पीएलओएस नेगलेक्टेड ट्रापिकल डिजिजेज पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार नई वैक्सीन वायरस के स्पाइक प्रोटीन के बदले इसके डीएनए का इस्तेमाल करती है। स्पाइक प्रोटीन के जरिये ही वायरस मानव कोशिका में प्रवेश कर उसे संक्रमित करता है।
ताइपे, पीटीआइ। कोरोना के खिलाफ जंग में एक डीएनए वैक्सीन ने नई उम्मीद जगाई है। ताइवान के विज्ञानियों ने डीएनए आधारित कोरोना वैक्सीन का विकास किया है। चूहों पर परीक्षण के दौरान देखा गया कि इस वैक्सीन से लंबे समय के लिए एंटीबाडी का निर्माण होता है। मौजूदा समय में उपलब्ध कुछ टीके आरएनए या एमआरएनए के संदेशों पर निर्भर करते हैं। ये मानव प्रतिरक्षा तंत्र को सार्स-सीओवी-2 वायरस की पहचान करना सिखाते हैं, जिससे कोरोना का संक्रमण होता है। ज्यादातर वायरस में या तो आरएनए या डीएनए की जेनेटिक सामग्री होती है। सार्स-सीओवी-2 वायरस में आरएनए की आनुवंशिक सामग्री होती है।
पीएलओएस नेगलेक्टेड ट्रापिकल डिजिजेज पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार नई वैक्सीन वायरस के स्पाइक प्रोटीन के बदले इसके डीएनए का इस्तेमाल करती है। स्पाइक प्रोटीन के जरिये ही वायरस मानव कोशिका में प्रवेश कर उसे संक्रमित करता है। डीएनए और एमआरएनए, दोनों टीके वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय करने के लिए आनुवंशिक सामग्री का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, डीएनए वैक्सीन को कम खर्चे पर तेजी से बनाया जा सकता है और इसके परिवहन में कम तापमान की आवश्यकता भी नहीं होती है।
शोधकर्ताओं का कहना है हाल के क्लीनिकल ट्रायल से पता चलता है कि एचआइवी-1, जीका वायरस, इबोला वायरस और इंफ्लुएंजा वायरस के खिलाफ डीएनए वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी है। अपने हालिया अध्ययन में नेशनल हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट, ताइवान के शोधकर्ताओं ने ऐसी वैक्सीन का विकास किया है, जो सार्स-सीओवी-2 स्पाइक प्रोटीन को एनकोड करने के लिए डीएनए का इस्तेमाल करती है।