तालिबान के प्रभुत्व का सीधा असर चीन रूस और पाकिस्तान पर ही पड़ने वाला है। तालिबानी प्रभाव से सर्वाधिक अस्थिरता इन्हीं तीन देशों में खड़ी होने वाली है। यही कारण है कि उक्त देश तालिबान से संबंध बनाने के लिए उतावले हैं।
काबुल, एजेंसी। अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के फैसले मात्र से पूरे क्षेत्र का राजनीतिक समीकण बदल गया है। अमेरिकी सैनिकों के हटने के फैसले के बाद तालिबान के समर्थन में चीन, रूस और पाकिस्तान खुलकर आ चुके हैं। हालांकि, भारत ने अपना पत्ता नहीं खोला है। भारत लगातार कहता आया है कि वह अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ है। अगर अफगानिस्तान के भौगोलिक स्थिति को देखे तो यह साफ है कि तालिबान के प्रभुत्व का सीधा असर चीन, रूस और पाकिस्तान पर ही पड़ने वाला है। तालिबानी प्रभाव से सर्वाधिक अस्थिरता इन्हीं तीन देशों में खड़ी होने वाली है। यही कारण है कि उक्त देश तालिबान से संबंध बनाने के लिए उतावले हैं। आखिर तालिबान के प्रभुत्व बढ़ने से किस देश के लिए क्या संभावनाएं हैं और क्या खतरे हैं।
रूस का नुकसान ज्यादा, लाभ कम
- अफगानिस्तान में तालिबान का बढ़ता प्रभुत्व रूस के लिए फायदा कम और नुकसान ज्यादा है। 1980 के अंत में रूस को जिस तरह से अफगानिस्तान से परास्त होकर बाहर निकलना पड़ा था। एकदम उसी तर्ज पर 2021 में अमेरिका भी अफगानिस्तान से बाहर हुआ है।
- दरअसल, अमेरिकी सैनिकों के बाहर निकलते ही चीन का प्रभाव तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान समेत समूचे मध्य एशियाई के देशों में बढ़ जाएगा। यह पूरा क्षेत्र रूस का आंगन कहलाता है। यह देश पहले सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे।
- जाहिर है कि अगर ड्रैगन का प्रभाव इस क्षेत्र में बढ़ता है तो रूस को डर है कि उसकी साख कम होगी। रूस को दूसरा सबसे बड़ा नुकसान यह है कि अफगानिस्तान से अफीम और हेरोइन की तस्करी कई गुना बढ़ जाएगी। इसका खामियाजा रूस को बिगड़ती कानून-व्यवस्था के रूप में झेलना पड़ सकता है।
- हालांकि, रूस इस बात पर संतोष कर सकता है कि 1980 के अंत में जिस तरह से वह अफगानिस्तान से बाहर हुआ था आज उसी तर्ज पर अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से बाहर निकल रहे हैं। ऐसे हालात में रूस को शीत युद्ध का बदला पूरा होता दिखाई दे रहा है।
सड़क पर आ सकता है पाकिस्तान, बंद हो सकती है आर्थिक मदद
- अमेरिकी सैनिकों के हटने के बाद पाकिस्तान को पश्चिमी दुनिया से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर मिलने वाली आर्थिक मदद की संभावना समाप्त हो सकती है। पश्चिमी देशों से संबंध ठीक रखने के लिए पाक यह दिखाना चाहता है कि वह तालिबान को नियंत्रित कर धार्मिक अतिरेक की सीमाएं लांघने से रोक सकता है। दुनिया भी तालिबान को पाकिस्तान का ही सब्सिडियरी मान रही है, मगर खुद पाकिस्तान को इस बात का शक है कि वह तालिबान को काबू करने में अक्षम होगा।
- माना जा रहा है कि यदि तालिबान सीधे रूस, चीन और भारत से संबंध स्थापित कर लिए तो उसे पाकिस्तान की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। अगर तालिबान ने डूरंड लाइन का मसला उठाते हुए सीमा विवाद छेड़ दिया तो पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा भी अस्थिर हो जाएगी।
- पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान का दखल भी बढ़ेगा। पाक को यह चिंता जरूर सता रही होगी कि तालिबान के बढ़ते प्रभुत्व के कारण उस तरह से नियंत्रण नहीं रह सकेगा जैसा की पूर्व में था। इस बात तालिबान पहले से मजबूत स्थिति में उभर कर आया है। ऐसे में तालिबान को नियंत्रित करना पाक के लिए एक मुश्किल भरा काम होगा।
चीन की क्या है बड़ी चिंता, अमेरिका के बाहर होने से गदगद
- चीन अपनी पश्चिमी सीमा पर आतंकवाद के बढ़ते खतरे की वजह से चिंतित है। यही कारण है कि वह तालिबान को अपने खेमे में शामिल करने के लिए उतावला है। चीन अपने इस खतरे को अपने लाभ में तब्दील करने की भी कोशिश में जुटा है। दूसरे, चीन ने मुस्लिम बहुल शिनजियांग प्रांत में जनता पर बर्बर रुख अपना रखा है। दुनिया के मुसलमानों के हिमायती पाकिस्तान ने भी चीन के मुसलमानों से मुंह मोड़ रखा है। चीन को भय सता रहा है कि तालिबान और उसके समर्थक गुट चीन में मुसलमानों के पक्ष में आकर आतंकवाद को बढ़ावा दे सकते हैं।
- तीसरे, ड्रैगन को यह खतरा नजर आ रहा है कि ताजपोशी के बाद तालिबान पाकिस्तान के नियंत्रण से बाहर जाकर भारत और अमेरिका से हाथ मिला सकता है। अफगानिस्तान में अमेरिका के कमजोर होने पर चीन बेहद खुश है। अफगानिस्तान के जरिए वह जापान, ताइवान, फिलिपीन्स, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देशों के लिए यह संदेश दे सकता है कि अमेरिका जरूरत पड़ने पर उन्हें छोड़कर भाग सकता है।
- इसके अलावा चीन को अफगानिस्तान बेल्ट एंड रोड के माध्यम से मध्य एवं सेंट्रल एशिया के साथ-साथ पूर्वी यूरोप में अपने पांव पसारने का जरिया भी नजर आ रहा है। तालिबान पाकिस्तान के दबाव में कश्मीर से लेकर राजस्थान तक आतंकवादी गतिविधियां बढ़ा सकता है। चीन को उम्मीद है कि इस वजह से दबाव में आकर भारत चीन के पक्ष में सीमा समझौता कर सकता है।