अब उत्तर प्रदेश में निजी स्कूलों को शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। उन्हें स्कूल में दाखिला लेने वाले और पढ़ने वाले गरीब बच्चों का विवरण इस पोर्टल पर दर्ज करना होगा। शुल्क प्रतिपूर्ति और वित्तीय सहायता की मांग को भी पोर्टल पर दर्शाना होगा।
लखनऊ,, निश्शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के तहत गरीब बच्चों को प्रवेश देने वाले निजी स्कूलों को अब सरकार से शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए सारा विवरण अनिवार्य रूप से ऑनलाइन देना होगा। शुल्क प्रतिपूर्ति में गड़बड़ी रोकने और पारदर्शिता के लिहाज से उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग ने यह नई व्यवस्था लागू की है। विभाग ने इसके लिए पोर्टल विकसित किया है।
अब उत्तर प्रदेश में निजी स्कूलों को शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। उन्हें स्कूल में दाखिला लेने वाले और पढ़ने वाले गरीब बच्चों का विवरण इस पोर्टल पर दर्ज करना होगा। शुल्क प्रतिपूर्ति और वित्तीय सहायता की मांग को भी पोर्टल पर दर्शाना होगा। निजी स्कूलों में दाखिला लेने और पढ़ने वाले बच्चों की संख्या के सत्यापन की जिम्मेदारी संबंधित खंड शिक्षा अधिकारी की होगी। बच्चों की संख्या के बारे में खंड शिक्षा अधिकारी से प्रमाण पत्र लेने के बाद ही जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी पोर्टल पर इसे सत्यापित करेंगे।
स्कूलों को शुल्क प्रतिपूर्ति करते समय वे यह भी सुनिश्चित करेंगे कि इस बारे में पहले तो कोई भुगतान नहीं हुआ है। इस नई व्यवस्था को लागू करने के लिए महानिदेशक स्कूल शिक्षा विजय किरन आनंद ने सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिया है। अभी तक यह व्यवस्था मैनुअल थी जिसे अब ऑनलाइन करने का निर्देश दिया गया है।
शैक्षिक सत्र 2020-21 में आरटीई अधिनियम के तहत प्रदेश में लगभग 85000 बच्चों ने निजी स्कूलों में दाखिला लिया था। गौरतलब है कि निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 12 (1) (ग) के तहत गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों को पड़ोस के निजी विद्यालय में दाखिला लेने की व्यवस्था की गई है। इसमें कहा गया है कि निजी स्कूल कक्षा एक की 25 फीसद सीटों पर ऐसे गरीब बच्चों को दाखिला देंगे। राज्य सरकार इन गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए निजी स्कूलों को 450 रुपये प्रति माह की दर से शुल्क प्रतिपूर्ति करती है।