उत्तर प्रदेश में बदल रहा मानसून का गणित, तीन दशक में बारिश में आई बीस फीसद तक की कमी,

उत्तर प्रदेश में मौसम के बदले मिजाज से वर्षाचक्र की तस्वीर बदल रही है। आंकड़ों को देखें तो सालभर होने वाली वर्षा का गणित बिगड़ गया है। मानसून के सीजन में कम बारिश हो रही है जबकि प्री मानसून में कई बार सामान्य से अधिक वर्षा दर्ज की गई है।

 

लखनऊ, उत्तर प्रदेश में मौसम के बदले मिजाज से वर्षाचक्र की तस्वीर बदल रही है। आंकड़ों को देखें तो सालभर होने वाली वर्षा का गणित बिगड़ गया है। मानसून के सीजन में कम बारिश हो रही है, जबकि प्री मानसून में कई बार सामान्य से अधिक वर्षा दर्ज की गई है। वहीं, इस साल मानसून ने एक सप्ताह पहले ही पूर्वी उत्तर प्रदेश में दस्तक दे दी है। इस बदलते गणित के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार माना जा रहा है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों और असेसमेंट ऑफ क्लाइमेट चेंज ओवर इंडियन रीजन की रिपोर्ट पर नजर डालें तो 1991 से 2015 के मध्य भारतीय क्षेत्र में जहां सामान्य वर्षा के मुकाबले छह फीसद की गिरावट दर्ज हुई है, वहीं उत्तर प्रदेश में इस अवधि में यह गिरावट 15 से 20 फीसद रिकार्ड की गई है। यह गिरावट लगातार वर्ष 2020 तक दर्ज की गई है। खासकर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में वर्षा में निरंतर अप्रत्याशित गिरावट देखी जा रही है।

 

दो तिहाई जिले हर साल बारिश की कमी से जूझ रहेः विगत वर्षों के आंकड़ों को देखें तो प्रदेश के लगभग दो तिहाई जिले हर साल बारिश की कमी से प्रभावित रहते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि विगत तीन दशकों के दौरान बारिश के इस बदलते रुख को देखते हुए वर्षा आधारित योजनाओं में व्यापक बदलाव करने की आवश्यकता है, जिससे भविष्य की चुनौतियां का सामना किया जा सके। प्रदेश में अगर समग्र रूप से देखें तो पश्चिमी, मध्य व पूर्वी क्षेत्रों और बुंदेलखंड में वर्षा के पैटर्न में काफी बदलाव हुआ है, जिसके चलते वर्षा जल के प्रबंधन को नए सिरे से देखने की जरूरत बताई जा रही है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के 2017-18 से 2020-21 के बारिश के आंकड़ों को देखें तो सूबे में सामान्य वर्षा के मुकाबले बारिश की तस्वीर बिल्कुल बदली नजर आती है। इस दौरान पूरे प्रदेश में जून से सितंबर तक होने वाली मानसूनी बारिश में सामान्य वर्षा की तुलना में औसतन 10 से 30 फीसद तक की कमी रही है।

प्रदेश में औसत सामान्य बारिश 947.4 मिमी ः भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, बारिश के आंकड़ों की गणना के लिए वर्षा का समय जून से मई तक माना गया है। इस दौरान प्रदेश के लिए औसत वार्षिक सामान्य वर्षा का स्तर 947.4 मिमी आंका गया है। इसमें से जून से सितंबर के मध्य मानसूनी बारिश का आंकड़ा 829.8 मिमी है। वहीं, मार्च से मई की प्री मानसून अवधि में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा सूबे में सामान्य वर्षा का स्तर अपेक्षाकृत सबसे कम 32.6 मिमी आंका गया है, ङ्क्षकतु चक्रवाती तूफानों और पश्चिमी विक्षोभ के चलते बीते दो वर्षों में इस समयावधि में नौ गुना अधिक 275 से 289 मिमी की भारी बारिश रिकार्ड हुई है, जो वर्षा चक्र में हो रहे बदलाव को दर्शाता है। वहीं, मानसूनी बारिश में 15 से 23 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है। उधर, पिछले कुछ वर्षों में पोस्ट मानसून अवधि अक्टूबर से दिसंबर के मध्य भी सामान्य वर्षा 47.5 मिमी के मुकाबले बारिश के स्तर में अधिकतर गिरावट ही दर्ज की जा रही है। कृषि विभाग के निदेशक सांख्यिकी राजेश कुमार गुप्ता कहते हैं कि वर्षा में तो कमी आ ही रही है, लेकिन इसके साथ ही इसके पैटर्न में भी काफी बदलाव देखा जा रहा है।

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