दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है। लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है।’राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने बेहद भावुक अंदाज में अपना विदाई भाषण देते हुए यह शेर पढ़ा। यह शेर उन्होंने जम्मू-कश्मीर में बदले हुए हालात के बारे में पढ़ा था, पर यह उनके राजनीतिक सफर पर भी सटीक बैठता है। क्योंकि राज्यसभा में वापसी के लिए उनकी शाम लंबी हो सकती है। पार्टी के पास उन्हें राज्यसभा भेजने के लिए कोई सीट नहीं है।
गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के उन गिने चुने पार्टी नेताओं में है, जिन्हें गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम करने का अनुभव है। आजाद लगभग सभी प्रदेशों और केंद्र शासित राज्यों के प्रभारी रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस में वह इकलौते ऐसे नेता हैं, जिनके कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर राजनीतिक दल में उनके मित्र हैं। ऐसे में पार्टी उन्हें संगठन में जिम्मेदारी सौंपकर उनके अनुभवों का लाभ ले सकती है।