अमेरिका ने फलस्तीन को वित्तीय मदद देने का वादा किया है। ये मदद अरबों रुपये की है जो सीधेतौर पर फलस्तीन को दी जाएगी। इसके अलावा गाजा में प्रभावित इलाकों को सही करने के लिए भी वित्तीय मदद दी जाएगी।
वाशिंगटन (रॉयटर्स)। इजरायल और फलस्तीन के बीच गाजा में 11 दिनों तक चली लड़ाई के बाद हुआ सीजफायर और फिर गाजा क्रॉसिंग को खोलने पर सभी देशों ने खुशी जताई है। इजरायल के इस कदम के बाद हमले से प्रभावित इलाकों में पीडि़तों को मदद पहुंचाने में तेजी आई है। इस बीच अमेरिका ने येरूशलम और फलस्तीन को लेकर बड़ा एलान किया है। ये वादा अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने वेस्ट बैंक के दौरे के समय रमल्लाह में किया है। ये वादा उन्होंने फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास की मौजूदगी में किया है। उन्होने कहा कि अमेरिका फलस्तीन को वित्तीय मदद के तौर पर साढ़े सात करोड़ डॉलर यानी लगभग साढ़े पांच अरब रुपये देगा।
अमेरिका ने सिर्फ इतना ही वादा नहीं किया है बल्कि उन्होंने कहा है कि वो गाजा में लोगों की मदद के लिए करीब 40 करोड़ और फलस्तीन स्थित संयुक्त राष्ट्र सहायता एजेंसी को ढाई अरब रुपये की भी मदद देगा। अपने इस दौरे पर ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका इस बात से भलीभांति वाकिफ है कि सीजफायर का पूरा फायदा यहां की मूलभूत चुनौतियों को हल करने में किया जाना चाहिए। उनके मुताबिक इसकी शुरुआत गाजा में पैदा हुए गंभीर मानवीय संकट को हल करने से होगी।
अपने बयान में उन्होंने हमास को लेकर भी अमेरिकी नीति साफ कर दी। उन्होंने कहा कि बाइडन प्रशासन चाहता है कि हमास को किसी भी तरह से आर्थिक लाभ नहीं पहुंचना चाहिए। आपको बता दें कि हमास एक आतंकी संगठन के तौर पर चिन्हित है और प्रतिबंधित है। हालांकि गाजा में इसकी पकड़ काफी मजबूत हैं। ब्लिंकन ने फलस्तीनी राष्ट्राध्यक्ष को कहा कि यदि अमेरिकी मदद को सही तरह से वितरित किया गया तो इससे गाजा में हमास का प्रभाव कम होगा।
ब्लिंकन के इस दौरे की शुरुआत येरूशलम से हुई थी। वहां पर उन्होंने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात भी की थी। इस मुलाकात के दौरान ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका येरूशलम में दोबारा अपना उच्चायोग खोलेगा जिससे फलस्तीनी नागरिकों से नजदीकी संबंध बन सकेंगे और ये मदद पहुंचाने में भी अहम साबित होगा। हालांकि उन्होंने इसकी कोई समय सीमा नहीं बताई।
गौरतलब है कि वर्ष 2017 में इजरायल ने अपनी राजधानी तेल अवीव से येरूशलम बना दी थी। ये फैसला अमेरिकी घोषणा के बाद हुआ था। इसमें तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता दी थी। इसके बाद अमेरिका ने यहां पर अपना दूतावास खोल दिया था। हालांकि अमेरिका के इस फैसले का फलस्तीन समेत सभी इस्लामिक देशों ने जमकर विरोध किया था। गौरतलब है कि येरूशलम पर 1967 से ही इजरायल का कब्जा बना हुआ है।
ब्लिंकन ने इजरायल और फलस्तीन को ऐसा कोई भी कदम उठाने से बचने की हिदायत दी है जिससे दो राष्ट्र का सिद्धांत कमजोर होता हो। उन्होंने कहा कि इजरायल को लेकर अमेरिका अपने दो राष्ट्र के सिद्धांत पर पूरी तरह से टिका हुआ है। इसके अलावा उन्होंने फलस्तीन के इलाकों में गैरकानूनी रूप से इजरायल द्वारा बस्तियां बसाने पर भी चेतावनी दी है।