PM मोदी ने युद्ध के बीच 4 मंत्रियों को भेजा था यू्क्रेन, बरसीं से पहले याद आया ‘ऑपरेशन गंगा’

24 फरवरी 2022 का वो काला दिन जब रूस की तरफ से ताबड़तोड़ मिसाइलें यूक्रेन पर बरसाए गए। इस हमले ने सबको हैरान करके रख दिया था। चंद लम्हों में हजारों संख्या में कई निर्दोष नागरिकों की जान चली गई।

 

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क।  रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के एक साल पूरे हो गए हैं। 24 फरवरी 2022 का वो काला दिन जब रूस की तरफ से ताबड़तोड़ मिसाइलें यूक्रेन पर बरसाए गए। इस हमले ने सबको हैरान करके रख दिया था। चंद लम्हों में हजारों संख्या में कई निर्दोष नागरिकों की जान चली गई। इस हमले के बाद सभी ने ये मान लिया था कि यूक्रेन जल्द ही हार मान लेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

यूक्रेन ने भी जवाबी कारवाई में रूस पर कई मिसाइलें दागी। इन दो देशों को भारी आर्थिक नुकसान तो हुआ ही है, साथ ही मानवीय नुकसान भी झेलना पड़ा। सड़कों पर लाशें बिखरी देखी गई, बच्चे अनाथ हो गए और सैकड़ों माता-पिता की औलादें छिन गईं।

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जब भारत की बढ़ी चिंता…रूस और यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले 15 फरवरी, 2022 को यूक्रेन की राजधानी कीव (Ukraine’s Capital Kyiv) स्थित भारतीय दूतावास (Indian Embassy) ने वहां रह रहे भारतीय छात्रों को एक सलाह दी थी कि जितनी जल्दी हो सकें, देश छोड़ दें, अपने घर चले जाएं। उस समय भारत को भी अंदाजा हो गया था कि रूस और यूक्रेन के बीच का तनाव कभी भी बढ़ सकता है।

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आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन भारत के कई युवा छात्र-छात्राएं डॉक्टर की पढ़ाई करने के लिए यूक्रेन जाते है। यूक्रेन में उस दौरान लगभग 20 हजार भारतीय छात्र-छात्राएं मौजूद थे। ये आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र में भारतीय राजदूत (Indian Envoy at the UN) ने उस दौरान जारी किया था।

 

यूक्रेन में भारतीय छात्रों की संख्या इतनी क्यों?भारत में एमबीबीएस के छात्रों को नीट परीक्षा के जरिए सीट जल्दी नहीं मिलती है।

इस कारण कई छात्राओं का डॉक्टर बनने का सपना अधूरा रह जाता है।

भारत में निजी-मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टर की पढ़ाई काफी मंहगी होती है।

यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई काफी सस्ती होती है।

यहां के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश करने के लिए कोई परीक्षा भी देना नहीं पड़ता है।

jagranभारतीय छात्रों में डर का माहौल….

भारतीय छात्रों को हेलीकॉप्टरों की आवाजें सुनाई देती थी।

खारकीव जैसे अन्य इलाकों के छात्रों में डर का माहौल था।

शहर के चौराहों पर सैन्य टैंकों की तस्वीरें भयावह कर देने वाले थे।

दिन-रात सीमा पर गश्त करते हेलीकॉप्टरों की आवाजें गुंजती रहती थी।

भारतीय छात्रों का संकटमोचन बना ‘ऑपरेशन गंगा’ रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच सबसे बड़ी चिंता थी भारतीयों को वहां से कैसे निकाला जाए।

युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा था, जिसको देखते हुए भारत सरकार ने एक मिशन शरू किया।

भारत सरकार ने यूक्रेन में फंसे भारतीयों को एयरलिफ्ट करने के लिए ‘ऑपरेशन गंगा’ मिशन लॉन्च किया।

बचाव अभियान का पूरा खर्च भारत सरकार ने उठाया।

यूद्ध के कारण यूक्रेन का एयरस्पेस बंद हो गया।

भारत सरकार ने भारतीय छात्रों के लिए पोलैंड, रोमानिया, हंगरी और स्लोवाकिया से फ्लाइट्स चलाई।

विदेश मंत्रालय ने 24×7 हेल्‍पलाइन भी लॉन्‍च की।

27 फरवरी को यूक्रेन से भारतीय छात्रों को लेकर पहली फ्लाइट दिल्‍ली पहुंची।

भारतीय नागरिकों को उजहोरोड, स्लोवाकिया की सीमा पर और हंगरी के साथ सीमा के पास पश्चिम की ओर बढ़ने की सलाह दी गई।

भारतीय छात्रों को रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट से एयरलिफ्ट किया गया था।

इस मिशन के तहत केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, किरेन रिजुजू और जनरल वी के सिंह यूक्रेन के पड़ोसी देश पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया और रोमानिया गए थे।

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ऑपरेशन को गंगा का ही नाम क्यों दिया गया?

भारत में गंगा को मां का दर्जा मिला हुआ है। ऑपरेशन गंगा का नाम देकर भारत सरकार ने ये साबित किया कि देश का नागरिक कहीं भी फंसा हो, उनकी मातृभूमि उन्‍हें अकेला नहीं छोड़ेगी। कुछ ऐसा ही संदेश भारत की सबसे प्रसिद्ध राजनेताओं में से एक सुषमा स्वराज ने भी दिया था। उन्होंने मदद की गुहार लगाने वालों से कहा था कि अगर आप मंगल ग्रह पर भी फंसे होंगे तो भारतीय दूतावास आपकी मदद करेगा।

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