मुख्तार अंसारी को गैंगस्टर में मुचलके पर रिहा करने का अदालत ने दिया आदेश

गैंगस्‍टर में अधिकतम सजा दस वर्ष से ज्यादा समय से जेल में निरूद्ध रहने पर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ अदालत में आवेदन देने और छ सप्ताह के अन्दर निस्तारण कर मामला सही पाये जाने पर छोड़ने का निर्देश दिया था।

 

मऊ, विधि संवाददाता। एमपी एमएलए की विशेष कोर्ट दिनेश चौरसिया ने मुख्तार अंसारी के गैंगस्टर मामले में लीगल डिटेशन आवेदन पर सुनवाई के पश्चात उन्हें एक लाख के मुचलके पर तुरन्त छोडने का आदेश दिया। यह आदेश न्यायालय ने आवेदक की तरफ से उच्च न्यायालय में दाखिल हैबियस कारपस याचिका मे पारित निर्देश के सन्दर्भ मे प्रकीर्ण आवेदन पर सुनवाई कर दी। इस बाबत अविलंब रिहाई का परवाना बांदा जेल भेजने का अदालत ने आदेश दिया है।

उच्च न्यायालय में आवेदक द्वारा यह कहा गया था कि वह दक्षिण टोला के गैंगस्टर मामला स्टेट बनाम राजू कन्‍नौजिया व अन्य में आरोपित अभियुक्त है। वह इस मामले में विगत दो सितम्बर 2011 से जेल में है। यह इस मामले में अधिकतम सजा दस वर्ष से ज्यादा समय से जेल में ही निरूद्ध है। इस पर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ अदालत में आवेदन देने व उस पर छ: सप्ताह के अन्दर निस्तारण कर मामला सही पाये जाने पर छोड़ने का निर्देश दिया था।

सदर विधायक मुख्तार अंसारी की तरफ से उनके अधिवक्ता दारोगा सिह ने एमपी एमएलए कोर्ट दिनेश चौरसिया की विशेष अदालत में आवेदन उक्त आदेश के साथ प्रस्तुत किया था। जिस पर न्यायालय ने नियत तिथि पर प्रस्तुत करने का आदेश दिया था। जिसपर विशेष शासकीय अधिवक्ता कृष्ण शरण सिंह ने आपत्ति प्रस्तुत किया।न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद गैंगस्टर में मुकदमा संख्‍या 891/2010 थाना दक्षिण टोला में मुख्तार अंसारी का दस वर्ष से ज्यादा समय तक विधि विरुद्ध अवरोध मानते हुए उन्हें मुचलके पर तुरन्त छोड़ने का आदेश दिया है।

सदर विधायक मुख्तार अंसारी के अथिवक्ता दारोगा सिंह ने बताया मुख्तार अंसारी की तरफ से एक बन्दी प्रत्‍यक्षी रिट याचिका उच्च न्यायालय मे दी गयी थी। जिसमें कहा गया कि आरोपी मुख्तार नौ सितम्बर 2011 से दक्षिण टोला थाने के गैंगस्टर मामले में जेल में निरूद्ध है। जबकि उक्त मामले में दस साल की अधिकतम सजा होती है। उससे ज्यादा समय से आरोपी जेल में है। उनकी तरफ से यह कहा गया कि उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन है। इस पर उच्च न्यायालय की डबल बेंच ने अधीनस्थ अदालत में उक्त बातों का हवाला देकर आवेदन करने का सुझाव दिया और अदालत को निर्देश दिया कि आवेदन पर सुनवाई कर यदि बन्दी के विशेषाधिकार का हनन हो रहा है तो उस पर उचित आदेश करें।

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