श्रीलंका में गहराते आर्थिक संकट के बीच एक अमेरिकी थिंक टैंक ने कहा है कि द्वीपीय राष्ट्र को अपनी अर्थव्यस्था को बचाने के लिए फिर से विचार करने की जरूरत है जो चीनी कर्ज के जाल में उलझती जा रही है।
वाशिंगटन, श्रीलंका में गहराते आर्थिक संकट के बीच एक अमेरिकी थिंक टैंक ने कहा है कि द्वीपीय राष्ट्र को अपनी अर्थव्यस्था को बचाने के लिए फिर से विचार करने की जरूरत है, जो चीनी कर्ज के जाल में उलझती जा रही है। वाशिंगटन स्थित ग्लोबल स्ट्रैट व्यू ने अपने विश्लेषण में कहा कि श्रीलंका का वित्तीय संकट, मानवीय संकट की ओर बढ़ रहा है और आखिरकार देश को दिवालियापन की तरफ धकेल देगा। कई विश्लेषकों का मानना है कि देश के वित्तीय संकट के लिए प्रारंभिक तौर पर चीन की कर्ज के जाल में फांसने वाली नीति जिम्मेदार है।
विदेशी कर्ज का बोझ सात अरब डालर के पार
रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका का विदेशी कर्ज वर्ष 2014 (जीडीपी का 30 प्रतिशत) के बाद धीरे-धीरे बढ़ाना शुरू हुआ और वर्ष 2019 में सकल घरेलू उत्पाद का 41.3 प्रतिशत हो गया। द्वीपीय राष्ट्र के विदेशी मुद्रा भंडार में भी तेजी से गिरावट आ रही है और अब सिर्फ 1.6 अरब डालर रह गई है। इससे महज कुछ हफ्तों तक बेहद जरूरी सामग्री का आयात किया जा सकता है। द्वीपीय राष्ट्र पर विदेशी कर्ज का बोझ सात अरब डालर को पार कर गया है, इनमें जनवरी में 50 करोड़ डालर व जुलाई में एक अरब डालर के बांड का भुगतान शामिल है।
श्रीलंका में बढ़ी महंगाई
श्रीलंका में नवंबर 2021 में महंगाई दर 9.9 प्रतिशत थी, जो दिसंबर में 12.1 फीसद हो गई। इस अवधि में खाद्य सामग्री 22 प्रतिशत महंगी हो गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि नकदी संकट से गुजर रहे द्वीपीय राष्ट्र के आयातकों को अत्यावश्यक सामग्री के कार्गो कंटेनरों के लिए भुगतान करने में परेशानी हो रही है, जबकि निर्माताओं तक कच्ची सामग्री भी नहीं पहुंच पा रही है।
बीआरआइ ने भी किया श्रीलंका को खस्ताहाल
ग्लोबल स्ट्रैट व्यू ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था की खस्ताहाली के लिए चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) भी जिम्मेदार है। चीन द्वारा प्रायोजित परियोजनाओं के कारण श्रीलंका कर्ज के जाल में फंसता चला गया। चीन को दुनिया के दूसरे हिस्सों से जोड़ने वाली बीआरआइ परियोजना के तहत ड्रैगन विभिन्न देशों को बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए कर्ज उपलब्ध करा रहा है। हंबनटोटा पोर्ट परियोजना का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन, श्रीलंका का चौथा सबसे बड़ा कर्जदाता बन गया है।