भूलकर भी न करें यह काम, जान‍िए क्‍यों कहा जाता है कलंक चतुर्थी,

इस दिन चांद देखने से भगवान श्रीकृष्ण को स्यमंतक मणि चुराने का झूठा कलंक झेलना पड़ा था। इसकी मुक्ति के लिए व्रत के साथ प्रथम पूज्य देव की आराधना करनी चाहिए। भगवान श्री कृष्ण ने भी व्रत रखकर पूजन किया था।

 

लखनऊ,  एक ओर जहां शुक्रवार को लखनऊ में गणेशोत्सव की धूम होगी। प्रथम पूज्य देव की स्थापना को लेकर तैयारियां अंतिम रूप ले चुकी हैं तो दूसरी ओर इस दिन चांद न देखने की परंपरा की सनातन काल से चली आ रही है। मान्यता है कि इस दिन चांद देखने वालों को बिना कुछ किए कलंक लगता है। ऐसे में चंद्र दर्शन से बचना चाहिए। आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि इस दिन को कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए, क्योंकि इस दिन चंद्र दर्शन करने से झूठा कलंक लगता है। श्रीमद्भागवत में इसका जिक्र मिलता है। इस दिन चांद देखने से भगवान श्रीकृष्ण को स्यमंतक मणि चुराने का झूठा कलंक झेलना पड़ा था। इसकी मुक्ति के लिए व्रत के साथ प्रथम पूज्य देव की आराधना करनी चाहिए। भगवान श्री कृष्ण ने भी व्रत रखकर पूजन किया था।

इसलिए नहीं देखते चांद : आचार्य कृष्ण कुमार मिश्रा ने बताया कि कथानक है कि जब भगवान श्री गणेश को गज का मुख लगाया गया तो वे गजानन कहलाए और माता-पिता के रूप में पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा करने के कारण वह प्रथम पूज्य देव की श्रेणी में आए। देवताओं ने पूजा करनी शुरू कर तो चंद्रमा मुस्कुराते रहे और उन्हें अपनी सुंदरता पर घमंड आ गया। चंद्रमा के अभिमान पर श्री गणेश जी ने क्रोध में आकर श्राप दे दिया कि आज से तुम काले हो जाओगे। चंद्रमा ने श्री गणेश जी से क्षमा मांगी तो गजानन ने कहा कि सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण हो जाओगे यानी पूर्ण प्रकाशित होंगे, लेकिन चतुर्थी का यह दिन तुम्हें दंड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जो तुम्हे निहारेगा, उस पर झूठा कलंक लगेगा। इसी दिन से चांद देखने से बचने की परंपरा है।

jagran

कलंक से बचने के लिए ऐसे करें पूजन : आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि चंद्र दर्शन के बाद कलंक से बचने के लिए बेसन या बूंदी के लड्डू को प्रसाद के रूप में रखकर गजानन की आराधना करनी चाहिए। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को प्रथम पूज्य देव भगवान गणेश का मध्याह्न के समय जन्म हुआ था। नौ सितंबररात्रि 12:18 से चतुर्थी लग जाएगी और 10 सितंबर रात्रि 9:57 बजे तक रहेगी। इनका वाहन मूशक है और ऋद्धि और सिद्धि इनकी दो पत्नियां है। श्री गणेश की उपासना से कार्यो में सफलता मिलती है और चंद्र दर्शन का विघ्न दूर होता है। गणेश चतुर्थी के दिन गणेश प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाना चाहिए और मोदक का भोग लगाना चाहिए।

गणपति पूजन की विधि : आचार्य आनंद दुबे ने बताया कि मान्यता है कि श्री गणेश जी का जन्म दोपहर के समय हुआ था. ऐसे में श्री गणेश जी का पूजन 10 सितंबर को सुबह 10:48 बजे दोपहर 1:18 बजे पूजन का उत्तम समय है। चंद्र दर्शन होने पर गणपति के व्रत का संकल्प लें. इसके बाद दोपहर के समय गणपति की मूर्ति या फिर उनका चित्र लाल कपड़े के ऊपर रखें और गंगाजल से पवित्र कर भगवान श्री गणेश का आह्वान करें. पुष्प, सिंदूर, जनेऊ और दूर्वा चढ़ाएं इसके बाद गणपति को मोदक लड्डू,चढ़ाएं। मंत्रोच्चारण के साथ श्री गणेश चालीसा का पाठ करें.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *