अक्षय तृतीया को ईश्वरीय तिथि भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन से त्रेतायुग का शुभारंभ हुआ था। इसीलिए इसे युगाब्दि तृतीया भी कहा जाता है। इस दिन किया गया जप दान धर्म का पुण्य कभी नष्ट नहीं होता।
लखनऊ, मंगलवार को अक्षय पुण्य की प्राप्ति की कामना को लेकर भगवान परशुराम के पूजन के साथ ही हवन यज्ञ किया गया। ब्राह्मण परिवार की ओर से कानपुर रोड के उत्तम लान में भगवान परशुराम के चित्र पर माल्यार्पण के साथ ही हवन पूजन किया गया। परिवार के अध्यक्ष शिव शंकर अवस्थी और महामंत्री राम केवल मिश्रा के संयोजन में आयोजित भंडारे में लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। परिवार की ओर से शहर में जगह-जगह भंडारे लगाए गए।
छितवापुर, आलबाग के मौनी बाबा मंदिर, कानपुर रोड एलडीए कालोनी सेक्टर-ई, ऐशबाग शिव मंदिर, इंदिरानगर व आशियाना समेत 100 स्थानों पर भंडारा लगाया गया। ओम ब्राह्मण महासभा के संस्थापक धनंजय द्विवेदी की ओर से खदरा के शिव मंदिर में पूजन किया गया। ठाकुरगंज के घास मंडी के पास पूर्व पार्षद अनुराग पांडेय के संयोजन में हवन पूजन के साथ ही भंडारे का आयोजन किया गया। द्वापर युग में बैसाब शुक्ल तृतीया को जब भगवान परशुराम का अवतार हुआ तब छह ग्रह उसी राशि में थे।
भगवान परशुराम के अवतार के समय पुनर्वसु नक्षत्र था। इसी दिन ब्राह्मïण श्रेष्ठï भगवान परशुराम जयंती मनाई जाती है। जमदग्नि गोत्र वालों ने विशेष पूजन किया। अक्षय तृतीया को ईश्वरीय तिथि भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन से त्रेतायुग का शुभारंभ हुआ था। इसीलिए इसे युगाब्दि तृतीया भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किया गया जप, तप, दान, धर्म का पुण्य कभी भी नष्ट नहीं होता। किसी भी वस्तु का नाश न हो इसलिए अक्षय तृतीया मनाई जाती है।
पौराणिक मान्यताएंः गोमतीनगर के केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डा. अश्विनी पांडेय ने बताया कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु के परशुराम अवतार का जन्म हुआ था।अक्षय तृतीया ही वह शुभ घड़ी थी जब भगवान नर-नारायण और भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार हुआ। परंपराओं के अनुसार, चार धामों में से एक श्री बद्रीनारायण के पट इसी दिन ही खुलते हैं। वृंदावन में बांके बिहारी के चरणों के दर्शन भी साल में एक बार इसी दिन ही होते हैं।
दान का क्षय नहीं होताः भविष्य पुराण के मुताबिक, अक्षय तृतीया को पुण्य तिथि भी कहा जाता है। इस दिन गंगा स्नान विशेष फल देता है। सुबह स्नान के बाद भगवान नारायण का पूजन करने के बाद जल से भरा घटदान किया। ग्रीष्मकालीन वस्तुओं के साथ ही मौसमी फल, सफेद मिष्ठान दान कर पुण्य की कामना की। आचार्य आनंद दुबे ने बताया कि अक्षय तृतीया को सौभाग्य दिवस भी कहा जाता है। इस दिन परिवार की महिलाएं विशेष व्रत-पूजन से परिवार में सिद्धि लाती हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार इसे लक्ष्मी सिद्धि दिवस भी कहते हैं।