इंडोनेशिया के बौद्ध विहार यहां स्थित है। इन देशों के बौद्ध भिक्षु समारोह में शामिल होते हैं, और इसके साक्षी बनते है प्रदेश के मंत्री से लगायत उच्च अधिकारी व विदेशी राजनयिक। कितु यह पहला अवसर है जब इस पावन तिथि को महापरिनिर्वाण भूमि पर देश के प्रधानमंत्री के कदम पड़ेंगे।
कुशीनगर। [ भगवन्त यादव ] तथागत बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर मे पीएम नरेंद्र मोदी से लगायत राष्ट्रपति अब्दुल कलाम सहित कई देशो के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आते रहे है। लेकिन यह पहला अवसर है कि बुद्ध जयंती पर पीएम मोदी बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली पर होगे। वह भगवान बुद्ध को यहा नमन कर सीधे जन्मस्थली को पूजने नेपाल के लुंबिनी के लिए प्रस्थान करेगे। ऐसा माना जा रहा है कि गौतम बुद्ध के परिनिर्वाण स्थली से जन्मभूमि की यात्रा भारत-नेपाल के संबधो मे न सिर्फ मिठास घुलेगा बल्कि दोनो देशो के संबधो मे मजबूती बढेगी। यही वजह है कि राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ पीएम मोदी की इस यात्रा को सांस्कृतिक कूटनीति के तौर पर भी देख रहे है।
कहना ना होगा कि नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए भारत ने साझा बौद्ध सांस्कृतिक संबंधों को आधार बनाया है। बीते वर्ष 20 अक्टूबर-21 को प्रधानमंत्री मोदी के हाथों कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के उद्घाटन के मौके पर श्रीलंका के विशेष राजनयिक व बौद्ध दल को बुलाया गया था। श्रीलंका से संबंध प्रगाढ़ करने की दिशा में प्राचीन संबंधों को आधार बनाया गया। चीन के कारण नेपाल से चल रही खटास को कम करने और संबंध मजबूत करने में, भारत सांस्कृतिक कूटनीति का इस्तेमाल कर रहा है। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नेपाली व भारतीय बौद्ध सर्किट को वायु सेवा व सड़क मार्ग से जोड़कर आवागमन सुगम बनाने के लिए किसी बड़ी परियोजना की भी घोषणा कर सकते हैं। दरअसल, गौतम बुद्ध के तीन महत्वपूर्ण स्थल भारत में स्थित हैं। महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर, सारनाथ वाराणसी में प्रथम उपदेश स्थल व बिहार के बोधगया स्थित ज्ञान प्राप्ति स्थल। लुंबिनी सहित यह सभी स्थल दुनिया भर के बौद्ध श्रद्धालुओं का केंद्र हैं। भारतीय बौद्ध सर्किट में आने वाले विभिन्न देशों के श्रद्धालु नेपाल भी जाते हैं। नेपाल जाने वालों में भारतीय बौद्धों का भी एक बड़ा वर्ग है।
बुद्ध जयंती को यादगार बनाने कुशीनगर आरहे है पीएम मोदी
यह पहला अवसर होगा जब 2566 वीं बुद्ध जयंती को यादगार बनाने के लिए प्रधानमंत्री कुशीनगर आ रहे हैं।जगज़ाहिर है कि बुद्ध पूर्णिमा का वैश्विक बौद्ध जगत में विशेष महत्व है। इस तिथि को लुंबिनी में बुद्ध का जन्म हुआ था। बुद्ध को बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति भी पूर्णिमा तिथि को ही हुई थी और उनका निर्वाण भी इसी तिथि को हुआ था। बौद्ध धर्मगुरुओं ने इसे त्रिविध पावन बुद्ध पूर्णिमा का नाम दिया। दुनिया भर के बौद्ध अनुयायी इस तिथि को पर्व के रूप में उल्लास के साथ मनाते हैं। कुशीनगर में भी बुद्ध जयंती समारोहपूर्वक मनाई जाती रही है। म्यांमार,थाईलैंड, श्रीलंका, जापान, कोरिया, भूटान, वियतनाम , इंडोनेशिया के बौद्ध विहार यहां स्थित है। इन देशों के बौद्ध भिक्षु समारोह में शामिल होते हैं, और इसके साक्षी बनते है प्रदेश के मंत्री से लगायत उच्च अधिकारी व विदेशी राजनयिक। कितु यह पहला अवसर है जब इस पावन तिथि को महापरिनिर्वाण भूमि पर देश के प्रधानमंत्री के कदम पड़ेंगे। जयंती पर प्रधानमंत्री के आगमन को लेकर बौद्ध भिक्षु काफी उत्साहित व प्रसन्न हैं। श्रीलंकाई बौद्ध भिक्षु अस्स जी महाथेरो का कहना है बुद्ध सबके है और सभी बुद्ध के हैं। बुद्ध ने दुनिया को शांति से अहिसा के मार्ग पर चलना सिखाया। भारत के प्रधानमंत्री उस मार्ग पर दुनिया को ले चलने की कोशिश कर रहे हैं।