शीत युद्ध के पूर्व और उसके बाद भारत का दोनों देशों के साथ संबंधों में बड़ा बदलाव आया है। शीत युद्ध के दौरान पूर्व सोवियत संघ के साथ बहुत मधुर संबंध थे। शीत युद्ध के बाद भारत और अमेरिका के संबंधों में बड़ा बदलाव आया है।
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। भारत के लिए अमेरिका ज्यादा उपयोगी है या रूस के साथ रिश्ते ज्यादा अहम है। रूसी S-400 मिसाइल सिस्टम के बाद यह सवाल उठने लगे हैं। आखिर भारत के लिए रूस क्यों उपयोगी है। आइए जानते हैं कि रक्षा और सामरिक रूप से भारत के लिए रूस और अमेरिका दोनों क्यों उपयोगी है। रक्षा उपकरणों को लेकर भारत की क्या नीति है। शीत युद्ध और उसके बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में किस तरह का बदलाव आया है। आइए जानते हैं कि भारत की रक्षा नीति क्या है।
भारत के लिए कौन ज्यादा उपयोगी रूस या अमेरिका
1- प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि शीत युद्ध के पूर्व और उसके बाद भारत का दोनों देशों के साथ संबंधों में बड़ा बदलाव आया है। शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के साथ बहुत मधुर संबंध थे। उस दौरान भारत और अमेरिका के बीच तल्ख रिश्ते थे। शीत युद्ध के बाद भारत और अमेरिका के संबंधों में बड़ा बदलाव आया है। मौजूदा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में क्षेत्रीय संतुलन में बड़ा फेरबदल हुआ है। इसके चलते देशों के संबंधों में बड़ा बदलाव आया है। भारत और अमेरिका के संबंधों को इसी क्रम में देखा जा सकता है।
2- प्रो. पंत ने कहा कि 25 फरवरी, 2020 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि दुनिया के सभी ताकतवर देशों के बीच भारतीय सेना अमेरिकी सैनिकों के साथ सबसे ज्यादा प्रशिक्षण करती है। पीएम मोदी ने कहा कि अमेरिका और भारतीय सेना के बीच पारस्परिक रिश्ते काफी बेहतर हुए हैं। पीएम मोदी के इस बयान से अमेरिका और भारत के संबंधों के महत्व को समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री ने बदलते परिदृश्य में भारत-अमेरिका के संबंधों को रेखांकित किया था।
3- उधर, रूसी सरकार का कहना है कि भारत के अन्य देशों के साथ सैन्य तकनीकी संबंधों में रूस सबसे पहले स्थान पर है। रूस की हिस्सेदारी भारत के सैन्य तकनीकी उपकरणों में 60 फीसद से ज्यादा है। गत वर्ष भारत ने करीब 14.5 अरब डालर के हथियार और सैन्य उपकरणों की खरीद का आर्डर रूस को दिया है। भारतीय वायुसेना, थल सेना और नौ सेना, साइज और मात्रा के हिसाब से दुनिया की इकलौती सेना है, जिसने अमरीका और रूस दोनों देशों के हथियारों को प्रमुख हथियारों में जगह दी हुई है। इस सौदे से भारत और रूस के साथ संबंधों को समझा जा सकता है।
सैन्य उपकरणों के लिए भारत स्वतंत्र
प्रो.पंत कहते हैं कि भारत अपने सैन्य उपकरणों के लिए केवल एक स्रोत पर निर्भर नहीं रह सकता। भारत अपनी स्वायत्ता कायम रखने में सफल रहा है। सुखोई विमान रूस से आए थे। जगुआर ब्रिटेन से लिए गए। फ्रांस भी एक अन्य आपूर्तिकर्ता देश है। राफेल जेट फ्रांस से आ रहे हैं, पी8आई और एमएच60 आर हेलिकाप्टर अमरीका से और हवा में रक्षा करने वाले एस-400 सिस्टम रूस से आ रहे हैं। इन अलग-अलग तरह के उपकरणों के रख रखाव के लिए विदेशी फर्म को हर साल करोड़ों रुपये का भुगतान अलग करना होता है। इन अलग-अलग देशों से उपकरणों की खरीद का असर हमारे सिस्टम पर बहुत अधिक पड़ा। उन्होंने कहा कि यह हमारी नीति है। उन्होंने कहा कि भारत ऐसी हैसियत में है कि जैसा चाहे, वैसा चुन सकता है।
क्या चाहता है अमेरिका
अमेरिका की इच्छा है कि भारत रूसी एस-400 की जगह पर उसका एयर डिफेंस सिस्टम पेट्रियाट खरीदे। भारत का कहना है कि उसकी रक्षा जरूरतों के लिहाज से रूसी एस-400 मिसाइल सिस्टम एकदम उपयुक्त है। अमेरिकी सिस्टम एस-400 के सामने कहीं नहीं ठहरता है। यही कारण है कि भारत की मोदी सरकार ने अमेरिका को दो टूक बता दिया था कि वह इस सिस्टम को खरीदने से पीछे नहीं हटेगी और रूस के साथ अपनी डील पर आगे बढ़ेगा।
अमेरिका का प्रतिबंधों वाला कानून और उसके प्रावधान
अमेरिका इस कानून की आड़ में किसी भी विरोधी देश या व्यक्ति पर प्रतिबंध लगाता है। इस कानून को अमेरिका में काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेक्शन एक्ट (सीएएटीएसए) कहते हैं। सरल शब्दों में कहें तो इस कानून का मकसद अमेरिका प्रतिबंधों के जरिए विरोधियों का सामना करना है। अमेरिका ने इसे अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ एक दंडात्मक कार्रवाई के रूप में बनाया। 2 अगस्त 2017 को यह कानून अमल में आया। जनवरी 2018 में इसे लागू किया गया था। इस कानून के जरिए अमेरिका दुश्मन देशों ईरान, रूस और उत्तर कोरिया की आक्रामकता का मुकाबला करना है।