चार- चार महिला चिकित्सक, फिर भी स्टॉफ नर्स के भरोसे प्रसव,

स्वास्थ्य कर्मियों और वहां के लोगों का कहना है कि ऐसा एक दिन का नहीं है। सप्ताह में एक दो बार ही चिकित्सक आती हैं

भरावन (हरदोई): अधिकांश सीएचसी पर स्टाफ नर्स और आशा बहू ही प्रसव कराती हैं। भरावन सीएचसी में कहने को तो चार चार महिला चिकित्सक हैं, लेकिन बुधवार को एक भी चिकित्सक नहीं आईं। स्टाफ नर्सों ने ही प्रसव कराए। हालांकि स्वास्थ्य कर्मियों और वहां के लोगों का कहना है कि ऐसा एक दिन का नहीं है। सप्ताह में एक दो बार ही चिकित्सक आती हैं।

सीएचसी पर हर माह करीब 100 से 150 प्रसव होते हैं। सीएचसी पर चार महिला चिकित्सक डा. अस्मिता, डा. स्वेताराज, डा. जैता और डा. कामिनी तैनात हैं, लेकिन बुधवार को कोई नहीं दिखी। अस्पताल में आईं झलौली की शीतल देवी, ढुढइयाखेड़ा की संगीता, धौकलखेड़ा की पप्पी, घेरवा की पूनम का प्रसव नर्स नीलू रावत व नेहा ने कराया। अस्पताल में आई महिलाओं का कहना था कि उन्हें तो नर्सों का ही सहारा है। चिकित्सक तो मिलती ही नहीं।

कहने को तो सीएचसी को पुरस्कार भी मिल चुका है, लेकिन पेयजल के लिए हैंडपंप खराब है तो नाला बंद होने से चिकित्सकों के आवास के बाहर गंदा पानी भरा रहता है। एक सफाई कर्मचारी है, जिससे साफ सफाई भी नहीं सही से हो पाती। चिकित्सकों का कहना है कि बिजली की समस्या हमेशा रहती है। 26 एचआरडी 02

डाक्टर साहब आई ही नहीं। प्रसव के लिए आए थे तो नर्स ने ही प्रसव कराया। कमरे में पंखा तक नहीं है, गर्मी में प्रसूताएं परेशान रहती हैं।

कंचन देवी निवासी कसियापुर 26 एचआरडी 03

अस्पताल में गंदगी रहती है। जांच के का भी कोई इंतजाम नहीं है। अगर चिकित्सकों से जांच के लिए कहो या फिर कोई बात बताओ तो सीधे लखनऊ रेफर कर देते हैं।

संजू, निवासी भैसापुर –अस्पताल की एक महिला चिकित्सक की कोविड एल-टू हास्पिटल में ड्यूटी लगी है। तीन महिला चिकित्सक हैं वह आती हैं। महिलाओं को समुचित उपचार दिया जाता है। —डा. राजेंद्र कुमार, अधीक्षक,

कोरोना की दूसरी लहर ने स्वास्थ्य सेवाओं को घुटनों पर ला दिया है। आनन-फानन अस्थायी कोविड अस्पताल बनाने पड़े। यह नौबत इसलिए आई क्योंकि हमारे पास जो इंफ्रास्ट्रक्चर है वह बदहाली का शिकार है। गांव में इन स्वास्थ्य केंद्रों पर इलाज तो दूर मूलभूत सुविधाएं ही मिल जाएं तो बहुत है। डॉक्टर साहब रुके भी कैसे, भवन खराब हैं। रुई, सीरिज, मरहम, और टेबलेट तक की व्यवस्था ठेकेदारों के चुंगल में है। स्टाफ की कमी तो कहीं खराब उपकरण.. ऐसे में लड़ाई किस बूते पर लड़ेंगे। अगर भविष्य में एक और लहर आई तो क्या इसी तरह अस्थायी अस्पताल बनाते रहेंगे। आग लगने पर कुआं खोदने की परंपरा से निजात पाने का यही तरीका है कि जो जहां रहे उसे वहीं इलाज देने के दावे को हकीकत में बदला जाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *