सहारनपुर: आक्सीजन स्तर बढ़ने से गिद्धों को रास आने लगे शिवालिक के जंगल

गिद्धों की अचानक 11 साल बाद जंगल में वापसी हुई है। इसके पीछे कई सकारात्मक बदलावों को मुख्य वजह माना जा रहा है। जंगलों में मृत पशुओं के शव फेंके जाने लगे तो मिलने लगा है भोजन।

 

सहारनपुर,  शिवालिक वन क्षेत्र से विलुप्त हुए गिद्धों की अचानक 11 साल बाद जंगल में वापसी हुई है। इसके पीछे पिछले दस सालों में हुए कई सकारात्मक बदलावों को मुख्य वजह माना जा रहा है। कोरोना काल के बाद शिवालिक वन क्षेत्र में सकारात्मक पर्यावरणीय बदलाव बड़े पैमाने पर हुए हैं, यहां कम हुए पर्यावरण प्रदूषण का असर यह है कि अमूमन सहारनपुर से हिमालय की चोटियों को देखा जा रहा है, वहीं पशुओं में प्रयोग की जाने वाली डाइक्लोफेनिक दवा पर लगी पाबंदी का असर भी रंग ला रहा है तथा परिणाम गिद्धों की बढती संख्या के रूप में सामने है। अब तक गिद्धों के कुनबे में हिमालयन ग्रिफन की पुष्टि की गई है, लेकिन वन विभाग का दावा यह भी है कि कुनबे में हिमालयन ग्रिफन के अलावा अन्य प्रजातियों के गिद्ध भी शामिल हैं।

11 साल बाद दिखा कुनबा

शिवालिक के जंगलों में लगभग 11 साल बाद दुर्लभ गिद्धों का कुनबा दिखा है। सन् 2011 में अंतिम बार करौंदी बीट नंबर-दो के कच्छ खारा 2- ए में दो गिद्धों को देखा गया था। अब पुन: सन 2022 में शिवालिक के बादशाहीबाग इलाके में दुर्लभ गिद्धों का पूरा परिवार एक साथ दिखाई दिया है। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया शिवालिक में पगमार्क तकनीक के जरिए गिद्धों की गणना कर रहा है। इस क्षेत्र में गिद्धों के कुनबे में वृद्धि के कारण पर भी वन विभाग अध्ययन कर रहा है।

जंगलों में मिलने लगा भोजन

पर्यावरण में बड़े बदलाव का असर ऐरावत संस्था के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर जीएस कुशारिया ने बताया कि पहले गिद्ध सामान्य तौर पर स्लाटर हाउसों के पास मंडराया करते थे, इनके कारण कई बार कुछ हादसे भी हुए। गिद्धों को रोकने के लिए स्लाटर हाउस संचालकों ने कुछ खतरनाक पदार्थ हड्डियों में लगाने शुरू किए। इसका असर गिद्धों के प्रजनन पर पड़ने लगा। उधर पशुपालकों ने मृत पशुओं के शवों को मिट्टी में दबाना शुरू कर दिया, इससे गिद्धों को भोजन मिलना बंद हो गया। अब पिछले कुछ सालों में बदलावा आया है। मृत पशुओं के शवों को जंगलों में फेंकने की पहल हुई है, इससे गिद्धों को भोजन जंगलों में मिलने लगा है, वहीं कोरोना काल के बाद से खासकर अभयारण्यों में बड़े बदलाव आए हैं। पौधारोपण अभियान चलाए जाने तथा जंगलों का क्षेत्रफल बढने से जंगलों में आक्सीजन का स्तर बढा है। इस कारण गिद्धों ने आसपास के इलाकों से शिवालिक जैसे जंगलों का रुख किया है। शिवालिक के अलावा अमानगढ़ वन रेंज में भी मार्च में वन विभाग की टीम को 101 हिमालयन ग्रिफन गिद्ध दिखाई दिए थे।

 

गिद्ध कार्य योजना

बड़ी उम्मीद है ‘गिद्ध कार्य योजना’जिला पशु चिकित्सा अधिकारी डा. आरके सक्सेना कहते हैं कि ‘गिद्ध कार्य योजना 2020-25’ गिद्धों के लिए बड़ी उम्मीद है। इसके फोकस में उप्र है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय इस योजना पर काम कर रहा है। इसके तहत विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिए चार बचाव केंद्र प्रस्तावित किए गए हैं। डाइक्लोफेनिक को प्रतिबंधित कर दिया गया है, इसकी जगह मिलाक्सीकैम समेत कई अन्य दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है। इसका असर यह है कि अब मृत पशुओं के शवों को खाने से गिद्धों को कोई नुकसान नहीं होता तथा पुन: गिद्ध दिखाई देने लगे हैं।

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