नाटो के अलावा यूक्रेन युद्ध के जानें क्‍या हैं अन्‍य बड़े कारण? पुतिन की NATO से क्‍या है चिढ़

आखिर यूक्रेन जंग में दोनों देशों के बीच ऐसे कौन से बड़े मतभेद हैं जिसके चलते रूसी सेना युद्ध के लिए विवश हुई। नाटो के अलावा के इस जंग के क्‍या प्रमुख कारण है। इसके अलावा यह भी जानेंगे कि आखिर इस युद्ध के क्‍या नतीजें होंगे।

 

नई दिल्‍ली । रूस यूक्रेन के बीच पिछले छह महीनों से जारी जंग में यूक्रेनी सैनिक जहां अग्रिम मोर्चे पर रूसी सैन्य टुकड़ियों के साथ संघर्ष कर रहे हैं, वहीं यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्‍की दुनिया का ध्यान इस युद्ध पर बनाए रखने में लगे हुए हैं। आज इस कड़ी में हम आपको बताएंगे कि आखिर दोनों देशों के बीच ऐसे कौन से बड़े मतभेद थे, जिसके चलते रूसी सेना युद्ध के लिए विवश हुई। नाटो के अलावा इस जंग के क्‍या प्रमुख कारण है। इसके अलावा यह भी जानेंगे कि आखिर इस युद्ध के क्‍या नतीजें होंगे।

आखिर कैसे हुई जंग की शुरुआत

इस जंग के प्रारंभ होने से पूर्व रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन पर हमले की किसी भी योजना से इन्‍कार करते रहे। उन्‍होंने कहा था कि यह महज एक सैन्‍य अभ्‍यास है। फरवरी में रूसी सेना ने यूक्रेन में विशेष सैन्य कार्रवाई करने का एलान कर दिया। उनके इस एलान के बाद यूक्रेन की राजधानी कीव सहित देश के अन्य हिस्सों में धमाके गूंजने लगे। पुतिन की ओर से यह कार्रवाई मिंस्क शांति करार को समाप्‍त करने और यूक्रेन के दो अलगाववादी क्षेत्रों में सेना भेजने के एलान के बाद हुई थी। रूस की ओर से इन क्षेत्रों में सेना भेजने की वजह शांति कायम करना बताया गया। युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व यूक्रेन की सीमा पर हजारों रूसी सैनिकों को तैनात कर दिया गया था। इसके बाद से ही यूक्रेन पर हमले की अटकलें लगाई जा रही थीं। अमेरिका भी बार-बार कह रहा था कि रूसी सेना कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकती है।

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क्राइमिया के कब्‍जे के बाद पुतिन के इरादे हुए खतरनाक

1- वर्ष 1994 तक सब कुछ ठीक-ठाक था। इसी वर्ष रूस ने एक समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए यूक्रेन की स्वतंत्रता और संप्रभुता का सम्मान करने पर अपनी रजामंदी जताई थी। यूक्रेन कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहने के चलते यूक्रेन का रूस के समाज और संस्कृति से गहरा जुड़ाव है। वहां रूसी भाषा बोलने वालों की संख्या भी अच्छी खासी है, लेकिन 2014 में रूस के हमले के बाद से दोनों देशों के रिश्ते बेहद खराब हो गए। वर्ष 2014 में रूस समर्थक माने जाने वाले यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति को सत्ता छोड़नी पड़ी थी। उसके बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था।

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2- इसके बाद रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन ने यह दावा किया कि यूक्रेन का गठन कम्युनिस्ट रूस ने किया था। पुतिन का मानना है कि वर्ष 1991 में सोवियत संघ का विघटन रूस के टूटने के जैसा था। इस क्रम में उन्‍होंने रूसी और यूक्रेनी लोगों को समान राष्ट्रीयता वाला बताया था। पुतिन ने यह भी कहा कि यूक्रेन के मौजूदा नेता मास्‍को विरोधी प्रोजेक्ट का संचालन कर रहे हैं। पुतिन ने यह भी तर्क देना शुरू कर दिया था कि यूक्रेन कभी एक पूर्ण देश नहीं था। पुतिन ने कहा था कि यूक्रेन पश्चिमी देशों के हाथों की कठपुतली बन गया है। इसके बाद पुतिन के इरादों पर शक होने लगा था।

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3- यूक्रेन के अलगाववादी क्षेत्र लुहान्स्क और दोनेत्स्क क्षेत्र को मान्‍यता देने के बाद दोनों देशों के बीच और कटुता बढ़ी। रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन के इन अलगाववादी क्षेत्र को आजाद क्षेत्र की मान्यता देने का एलान करने का मतलब यह है कि रूस पहली बार कुबूल कर रहा है कि उसके सैनिक उन इलाकों में मौजूद हैं। मिन्स्क समझौते के अनुसार यूक्रेन को उन इलाकों को विशेष दर्जा देना था, लेकिन रूस की कार्रवाई के चलते अब ऐसा शायद ही संभव हो। दरअसल, रूस लंबे वक्‍त से यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में जनसंहार का आरोप लगाकर युद्ध के लिए माहौल तैयार कर रहा था। उसने विद्रोही इलाकों में करीब सात लाख लोगों के लिए विशेष पासपोर्ट भी जारी किए थे। इसके पीछे रूस की मंशा थी कि अपने नागरिकों की रक्षा के बहाने यूक्रेन पर कार्रवाई को सही ठहराया जाए।

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4- रूस को यूक्रेन और पश्चिमी देशों की निकटता अखरती रही है। रूस की इच्‍छा थी कि यूक्रेन नाटो और पश्चिमी देशों से दूरी बनाकर रखे। यूक्रेन ने जब नाटो की सदस्‍यता में दिलचस्‍पी दिखाई तो मामला और बिगड़ गया। उधर, रूस ने नाटो को भी आगाह किया था कि वह पूर्वी यूरोप में अपने विस्‍तारवादी नीति का त्‍याग कर दे। रूस ने नाटो से यह सख्‍त ऐतराज जताया था कि वह पूर्वी यूरोप में अपनी सैन्‍य गतिविधियां बंद कर दें। अगर नाटो रूस की इस शर्त को मानते हैं तो उनको पोलैंड, एस्टोनिया, लात्विया और लिथुआनिया से अपनी सेनाएं वापस बुलानी होगी। इतना ही नहीं नाटो पोलैंड और रोमानिया में अपनी मिसाइलें को तैनात नहीं कर पाएगा। नाटो देशों पर रूस का आरोप है कि वह यूक्रेन को लगातार हथियारों की आपूर्ति कर रहे हैं और अमेरिका दोनों देशों के बीच के तनाव को भड़का रहा है।

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यूक्रेन जंग में कोई कूटनीतिक रास्‍ता नहीं

1- यूक्रेन जंग में कोई कूटनीतिक रास्‍ता नहीं निकलता दिख रहा है। यह आशंका जताई जा रही है कि रूस की सेना, यूक्रेन के पूर्वी, उत्तरी और दक्षिणी इलाके पर हमला करते हुए वहां की चुनी हुई सरकार को हटाने की कोशिश कर सकती है। यूक्रेन पर कार्रवाई करने के लिए रूस, क्राइमिया, बेलारूस और यूक्रेन की उत्तरी सीमा के पास भारी संख्या में सैनिक तैनात कर सकता है। इस दौरान रूस को प्रतिरोध का सामना भी करना पड़ सकता है, क्योंकि पिछले कुछ सालों में यूक्रेन ने अपनी सेना को पहले से अधिक मजबूत बनाया है। इसके अलावा रूस को यूक्रेनी जनता का भी भारी विरोध झेलना होगा।

2- रूस के पास अन्‍य विकल्प भी हैं। वह यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित कर सकता है। वह वहां के बंदरगाहों को ब्‍लाक कर सकता है या फिर पड़ोसी मुल्क बेलारूस में अपने परमाणु हथियार तैनात कर सकता है। यह भी हो सकता है कि रूस, यूक्रेन पर साइबर हमला कर दें। इस साल के जनवरी में यूक्रेन सरकार की वेबसाइट ठप पड़ गई थी।

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