रात में छह से सात घंटे की नींद से कम होता है हार्ट अटैक से मौत का खतरा। अमेरिकन कालेज ऑफ कार्डियोलॉजी के 70वें वार्षिक सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया अध्ययन। अध्ययन का मकसद यह पता लगाना था कि सोने की समयावधि का बेसलाइन कार्डियोवास्कुलर खतरे से क्या संबंध है?
वाशिंगटन, अच्छी नींद के कई फायदे सामने आ चुके हैं। लेकिन एक नया अध्ययन बताता है कि जो लोग रात में छह से सात घंटे सोते हैं, उनमें हार्ट अटैक या स्ट्रोक से मौत का खतरा कम होता है। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि दिल की बीमारी या स्ट्रोक के अन्य कारकों के बावजूद नियत समय तक नींद लेने की अहमियत बनी रही। अध्ययन के निष्कर्ष अमेरिकन कालेज ऑफ कार्डियोलॉजी के 70वें वार्षिक सम्मेलन में पेश किया गया।
शोधकर्ताओं ने बताया कि अध्ययन का मकसद यह पता लगाना था कि सोने की समयावधि का बेसलाइन कार्डियोवास्कुलर खतरे से क्या संबंध है? पाया गया कि जिस प्रकार से खान-पान, धूमपान और व्यायाम दिल की सेहत में भूमिका निभाते हैं, उसी प्रकार नींद की भी अहमियत है।
ड्रेटायट में हेनरी फोर्ड हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन विभाग में रेजीडेंट डॉक्टर तथा अध्ययन के मुख्य लेखक कार्तिक गुप्ता बताते हैं कि दिल की बीमारी की आशंका में लोग अक्सर अन्य कारकों के प्रति सचेत होते हैं, लेकिन नींद के मामले में गंभीरता नहीं बरतते। वह कहते हैं, हमारे पास उपलब्ध डाटा बताता है कि रात में छह से सात घंटे की नींद दिल की सेहत के लिए फायदेमंद है।
अपने अध्ययन के लिए गुप्ता और उनकी टीम ने 2005-2010 के बीच नेशनल हेल्थ एंड न्यूट्रिशन एक्जामिनेशन सर्वे में शामिल 14,079 लोगों के डाटा का अध्ययन किया। इस अवधि के मध्यमान से साढ़े सात साल तक यह पता करने की कोशिश की गई कि कितने लोगों की मौत हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर या स्ट्रोक से हुई। सर्वे में शामिल लोगों की औसत उम्र 46 साल थी और इनमें आधी महिलाएं और 53 फीसद अश्वेत थीं। दस फीसद से भी कम सहभागियों में पहले से हार्ट डिजीज या स्ट्रोक की शिकायत थी।
इन सहभागियों को नींद लेने के आधार पर तीन समूहों में बांटा गया। सामान्य औसत सात घंटे की नींद को माना गया। इसके आधार पर उनमें एथरोस्केलेरॉटिक कार्डियोवास्कुलर डिजीज (एएससीवीडी) का रिस्क स्कोर तथा सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) का आकलन किया गया। सीआरपी दिल की बीमारी से जुड़ा एक प्रमुख मार्कर माना जाता है।
एएससीवीडी रिस्क स्कोर में उम्र, लिंग, नस्ल, ब्लड प्रेशर तथा कोलेस्ट्राल के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि किसी व्यक्ति में एथरोस्केलेरोसिस से अगले 10 साल में हार्ट अटैक या स्ट्रोक से मौत का कितना खतरा है। एथरोस्केलेरोसिस धमनियों के सख्त होने से संबंधित विकार है। एएससीवीडी स्कोर पांच फीसद से कम होने का मतलब कम जोखिम होता है। पाया गया कि सभी सहभागियों का मध्यमान एएससीवीडी रिस्क 3.5 फीसद से कम था और छह से सात घंटे की नींद लेने वालों में सबसे कम खतरा था। जबकि मध्यमान 10 वर्ष की अवधि में छह घंटे से कम, छह से सात घंटे या इससे ज्यादा समय तक सोने वालों में एएससीवीडी रिस्क क्रमश: 4.6 फीसद, 3.3 फीसद 3.3 फीसद रहा।
गुप्ता ने बताया कि जो सहभागी छह घंटे से कम या सात घंटे से ज्यादा सोते थे, उनमें दिल की बीमारी से मौत की आशंका ज्यादा थी। हालांकि एएससीवीडी रिस्क छह से सात घंटे और सात घंटे से ज्यादा सोने वालों में एक समान था। हालांकि यह भी देखने में आया कि रात में छह से सात घंटे की नींद लेने वालों में खतरा कम था। लिवर में बनने वाले सीआरपी नामक प्रोटीन का स्तर भी उन लोगों में ज्यादा पाया गया, जो कम या अधिक समय तक सोते थे।