प्रदेश में जल्द ही नगरीय निकायों के कार्यकाल खत्म होने वाले हैं। ऐसे में आम जनता को समस्याओं का सामना ना करना पड़े इसके लिए नगर विकास विभाग ने प्रशासकीय व्यस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए खाका तैयार किया है।
लखनऊ : प्रदेश सरकार ने नगरीय निकायों का कार्यकाल खत्म होने के साथ ही प्रशासकीय व्यवस्था लागू करने का निर्णय लिया है। निकायों का कार्यकाल 12 दिसंबर से लेकर 15 जनवरी के बीच अलग-अलग तारीखों में समाप्त हो रहा है। जैसे-जैसे कार्यकाल खत्म होगा नगर निगमों में नगर आयुक्त एवं नगर पालिका परिषद व नगर पंचायतों में अधिशासी अधिकारियों के पास अधिकार आ जाएंगे।
नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव अमृत अभिजात ने मंगलवार को इस संबंध में शासनादेश जारी करते हुए जिलाधिकारियों से कहा है कि नगर निकायों का सामान्य निर्वाचन जनवरी 2023 के पहले और दूसरे सप्ताह में कराया जाना प्रस्तावित है। उत्तर प्रदेश नगर पालिका परिषद अधिनियम-1916 और उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम-1959 में निकायों के बोर्ड का कार्यकाल पांच वर्ष के लिए निर्धारित है। अधिनियम में दी गई व्यवस्था और हाई कोर्ट लखनऊ बेंच में दाखिल याचिका संदीप मेहरोत्रा व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सरकार में पांच दिसंबर 2011 को पारित आदेश के अनुपालन में नए बोर्ड के गठन के पूर्व जिन निकायों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, वहां अंतरिम व्यवस्था प्रशासनिक अधिकार देकर सुनिश्चित कराई जाएगी।
यह समिति नागरिकों के लिए दी जाने वाली सुविधाओं की निगरानी भी करेगी। ऐसा करने में कार्यकारिणी समिति के सदस्यों को कोई पारिश्रमिक, मानदेय या भत्ता नहीं दिया जाएगा। नगर पालिका परिषदों व नगर पंचायतों के संबंध में यह दायित्व निकाय बोर्ड के पास होगा। पालिका परिषद व नगर पंचायतों में खातों का संचालन अध्यक्ष और अधिशासी अधिकारियों के संयुक्त हस्ताक्षर से होता है। अध्यक्ष के न रहने पर यह काम अधिशासी अधिकारी व केंद्रीयत सेवा के वरिष्ठतम लेखा अधिकारी संयुक्त हस्ताक्षर से करेंगे। केंद्रीयत सेवा के अधिकारी की तैनाती न होने की स्थिति में वहां लेखा का काम देखने वाले कर्मी को दिया जाएगा। अधिशासी अधिकारी कर्मचारी को नामित करेगा। यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि संयुक्त हस्ताक्षर की इस व्यवस्था के तहत ही नकद निकाला जाएगा। चेक भी सभी औपचारिकता पूरी करने के बाद दिए जाएंगे।