यूपी के आगरा के एक बेगुनाह दंपती को हत्या के झूठे इल्जाम में पांच साल तक जेल काटनी पड़ी। पांच साल बाद बेगुनाही साबित हुई। दंपती, रिहा होकर बाहर निकला तो बच्चों को ढूंढने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी। दंपती किसी तरह बच्चों के पास पहुंचा लेकिन उनकी बेटी उन्हें पहचान तक नहीं सकी। अब इस दंपती के सामने आजीविका और बच्चों के भविष्य को सम्भालने का संकट है। दंपती, शासन और प्रशासन से मदद की गुहार लगा रहा है। हालांकि अभी तक किसी स्तर से उन्हें मदद का कोई आश्वासन नहीं मिला है।
इस दंपती के दुर्भाग्य की शुरुआत दो सितंबर 2015 को आगरा के बाह तहसील के जरार क्षेत्र से हुई थी। इस क्षेत्र के रहने वाले योगेंद्र सिंह के पांच साल के मासूम बेटे रंजीत की हत्या हो गई थी। बेटे का शव मिलने पर उन्होंने पड़ोस के रहने वाले नरेंद्र सिंह और उसकी पत्नी नजमा पर घटना को अंजाम देने का आरोप लगाया था। मामले की विवेचना ब्रह्म सिंह ने की। उन्होंने चार्जशीट दाखिल कर हत्या का इल्जाम नरेंद्र सिंह और नजमा पर लगा दिया। नरेंद्र सिंह और उनकी पत्नी नजमा, बच्चों के पालन-पोषण के लिए गांव में ही सब्जी की दुकान लगाते थे।
इस दंपती को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए पांच साल तक लम्बी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। अधिवक्ता वंशो बाबू ने उनका केस लड़ा। बेगुनाही साबित होने और जेल से रिहा होने के बाद उनके बच्चों का कुछ पता नहीं चल रहा था। काफी खोजबीन के बाद उन्हें पता चला कि बच्चे कानपुर बालसुधार गृह में हैं। दंपती कानपुर पहुंचा। काफी जद्दोजहद के बाद उन्हें उनके बच्चे तो मिल गए लेकिन अब वह थाने में जमा अपने कागजात के लिए परेशान हैं।
दंपती का कहना है कि अब यदि वे कागज कहीं और से बनवाएंगे तो उन्हें फर्जी करार दिया जा सकता है। उन्होंने बच्चों के सभी जरूरी कागजात बनवाने में प्रशासन से मदद मांगी है। इसके साथ ही वे प्रशासन से आर्थिक मदद चाहते हैं ताकि कोई काम शुरू कर बच्चों का पालन पोषण कर सकें। अब योगेन्द्र सिंह के बच्चे के असली कातिलों को ढूंढने के साथ-साथ सेवानिवृत हो चुके विवेचक के खिलाफ कार्यवाही करने और बेगुनाह दंपती के पुनर्वास का जिम्मा किसका है, यह प्रशासन को तय करना है।