एक अवस्था में आकर माता-पिता पूरी तरह अपनी औलाद पर निर्भर हो जाते हैं। ऐसे में अगर बच्चे की सड़क दुर्घटना में मौत हो जाए तो माता-पिता बुढ़ापे के सहारे के आधार पर मुआवजा पाने के हकदार हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी एक माता-पिता के हक में फैसला सुनाते हुए की है।
न्यायमूर्ति जे आर मिद्या की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि हो सकता है जिस समय बच्चे की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो या वह दिव्यांग हो उस समय माता-पिता उस पर निर्भर ना हों। लेकिन प्रत्येक माता-पिता एक समय जरुर औलाद पर निर्भर होते हैं। उस समय वह आर्थिक व भावानात्मकतौर पर अपनी औलाद पर निर्भर होते हैं। ऐसे में उनके भविष्य को देखते हुए उन्हें मुआवजा देने से इंकार नहीं किया जा सकता। पीठ की यह टिप्पणी एक महिला को उसके 23 वर्षीय लड़के की सड़क दुर्घटना में वर्ष 2008 में हुई मौत के मामले में आया है। पीठ ने इस महिला को मिलने वाले मुआवजा को छह लाख 80 हजार रुपये के मुआवजा राशि में दो लाख 42 हजार रुपये की बढ़ोतरी करने के आदेश दिए हैं। दरअसल इस मामले में निचली अदालत ने पीड़ित परिवार को वर्तमान आय के नुकसान के आधार पर मुआवजा रकम तय की थी।
निचली अदालत का कहना था कि परिजन खुद कमाते हैं इसलिए वह बेटे पर आत्मनिर्भर नहीं थे। निचली अदालत के इस निर्णय को पीड़ित परिवार ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने माना कि बेशक घटना के समय परिजन औलाद पर निर्भर ना हो। लेकिन बुढ़ापे में हर माता-पिता बच्चों पर ही पूरी तरह से निर्भर होते हैं। पीठ ने यह भी कहा कि अगर जवानी में भी माता-पिता अपनी औलाद को खोते हैं तो वह भावनात्मकतौर पर बुरी तरह टूटते हैं और उससे उनका भविष्य निश्चिततौर पर प्रभावित होता है।