दशाश्वमेध घाट का प्लेटफार्म अचानक धंसा, गंगा आरती में शामिल महिला श्रद्धालु बाल-बाल बची

गंगा आरती के ठीक बाद 300 वर्ग फीट में पत्थर भसक कर बैठ गए। इस दौरान एक महिला श्रद्धालु फंस गई। मौजूद लोगों ने तुरंत उसे बाहर निकाला। इसके बाद सुरक्षा के लिए चौकी से घेरा बनाया गया है।

 

वाराणसी,  श्रद्धालुओं-सैलानियों की सर्वाधिक भीड़ वाले दशाश्वमेध घाट पर शुक्रवार शाम 300 वर्ग फीट में प्लेटफार्म के पत्थर बैठ गए। गंगोत्री सेवा समिति के गंगा आरती स्थल से कुछ ही दूरी पर अचानक पत्थर सरकने शुरू हुए और कुछ ही देर में पांच फीट नीचे तक चले गए। इसमें एक महिला श्रद्धालु गिर पड़ी। घाट पर मौजूद लोगों ने उसे तत्काल बाहर खींच लिया।

गंगा आरती के तुरंत बाद हुई घटनायह तो अच्छा रहा कि गंगा आरती के बाद हुई इस घटना के बाद लोग चौकी की ओर आरती व प्रसाद लेने चले गए थे। प्रभावित हुए क्षेत्र की ओर का हिस्सा खाली था। यदि आरती के समय पत्थर सरकते तो बड़ी दुर्घटना से इन्कार नहीं किया जा सकता था। एहतियात के तौर पर आरती समिति के लोगों संबंधित स्थल को चौकियों से घेर दिया।

नए साल पर होने वाली भीड़ को लेकर जताई चिंता

बताया जा रहा है कि तीन चार साल पहले समीप की गली में मिनी नलकूप लगाया गया था। उसकी बोरिंग खराब हो गई थी। जब रिबोरिंग की जाने लगी तो प्रभावित स्थान से भी पानी निकल रहा था। उस समय भी लोगों ने घाट क्षतिग्रस्त होने को लेकर चिंता जताई थी। पर्व उत्सवों पर इस घाट पर सर्वाधिक भीड़ होती है। शाम को आरती के समय तो तिल रखने तक की जगह नहीं होती है। लोगों की चिंता यह रही कि अब एक दिन बाद ही नव वर्ष की भीड़ घाटों पर उतरेगी और मकर संक्रांति भी पखवारे भर बाद है। यदि जल्द घाट की मरम्मत न हुई तो दिक्कत हो सकती है। लोगों ने मौके पर पहुंचे विधायक डॉ. नीलकंठ तिवारी को भी अपनी चिंता से अवगत कराया। उन्होंने नगर निगम के अफसरों को तत्काल मरम्मत करने का निर्देश दिया।

 

कहीं कटान तो कारण नहींघाट के पत्थरों के इस तरह बैठने के पीछे कटान को भी कारण माना जा रहा है। कारण यह कि लगभग दशक भर से गंगा के पानी का दबाव घाट की ओर है। इससे कई घाट नीचे से खोखले हो रहे हैं। इस संबंध में विज्ञानी भी चिंता जता चुके हैं।

सबसे पुराना घाटगंगा की घाट शृंखला में दशाश्वमेध को सबसे प्राचीन माना जाता है। ऐतिहासिक साक्ष्य अनुसार वर्ष 1735 में मराठा बाजीराव पेशवा ने इसका निर्माण कराया था। उस समय यह अहिल्याबाई घाट से लेकर राजेंद्र प्रसाद घाट तक विस्तृत था। घाटों को नवजीवन देने के क्रम में 1965 में प्रदेश सरकार ने इसका जीर्णोद्धार भी कराया था। समय समय पर घाट को नया कलेवर दिया जाता रहा।

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