कांग्रेस के अध्यक्ष बनने वाले नेता, जिनका नहीं था गांधी-नेहरू परिवार से कोई नाता

आजादी के 75 सालों में 40 साल इस परिवार का ही कोई न कोई सदस्य अध्यक्ष पद पर काबिज रहा। वहीं साल 1998 से लेकर अबतक सोनिया या राहुल गांधी ही अध्यक्ष रहे हैं। चलिए जानते हैं उन कांग्रेस अध्यक्ष के बारे में जो नेहरू-गांधी खानदान का हिस्सा नहीं रहे।

 

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। शुक्रवार के दिन कांग्रेस को एक और झटका लगा। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता सहित सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। 5 पन्नों की चिट्ठी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजी। बता दें कि दो-तीन हफ्तों बाद कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव होने जा रहा है। सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष कौन होगा? क्या कांग्रेस का अगला अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होगा या फिर कोई और?

कयास लगाया जा रहा है कि कांग्रेस में लंबे समय बाद बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। काग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की तबीयत नासाज है। जबकि राहुल गांधी ने कई बार अध्यक्ष पद की कुर्सी पर बैठने से कन्नी काटते रहे हैं। अध्यक्ष पद के दौड़ में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम सबसे आगे लिया जा है।

54 सालों तक केंद्र पर हुकूमत करने वाली कांग्रेस पार्टी ने देश को 7 प्रधानमंत्री दिए। कांग्रेस पार्टी ने आजादी के बाद से लेकर अबतक कुल 19 नेताओं को अध्यक्ष पद पर बैठाया है। बात करें गांधी परिवार, यानी जवाहर लाल नेहरू से लेकर मौजूदा गांधी परिवार यानी सोनिया गांधी तक की, तो 19 में 5 अध्यक्ष नेहरू-गांधी खानदान से ही ताल्लुक रखते हैं। गौरतलब है कि आजादी के 75 सालों में 40 साल इस परिवार का ही कोई न कोई सदस्य अध्यक्ष पद पर काबिज रहा। वहीं, साल 1998 से लेकर अबतक सोनिया या राहुल गांधी ही अध्यक्ष रहे हैं।

चलिए जानते हैं उन कांग्रेस अध्यक्ष के बारे में जो नेहरू-गांधी खानदान का हिस्सा नहीं रहेपट्टाभि सीतारमैय्या

1948-1949: स्वतंत्र भारत में कांग्रेस पार्टी के पहले अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैय्या थे। जयपुर अधिवेशन में उन्हें पार्टी प्रमुख के रूप में चुना गया था। साल 1930 में आंध्र प्रदेश के मसूलीपट्टनम के पास समुद्र तट पर स्वयंसेवकों का नेतृत्व करके और नमक बनाकर नमक कानून तोड़ने के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया था।

पुरुषोत्तम दास टंडन

1950: पुरुषोत्तम दास टंडन साल 1950 में काग्रेस के दूसरे अध्यक्ष बने। उन्होंने नासिक सत्र की अध्यक्षता की। उन्होंने भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी को प्रतिष्ठित करवाने में खासा योगदान निभाया। उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।

नीलम संजीव रेड्डी

1960-1963: आंध्र प्रदेश के एक प्रमुख नेता, नीलम संजीव रेड्डी 1960-1963 तक कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वह साल 1977 से 1982 तक भारत के छठे राष्ट्रपति थे। उन्होंने भी आजादी की लड़ाई योगदान निभाया था। साल 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के लिए कॉलेज में अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी।

 

के कामराज

1964-1967: के कामराज  साल 1964 से 1967 तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। उन्हें भारतीय राजनीति में ‘किंगमेकर’ कहा जाता था। माना जाता था। उन्हें भी भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

एस सिद्धवनल्ली निजलिंगप्पा

1968-1969: कर्नाटक के एकीकरण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले और राज्य के पहले मुख्यमंत्री एस सिद्धवनल्ली निजलिंगप्पा ने साल 1968-69 में कांग्रेस के अध्यक्ष का पदभार संभाला। गौरतलब है कि जब कांग्रेस का विभाजन हुआ, तो उन्होंने ही इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले गुट के खिलाफ संगठन के मोर्चे का समर्थन किया था।

जगजीवन राम

 

1970-1971: जगजीवन राम जिसे बाबूजी भी कहा जाता है। 25 जून 1975 को इलाहाबाद की हाईकोर्ट बैंच के जस्टिस सिन्हा ने फैसला सुनाया कि रायबरेली से इन्दिरा गांधी का निर्वाचन अयोग्य है। इस मुश्किल समय में जगजीवन राम ने इंदिरा गांधी का साथ निभाया था। उन्हें कांग्रेस पार्टी का संकटमोचन भी कहा जाता है। वे पिछड़े वर्गों, अछूतों और शोषित मजदूरों के नेता थे।

शंकर दयाल शर्मा

1972-1974: भारत के पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस नेता शंकर दयाल शर्मा ने चार साल तक कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे। साल 1942 में गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रहे। 1971 में डॅा शर्मा लोकसभा के लिए चुने गए और देश के संचार मंत्री बने।

देवकांत बरुआ

 

1975-1977: देवकांत बरुआ ने साल 1975-1977 तक आपातकाल के समय कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे। वो ‘इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया’ टिप्पणी के लिए जाना जाते हैं। वह गांधी परिवार के वफादार थे, लेकिन बाद में कांग्रेस के विभाजन के बाद इंदिरा विरोधी गुट में शामिल हो गए थे।

पीवी नरसिम्हा राव

 

1992-96: कांग्रेस नेता पीवी नरसिम्हा राव साल 1992 से 1996 तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहें। पीवी नरसिम्हा राव, एक स्वतंत्रता सेनानी, वकील, 17 भाषाओं के ज्ञाता, अर्थशास्त्री, विदेश नीति में एक्सपर्ट और काफी कुशल राजनेता रहे। वो देश के ऐसे प्रधानमंत्रियों में से एक थे जिन्हें अचानक किसी पूर्व उम्मीद के प्रधानमंत्री बनाया गया।

 

सीताराम केसरी

1996-1998: सीताराम केसरी को 1996 में कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाए गए थे। सीताराम केसरी 13 साल के बच्चे के रूप में बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए और अंतत अपने राज्य के एक युवा नेता बन गए। बिहार के रहने वाले सीताराम केशरी, कांग्रेस के केषाध्यक्ष थे और उनके बारे में एक जुमला भी काफी लोकप्रिय था, ‘ना खाता ना बही, जो केसरी कहे वही सही।’

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