अमर जवान ज्योति की स्थापना उन भारतीय सैनिकों की याद में की गई थी जोकि 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए थे। इस युद्ध में भारत की जीत हुई थी और बांग्लादेश का गठन हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी 1972 को इसका उद्घाटन किया था।
नई दिल्ली, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में अमर जवान ज्योति की लौ को एक साथ विलय कर दिया गया है। अमर जवान ज्योति की लौ को एक साथ मिलाने के लिए खास मशाल का इस्तेमाल किया गया। इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति की लौ को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में ज्योति के साथ मिलाने के लिए करीब आधे घंटे की खास रस्म निभाई गई। इस सैन्य समारोह की अध्यक्षता एयर मार्शल बलभद्र राधा कृष्ण ने की। आज के बाद से अब इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति पर ये लौ नहीं दिखाई देगी।
इस को लेकर लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) पीजेएस पन्नू ने कहा कि यह सरकार द्वारा लिया गया एक बहुत अच्छा निर्णय है, स्थानांतरण का सवाल नहीं है, सम्मान वहीं है जहां सैनिकों के नाम लिखे जाते हैं। राष्ट्रीय युद्ध स्मारक ही एकमात्र स्थान है जहां सैनिकों को सम्मानित किया जाना चाहिए।
वहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट करके बताया कि अमर जवान ज्योति के पास सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगेगी। पीएम नरेन्द्र मोदी ने कहा कि 23 जनवरी को नेताजी की हालोग्राम मूर्ति का अनावरण किया जाएगा। यह मूर्ति तब तब रहेगी जब तक असली मूर्ति तैयार नहीं हो जाती।
26 जनवरी 1972 को अमर जवान ज्योति का हुआ था उद्घाटन
बता दें कि अमर जवान ज्योति की स्थापना उन भारतीय सैनिकों की याद में की गई थी, जोकि 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए थे। इस युद्ध में भारत की जीत हुई थी और बांग्लादेश का गठन हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी 1972 को इसका उद्घाटन किया था।
25 फरवरी 2019 में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का पीएम मोदी ने किया उद्घाटन
वहीं, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का निर्माण केंद्र सरकार ने 2019 में किया था। इसे 1947 में देश की आजादी के बाद से अब तक शहादत दे चुके 26,466 भारतीय जवानों के सम्मान में निर्मित किया गया था। 25 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस स्मारक का उद्घाटन किया था।
कांग्रेस समेत कई विपक्षी नेताओं ने किया विरोध
कांग्रेस समेत कई विपक्षी नेता अमर जवान ज्योति की लौ का राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर विलय किए जाने का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस ने कहा कि सरकार का यह कदम सैनिकों के बलिदान के इतिहास को मिटाने की तरह है।