“शिवपाल” दांव बना सपा की जीत की गारंटी, चाचा के साथ आने पर बेफिक्र हुए अखिलेश

मैनपुरी के दंगल में कितना कारगर ‘शिवपाल’ दांव। परिवार की एकता से यादव मतदाताओं का असमंजस खत्म। जसवंतनगर की चिंता से लगभग बेफिक्र हुए अखिलेश यादव। मैनपुरी लोकसभा सीट को मुलायम सिंह यादव का गढ़ कहा जाता है।

 

मैनपुरी । मुलायम सिंह से परंपरागत राजनीतिक अखाड़े में चुनावी दंगल जोरों पर चल रहा है। वार है, पलटवार है। दोनों तरफ से दांव पर दांव चले जा रहे हैं। परंतु इस दंगल में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने सबसे बड़ा ‘शिवपाल’ दांव चला है। सपा इसे अपने लिए रामबाण मान रही है, जो निष्फल नहीं होगा, क्योंकि शिवपाल यादव के रुख पर कुछ हद तक भाजपा की रणनीति भी टिकी थी। अब मैनपुरी के अपने दुर्ग के सबसे बड़े गढ़ जसवंतनगर की चिंता से सपाई रणनीतिकार लगभग बेफिक्र हैं। भाजपा जहां नई रणनीति पर काम शुरू कर चुकी है तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल का साथ मिलने के बाद गढ़ को बचाए रखने का ताना-बाना बुन रहे हैं।

सब पर भारी रहे हैं मुलायममैनपुरी लोकसभा सीट को मुलायम सिंह यादव का गढ़ कहा जाता है। मुलायम सिंह के रहते यहां के किसी भी चुनावी दंगल में विरोधी दलों के पहलवान कभी नहीं टिक सके। उनके निधन के बाद अब सपा के सामने अपने इस गढ़ को बचाए रखने की चुनौती है। जब उपचुनाव की घोषणा हुई तो शिवपाल सिंह यादव सुर्खियों में छाये रहे। वह चुनाव मैदान में उतरेंगे या परिवार एक हो जाएगा? ये सवाल सबके मन में कौंध रहा था, विशेषकर यादव मतदाताओं और सपा-प्रसपा के समर्थकाें के। परंतु अब सारी अटकलों को विराम लग चुका है। शिवपाल सिंह यादव पूरी तरह परिवार के साथ आ खड़े हुए हैं। सपा इसे अपने लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद मान रही है।

 

दरअसल, सपा को सबसे ज्यादा चिंता मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में शामिल जसवंतनगर विधानसभा सीट की थी। मुलायम सिंह यादव सहित अन्य सपा प्रत्याशी पूर्व के चुनावों में इसी क्षेत्र से निर्णायक बढ़त पाते रहे हैं। जिस तरह मैनपुरी लोकसभा सीट को मुलायम का गढ़ कहा जाता है, इसी जसवंतनगर सीट शिवपाल का गढ़ मानी जाती है। वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव जसवंतनगर और शिकोहाबाद सीट से चुनाव लड़े थे और दोनों पर जीत हासिल की थी। बाद में जसवंतनगर सीट को छोड़कर 1994 के चुनाव में शिवपाल सिंह यादव को प्रत्याशी बनाया। उस चुनाव से लेकर इस साल हुए विधानसभा चुनाव तक शिवपाल लगातार विजेता रहे। इस साल के विस चुनाव में भी शिवपाल की जीत का अंतर 90 हजार मतों से अधिक था।

चाचा के साथ आने पर अखिलेश की राह आसान

सपा के साथ मुश्किल यह थी कि जसवंतनगर के मतदाताओं से मुलायम के बाद केवल शिवपाल का सीधा जुड़ाव है। परिवार के अन्य किसी सदस्य का वहां सीधा कोई जुड़ाव नहीं, यहां तक कि पार्टी के संगठन पर भी शिवपाल का होल्ड माना जाता है। अब शिवपाल के साथ आने से सपा यहां से पूर्व की तरह ही बड़ी बढ़त मिलने को लेकर लगभग निश्चिंत हो गई है। दूसरी तरफ मैनपुरी के अन्य चार विधानसभा क्षेत्रों में भी शिवपाल सिंह का पुराना जुड़ाव है। यहां तक कि यादव समाज के मतदाता भी शिवपाल यादव के रुख को लेकर पूर्व में थोड़े असमंजस में थे। अब यह असमंजस खत्म हो गया और छोटी-मोटी गुटबाजी भी। पार्टी के कार्यकर्ताओं का उत्साह भी बहुत बढ़ गया है। प्रसपा के संगठन का भी उपयोग किया जा रहा है। सपा इस सब को अपने लिए शुभ संकेत मान रही है।

चाचा न होते तो यह थी मुश्किलजसवंतनगर में जिले से लेकर बूथों तक के संगठन पर शिवपाल सिंह यादव की ही पकड़ है। परिवार के अन्य किसी सदस्य का बहुत प्रभाव नहीं है। यदि शिवपाल साथ नहीं होते तो सपा को एक तरह से पूरा संगठन दोबारा तैयार करना पड़ता।

मैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा को सबसे बड़ी बढ़त जसवंतनगर से ही मिलती रही है। शिवपाल के साथ न होने पर सपा को लाभ के बजाय वोटों की हानि होती दिख रही थी।

शिवपाल सिंह की पार्टी प्रसपा का भी पूरे लोकसभा क्षेत्र में संगठन है। इसके निष्क्रिय या विरोधी होने से सपा को सीधा नुकसान होते दिख रहा था।

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