महापात्र राजेंंद्र मिश्र कहते हैं कि अभी तक सामान्य दिनों में 15 से बीस शव ही आते थे। पिछले साल कोरोना काल में तो यह संख्या भी घट गई थी और अधिकांश शव कोविड के विद्युत शव दाह गृह पर ही आते थे लेकिन इस बार मामला बिगड़ा है।
लखनऊ,, भैसाकुंड श्मशान घाट पर सामान्य दिनों अगर अगर बीस शव आ जाते थे तो महापात्र परेशान हो जाते थे और कहते थे कि आज बहुत भीड़ है। सात दिनों से सामान्य शवों के पहुंचने से महापात्र भी आश्चर्यचकित हैंं? वह खुद ही सवाल कर रहे हैं यह कैसे हो रहा है और यह पहली बार देखने को मिल रहा है।
कोविड संक्रमित शवों की तरह ही अब नॉन कोविड शवों की संख्या कम नहीं हो रही है। महापात्र राजेंंद्र मिश्र कहते हैं कि अभी तक सामान्य दिनों में 15 से बीस शव ही आते थे। पिछले साल कोरोना काल में तो यह संख्या भी घट गई थी और अधिकांश शव कोविड के विद्युत शव दाह गृह पर ही आते थे, लेकिन इस बार मामला बिगड़ा है। महापात्र का यह सवाल ही इस हकीकत पर भी मुहर लगा रहा है कि कोरोना संक्रमण की जांच न होने और इलाज मिलने के अभाव में भी लोग घरों में दम तोड़ रहे हैं। घर वाले भी नॉन कोविड शव बताकर उनका दाह संस्कार सामान्य श्मशानघाट पर कर रहे हैं। महापात्र कहते हैं कि अधिकांश पर्चे पर लिखकर आ रहा है कि हार्ट अटैक से या सामान्य मौत बता रहे हैं पिछले सात दिनों में चालीस से लेकर 55 तक नॉन कोविड शव आ रहे हैं।
गुल्लालाघाट पर भी सामान्य दिनों में सात से आठ शव ही पहु़ंचते थे लेकिन पिछले सात दिनों में नॉन कोविड शवों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है। बुधवार को ही नॉन कोविड शव 61 हो गए थे। महापात्र विनोद पांडेय का कहना है कि पहली बार इतने शव आ रहे हैं। वैसे गुल्लालाघाट पर सामान्य दिनों में सात से आठ शव ही आते थे और कभी-कभी यह संख्या दस के करीब हो जाती थी लेकिन हर दिन चालीस से पैतालिस शव आ रहे हैं और बुधवार को 61 नॉन कोविड शव आ गए।
लचर इंतजाम से घरों पर तोड़ रहे दम: सरकारी तंत्र के लचर इंतजाम से लोग घरों में ही दम तोड़ रहे हैं। ऐसे लोगों की कोरोना जांच न होने से उनकी मौत का कारण भी स्पष्ट हो पा रहा है। जांच रिपोर्ट कई दिन बाद आने से पहले ही लोगों का दम निकल रहा है। ऐसे में कोविड से मौत का प्रमाण न होने से उसे नगर निगम भी कोविड संक्रमित शव नहीं मान रहा है और कोविड शवों के अंत्येष्टि स्थल पर जाने से रोका जा रहा है।