 67,882 मेगावाट पहुंच गया। वर्ष 2017 में सौभाग्य योजना आने के बाद ग्रामीण क्षेत्र में करीब एक लाख किमी एलटी एबीसी बंच केबल लगाई गई। ईआरपी के स्टॉक डाटा के अनुसार 18 जून 2023 तक प्रदेश में एलटी केबल सिर्फ 59 किमी ही है। इससे स्पष्ट है कि हर जिले में एक किमी भी एलटी केबल नहीं है। इसी तरह स्टोर में रखे गए ज्यादातर ट्रांसफार्मर दो से तीन बार रिपेयर हो चुके हैं। उनकी कार्य क्षमता कम हो गई है। ऐसे में 10 एमबीए और 5 एमबीए के नए पावर ट्रांसफार्मर लगाने की जरूरत है।