बैरकपुर के सभी जल्लादों ने फांसी देने से किया इनकार 18 अप्रैल 1857 को मंगल पांडेय को फांसी दी जानी थी, ऐसा कहा जाता है कि बैरकपुर के सभी जल्लादों ने मंगल पांडेय को फांसी देने से इनकार कर दिया था। जल्लादों ने अपने हाथ मंगल पांडेय के खून से न रंगे जाने की बात कहते हुए फांसी देने से इनकार किया था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने कलकत्ता (कोलकाता) से चार जल्लादों को बुलाया।
कुशीनगर, भगवन्त यादव की कलम से,,,
वो महानायक जिसे फांसी देने के लिए जल्लाद भी तैयार नहीं थे मंगल पांडेय की जयंती, वो महानायक जिसे फांसी देने के लिए जल्लाद भी तैयार नहीं थे 19 जुलाई को देश में आजादी की लड़ाई का पहली बार शंखनाद करने वाले अमर शहीद मंगल पांडेय की 193वीं जयंती है। आज का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए सुनहरे अक्षरों में लिख दिया गया है। मंगल पांडेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था। मंगल पांडेय का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ क्रांति की शुरुआत की थी और 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में अंग्रेजों पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया था।
हालांकि वह पहले ईस्ट इंडिया कंपनी में एक सैनिक के तौर पर भर्ती हुए थे लेकिन ब्रिटिश अफसरों की भारतीयों के प्रति क्रूरता को देखकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया बताते चले कि मंगल पांडेय कलकत्ता की बैरकपुर छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इंफैंट्री की पैदल सेना के सिपाही नंबर 1446 थे। अंग्रेजी अफसरों पर गोली चलाने और हमला करने के आरोप में मंगल पांडेय को फांसी की सजा सुनाई गई थी, लेकिन तय तिथि से दस दिन पहले ही उन्हें फांसी दे दी गई। बैरकपुर के सभी जल्लादों ने फांसी देने से किया इनकार 18 अप्रैल 1857 को मंगल पांडेय को फांसी दी जानी थी, ऐसा कहा जाता है कि बैरकपुर के सभी जल्लादों ने मंगल पांडेय को फांसी देने से इनकार कर दिया था। जल्लादों ने अपने हाथ मंगल पांडेय के खून से न रंगे जाने की बात कहते हुए फांसी देने से इनकार किया था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने कलकत्ता (कोलकाता) से चार जल्लादों को बुलाया। मंगल पांडेय की फांसी की खबर सुनने के बाद कई छावनियों में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ गुस्सा भड़क गया, जिसे देखते हुए ब्रिटिश राज ने मंगल पांडेय को फांसी 18 अप्रैल को न देकर दस दिन पहले आठ अप्रैल को ही दे दी।
अफवाहों से भड़का गुस्सा ब्रिटिश इतिहासकार रोजी लिलवेलन जोंस की किताब ‘द ग्रेट अपराइजिंग इन इंडिया, 1857-58 अनटोल्ड स्टोरीज, इंडियन एंड ब्रिटिश में जानकारी दी गई है कि 29 मार्च की शाम मंगल पांडेय यूरोपीय सैनिकों के बैरकपुर आने की खबर को सुनकर काफी बैचेन थे। मंगल पांडेय को लगा कि ये सैनिक भारतीय सैनिकों को मारने आ रहे हैं, जिसका परिणाम ये हुआ कि मंगल पांडेय ने अपने साथियों को भड़काया और ब्रिटिश अफसरों पर हमला बोल दिया। ऐसा कहा जाता है कि 1857 की क्रांति के पीछे यही अफवाह थी कि बड़ी संख्या में यूरोपीय सैनिक भारतीय सैनिकों को मारने आ रहे हैं। किम ए वैगनर ने अपनी किताब ‘द ग्रेट फियर ऑफ 1857 – रयूमर्स, कॉन्सपिरेसीज़ एंड मेकिंग ऑफ द इंडियन अपराइजिंग’ में लिखा है कि सिपाहियों के मन में डर बैठा था। उनके डर को जानते हुए मेजर जनरल जेबी हिअरसी ने यूरोपीय सैनिकों के हिंदुस्तानी सिपाहियों पर हमला बोलने की बात को अफवाह करार दिया, लेकिन ये संभव है कि हिअरसी ने सिपाहियों तक पहुंच चुकी इन अफवाहों की पुष्टि करते हुए स्थिति को बिगाड़ दिया पुण्यतिथिः पूर्वांचल का वो बागी नेता जिसने कभी इंदिरा गांधी तो कभी राजीव को नकारा, जानें युवा तुर्क के पीएम की कुर्सी तक पहुंचने की कहानी
‘मारो फिरंगी को’ दिया नारा वैगनर लिखते हैं कि मंगल पांडेय ने इस दौरान ‘मारो फिरंगी को’ का नारा दिया था, ऐसा कहा जाता है कि फिरंगियों के खिलाफ सबसे पहला नारा मंगल पांडेय के मुंह से ही निकला था। यही वजह है कि मंगल पांडेय को स्वतंत्रता संग्राम का पहला क्रांतिकारी माना जाता है। ब्रिटिश अधिकारियों ने जब मंगल पांडेय को काबू करने की कोशिश की तो पांडेय ने सार्जेंट मेजर ह्वीसन और अडज्यूटेंट लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग पर हमला कर दिया। इसके बाद जनरल ने मंगल पांडेय की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया और शेख पल्टू के अलावा सभी साथियों ने मंगल पांडेय की गिरफ्तारी का विरोध किया। 29 मार्च 1857 को फूंका स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल 29 मार्च 1857 के दिन ही मंगल पांडेय ने ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। वैगनर लिखते हैं कि शाम के चार बजे थे और मंगल पांडेय अपने तंबू में बैठे बंदूक साफ कर रहे थे। तभी मंगल पांडेय को यूरोपीय सैनिकों के आने के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद मंगल पांडेय को एकदम बैचेनी सी महसूस होने लगी, उन्हें लगा कि ये सारे यूरोपीय सैनिक भारतीय सैनिकों को मारने यहां आ रहे हैं। तभी मंगल पांडेय अपनी ऑफिशियल जैकेट, टोपी और धोती पहनकर तंबू से बाहर निकले और क्वार्टर गार्ड बिल्डिंग के करीब परेड ग्राउंड की ओर दौड़ पड़े।