पाकिस्‍तानी एनएसए काबुल जाकर सुलझाएंगे बाड़ का विवाद, तालिबान को डूरंड रेखा पर बाड़ लगाने पर है आपत्ति

पाकिस्तानी एनएसए मोईद यूसुफ मंगलवार को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल का दौरा करेंगे। वह एक अंतर मंत्रालयी प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करेंगे और इस दौरान सीमा पर बाड़ लगाने के मुद्दे पर चर्चा करेंगे। यूसुफ अफगानिस्तान में मानवीय सहायता उपलब्ध कराने के तरीकों पर भी चर्चा करेंगे।

 

इस्लामाबाद, पीटीआइ। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) मोईद यूसुफ मंगलवार को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल का दौरा करेंगे। वह एक अंतर मंत्रालयी प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करेंगे और इस दौरान सीमा पर बाड़ लगाने के मुद्दे पर चर्चा करेंगे। वह तालिबान के शासन वाले इस युद्धग्रस्त देश में मानवीय जरूरतों का आकलन करेंगे। अपनी दो दिवसीय काबुल यात्रा के दौरान पाक एनएसए यूसुफ अफगानिस्तान में मानवीय सहायता उपलब्ध कराने के तरीकों पर चर्चा करेंगे।

इन मुद्दों पर भी होगी बात

पाकिस्‍तानी अखबार डान की रिपोर्ट के मुताबिक 18 से 19 जनवरी तक की अपनी यात्रा के दौरान पाक एनएसए यूसुफ  अफगानिस्तान को मानवीय सहायता देने के तरीकों पर चर्चा करेंगे, जो संयुक्त राष्ट्र की आवश्यकताओं और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की आवश्यकताओं के अनुरूप होंगे।

तालिबान ने बढ़ाई पाकिस्‍तान की मुश्किलें

पिछले कुछ अरसे से तालिबानी लड़ाके पाकिस्तान से लगी सीमा पर लगे इन बाड़ों को उखाड़कर इसे अपनी सीमा का उल्लंघन बता रहे हैं। 2670 किलोमीटर लंबी इस सीमा रेखा पर बाड़ लगाने का करीब 90 फीसद काम पाकिस्तान पूरा कर चुका है। हालांकि, अफगानिस्तान की ओर से सदियों पुरानी इस ब्रिटिश काल की डूरंड सीमा रेखा को लेकर आपत्ति जताई जाती रही है। इसे लेकर अफगानिस्तान का कहना है कि इस कदम से दोनों ही देशों के लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

अफगान पत्रकारों को नहीं आजादी

इस बीच नए सर्वे में पता चला है कि 95 फीसद अफगान पत्रकारों को समाचार कवर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। देश के 34 प्रांतों में 500 से अधिक पत्रकारों को आजादी से काम नहीं करने दिया जा रहा है। तालिबान प्रशासन ने उन पर तरह-तरह की पाबंदियां लगा रखी हैं।

मार्च में खुलेंगे स्कूल, विश्वविद्यालय

तालिबान का कहना है कि अफगानिस्तान में सभी स्कूल और विश्वविद्यालय खोल दिए जाएंगे। सभी छात्र और छात्राओं को शिक्षा की छूट मिलेगी। तालिबान प्रशासन ने यह फैसला अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव के बाद लिया है।

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