शाहजहांपुर के बंथरा गांव की आशा आठवीं तक पढ़ सकी थीं तभी पिता ने शादी तय कर दी। 1987 में हरदोई निवासी बृजकिशोर शुक्ला से आशा की शादी कर दी। आशा अब तक 177 कहानियां साहित्य से जुड़ी एक मोबाइल एप के लिए लिख चुकी हैं।
शाहजहांपुर। दुल्हन के जोड़े में आशा ससुराल पहुंचीं तो, उम्र थी सिर्फ 15 साल। किताब-कापियों के पन्ने इतने ही पलटे थे कि चिट्ठी-पत्री पढ़ लेती थीं। शादी के बाद जिंदगी आसान नहीं रही। परंतु, पढ़ाई की लगन थी तो एक रास्ता खुला। तीन साल पहले बिटिया ने एक आइडिया दिया। बस, यहीं से जीवन में नई आशा जागी और 30 महीने में सफलता की एक नई कहानी लिख चुकी हैं। वह 177 कहानियां साहित्य से जुड़ी एक मोबाइल एप के लिए लिख चुकी हैं। 48.61 लाख लोग उनकी रचनाओं को आनलाइन पढ़ चुके हैं। आठ पुस्तकें एक प्रमुख वेबसाइट पर बिक्री के लिए आ चुकी हैं।
शाहजहांपुर के बंथरा गांव की आशा आठवीं तक पढ़ सकी थीं, तभी पिता को लगा कि सयानी हो गई हैं। शादी तय कर दी। 1987 में हरदोई निवासी बृजकिशोर शुक्ला से आशा की शादी कर दी। कुछ साल बाद पति को व्यापार में घाटा हुआ तो नौकरी करने दिल्ली चले गए। पिता श्याम नारायण अवस्थी के कहने पर आशा चार बच्चों को लेकर मायके आ गईं।
चार बच्चों की परवरिश के साथ फिर शुरू की पढ़ाई
मायके आने के बाद आशा को लगा कि बिना पढ़ाई जिंदगी में अंधेरा है। ऐसे में नौवीं कक्षा में प्रवेश लिया। सुबह स्कूल जातीं, दोपहर से बच्चों को संभालती थी। आशा का साथ उनके पति और पिता दे रहे थे। स्नातक तक की शिक्षा की सीढ़ी वह चढ़ती गईं। इस दौरान कहानी पढऩे का शौक लग गया। 2018 की बात है, बड़़ी बेटी दामिनी स्नातक कर रही थी। उसे क्लास के प्रोजेक्ट में कहानी लिखते देखा, उसे सुधारने लगीं। बेटी ने कहानी की दिशा बदली देखी तो बोली- मां, क्यों न तुम कहानी लिखने लगो। बात पसंद आई। बेटी ने मोबाइल फोन पर ‘प्रतिलिपिÓ एप दिखाया। उसी साल पांच दिसंबर को आशा ने बेटी की जिद पर कहानी लिखकर अपलोड कर दी। इसमें उन्होंने जिंदगी के अपने अनुभव लिखे, जिसे खूब पसंद किया गया। इसके बाद यह पन्ना आगे खुलता गया।
आशा का परिवार। प्रथम पंक्ति में (बायें से) प्रथम हैं, पिता श्याम नारायण अवस्थी, स्वयं आशा शुक्ला व उनके पति बृज किशोर शुक्ला।
रोज चार-पांच घंटे लेखन
इस बीच पति बृजकिशोर दिल्ली से लौट आए। आशा अब रोज चार-पांच घंटे लेखन करती हैं। शहादत एक इबादत, जिद जीत की, दो टूक जिंदगी कविताएं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो चुकी हैं। दहेज प्रथा व बेमेल शादी पर उपन्यास ‘जल बिच मीन प्यासी’ जल्द प्रकाशित होने वाला है।
उप्र के शाहजहांपुर के बंथरा में बेटी दामिनी के साथ कहानी लेखन पर बात करतीं आशा शुक्ला
इस तरह आते हैैं विचार
आशा की कहानियों के विषय आम जीवन से जुड़े होते हैं। एक छात्रा को केरोसिन डालकर जलाने की घटना पर उन्होंने कहानी लिखी-गुनाहगार कौन। जातिप्रथा पर भी लिख चुकी हैं। कृषि कानून विरोधी आंदोलन पर भी लिखा है। आशा की कहानियां 30 पुरस्कार जीत चुकी हैं। उनके पति बृजकिशोर कहते हैं कि वह जब भी बाहर जाते, उनके लिए साहित्यिक पुस्तक जरूर लाते हैं। उनकी सफलता पर गर्व है।
वेबसीरीज पर दिखेगी कहानी
प्रतिलिपि एप इनकी 35 कहानियों के अधिकार ले चुकी है। सेना के शहीद जवान की पत्नी के जीवन के संघर्ष पर उन्होंने कहानी लिखी-छोड़ दो आंचल, जमाना क्या कहेगा। दिल्ली के भावना प्रोडक्शन ने वेबसीरीज बनाने के लिए एक महीने पहले संपर्क किया था। टीम उनसे मिलने घर आई थी। आशा कहती हैं, इसको लेकर प्रोडक्शन हाऊस से बातचीत चल रही है।